फिच रेटिंग के मुताबिक कोविड-19 संकट के बाद अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के बाद भारत वित्त वर्ष 2022 में मजबूत वापसी करेगा। उसके बाद वित्त वर्ष 23 से 2025-26 तक भारत की वृद्धि दर सुस्त होकर 6.5 प्रतिशत के आसपास रहेगी। रेटिंग एजेंसी ने एक नोट में कहा है कि आपूर्ति में व्यवधान और मांग में कमी और वित्तीय क्षेत्र की स्थिति खराब होने के कारण संकट समाप्त होने के बाद भी भारत की वृद्धि दर महामारी से पूर्व के स्तर से नीचे रहेगी।
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन और सीमित प्रत्यक्ष वित्तीय समर्थन के कारण भारत में मंदी की स्थिति दुनिया में सबसे गंभीर है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगी। चालू वित्त वर्ष 2020-21 में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9.4 प्रतिशत की गिरावट आएगी।’
सरकार के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक भारत की जीडीपी में 7.7 प्रतिशत संकुचन होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया है।
नोट में कहा गया है कि प्रभावी तरीके से टीकाकरण से वृद्धि को समर्थन मिलेगा, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी संकट खत्म होने के बाद भी जीडीपी का स्तर महामारी के पहले के स्तर से नीचे बना रहेगा।
फिच रेटिंग्स ने कहा कि कोविड-19 संकट शुरू होने से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था नीचे आ रही थी। 2019-20 में जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 4.2 प्रतिशत पर आ गई थी। इससे पिछले वित्त वर्ष में यह 6.1 प्रतिशत रही थी।
इसने कहा है, ‘मौजूदा मंदी का लंबा असर रहेगा।’ संकट का मतलब है कि निवेश में वृद्धि अगले कुछ वर्षों तक कम रहेगी और पूंजी का संचय सुस्त होने के कराण आपूर्ति की ओर से वृद्धि कम रहेगी।
फिच रेटिंग ने अनुपमान लगाया है कि वित्त वर्ष 21 में निवेश में 14 प्रतिशत की गिरावट आएगी, जो आधार पक्ष में होने और स्वास्थ्य संकट घटने से वित्त वर्ष 22 में बढ़कर 18 प्रतिशत हो सकता है। बहरहाल उसके बाद के वर्षों मं निवेश में वृद्धि सुस्त होकर करीब 6 प्रतिशत रह सकती है।
बैलेंस शीट दुरुस्त करने की कवायद और फर्में बंद होने की वजह से निवेश की मांग कम होने की संभावना है। एजेंसी ने कहा है, ‘अस्थिर वित्तीय व्यवस्था के कारण कर्ज की आपूर्ति सीमित रहना निवेश में एक और व्यवधान है। बैंकिंग क्षेत्र में पहले ही संकट है, जिससे कर्ज का आवंटन प्रभावित होगा।’