प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही (अप्रैल सितंबर 2025) के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) के माध्यम से शुद्ध आवक 8 अरब डॉलर रही है। यह वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही के 9 अरब डॉलर की तुलना में कम है।
बाह्य वाणिज्यिक उधारी का पंजीकरण अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान घटकर 18.5 अरब डॉलर रह गया, जो अप्रैल सितंबर 2024 के दौरान 25 अरब डॉलर था। सुस्ती के बावजूद निकासी की तुलना में आवक अधिक रही है। रिजर्व बैंक की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर जारी नवंबर की बुलेटिन में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान कुल ईसीबी का 45 प्रतिशत पूंजीगत व्यय के लिए जुटाया गया है। सितंबर 2025 में ईसीबी पंजीकरण 2.8 अरब डॉलर रहा है, जबकि शुद्ध आवक 2.2 अरब डॉलर है।
कंपनियों ने ऑटोमेटिक रूट के माध्यम से 2.4 अरब डॉलर के लिए 127 ईसीबी पंजीकरण दाखिल किया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3.8 अरब डॉलर के लिए 95 पंजीकरण हुए थे। रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चला कि फ्लोटिंग रेट ईसीबी ऋण के लिए ब्याज दर अल्टरनेटिव रेफरेंस रेट (एएआर) पर वेटेड एवरेज मार्जिन सितंबर 2025 में 1.27 प्रतिशत था, जो सितंबर 2024 में 1.36 प्रतिशत था।
रिजर्व बैक ने अधिक बाहरी आवक को देखते हुए हाल ही में ईसीबी मानकों में बदलाव किया है। इस माह की शुरुआत में रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने एसबीआई के बैंकिंग ऐंड इकनॉमिक कॉन्क्लेव में कहा था कि ईसीबी फ्रेमवर्क को सख्त किया जाना भारत के वित्तीय बदलाव में एक स्वाभाविक कदम है। मल्होत्रा ने कहा कि यह मजबूत बुनियादी धारणा पर आधारित, समझदारी से संचालित, भरोसे और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के साथ अपनी शर्तों पर जुड़ने की क्षमता से प्रेरित था। ऑल-इन-कॉस्ट सीलिंग हटाने से प्रतिस्पर्धी दरों और समझदारी से हेजिंग करने को बढ़ावा मिलेगा। पात्र ऋणदाताओं का दायरा बढ़ने से लागत की कुशलता में सुधार होगी।
ऑटोमोटिक रूट में उधारी लेने वाले की कुल पूंजी के साथ उधारी की सीमा को जोड़ने से ईसीबी के माध्यम से धन जुटाने की क्षमता बढ़ेगी और इससे कारोबार सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।