प्रख्यात अर्थशास्त्री जगदीश भगवती (90 साल) अपना संस्मरण लिखने में व्यस्त हैं और शोध व शिक्षा के 65 साल के कामकाज से इस शिक्षण वर्ष में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र से विशेष बातचीत में भगवती ने भारत के व्यापार, संरक्षणवाद, विकसित देश बनने के भारत के लक्ष्य सहित तमाम मसलों पर बात की। प्रमुख अंश…
बेशक। निश्चित रूप से। मेरा मानना है कि लोकतंत्र की गतिशीलता के लिए विपक्ष की जरूरत होती है लेकिन मुझे डर है और कहना चाहता हूं कि वह हमारे पास नहीं है। ऐसे में तो प्रधानमंत्री में भी अभिमान आ सकता है और वह गलतियां कर सकते हैं। आखिरकार वह मनुष्य हैं। उनके जैसे अद्भुत व्यक्ति के लिए भी अहंकार से बचना और गलतियां न करना कठिन होगा। अच्छी बात यह है कि उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला और मौजूदा सरकार में उन्हें उन लोगों का विरोध भी झेलना पड़ रहा है, जो गठबंधन में शामिल हैं।
मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि ज्यादातर एक ही विचार के हैं। जैसे (आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री) चंद्रबाबू नायडू बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं। ऐसी कोई संभावना नहीं है कि वह विपक्षी दलों की तरह काम करें। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ने जो किया है, सभी उसका समर्थन करते हैं। जैसे महिलाओं के लिए शौचालय बनवाना। प्रधानमंत्री महिलाओं की चिंता को प्रभावशाली तरीके से सामने लाए हैं। मुझे उनके बारे में यह बहुत दिलचस्प लगता है।
उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके बाद वह आराम से नहीं बैठ गए हैं। वे हमेशा और अधिक बेहतर की कोशिश करते रहते हैं। उनके मंत्रिमंडल में महिलाएं भी शामिल हैं, वित्त मंत्री भी महिला हैं, जो अद्भुत हैं। यहां तक कि स्मृति इरानी भी, जो अमेठी से चुनाव हार गईं। ये दिलचस्प महिलाएं हैं, जिन्होंने खुद को बनाया है। ये किसी राजवंश से नहीं आतीं और न ही उन्हें पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) जैसे किसी व्यक्ति का आशीर्वाद मिला हुआ है। मेरे हिसाब से यह बहुत बड़ी बात है।
भारत में आधी आबादी महिलाओं की है। उन्हें आगे बढ़ने में सक्षम होना चाहिए। हमारी सामाजिक व्यवस्था के कारण ऐसा नहीं हो पाता। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री समझते हैं कि महिलाओं को क्या चाहिए। वह इस पर काम भी कर रहे हैं। लेकिन यह एक सतत प्रक्रिया है। यह भारत के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि लोग वास्तव में महिलाओं के लिए कुछ कर रहे हैं। मुझे यह बहुत बड़ा बदलाव लगता है। हम वास्तव में भाग्यशाली हैं कि हमारे पास वह (प्रधानमंत्री मोदी) हैं।
मुझे लगता है कि यह गुजरता दौर है क्योंकि अगर आप भारत को भी देखें कि यहां क्या हो रहा है, तो यह सत्य है कि शेष दुनिया एक या दूसरी तरफ जा रही है। यह हमेशा अलग-अलग दिशाओं में जाती रही है। हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। लेकिन दूसरी ओर, यह स्पष्ट है कि अब बहुत सारे लोग हैं जो समझते हैं कि अगर हमारी अर्थव्यवस्था अधिक खुली होती तो हम बहुत बेहतर कर सकते थे।
जब हम लिख रहे थे, जिसमें प्रोफेसर (अरविंद) पानगड़िया भी शामिल थे, हम जानते थे कि हमारा औद्योगीकरण उतना प्रभावशाली नहीं है, हालांकि यह आगे बढ़ रहा था। हमें इसमें सुधार करने की जरूरत है। इसे अब स्वीकार किया गया है। राजनीति ऐसी ही है, कभी-कभी लोग मुद्दा बना देते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि पूरा देश इस बात को समझता है।
बुनियादी तर्क यह है कि भारत जैसे बड़े देश में आपके पास आय के पुनर्वितरण का कोई तरीका नहीं है। एकमात्र दीर्घावधि जवाब यह है कि आप तेज वृद्धि की राह पकड़ें और लोगों को लाभदायक रोजगार दें। अगर आप संसाधनों का बंटवारा शुरू करेंगे तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। कुछ भी नहीं बचेगा। इसलिए हम उचित समाधान चाहते हैं।
यह सोचना कि आप उन क्षेत्रों को चुन सकते हैं, जहां आप वृद्धि दर्ज कर सकते हैं, भ्रांति है। इस समय हमारे पास पर्याप्त कुशल मानव संसाधन है। लोग निवेश को इच्छुक हैं। इस हिसाब से हम पहले से अलग स्थिति में हैं। हमें विशेष लक्ष्य की जरूरत नहीं है। हमें सिर्फ सामान्य प्रोत्साहन देने होंगे और उसके बात चीजें अपने आप काम करेंगी। यह सोचने का तरीका बदलने का वक्त है। अब यह जरूरत नहीं है कि सरकार या कोई भी हमसे कहे कि हम क्या करें।
सही है। यह ऑटोपायलट मोड में है। यह महान देश है, जहां ढेरों शोध हो रहे हैं, युवा लोग हैं। मतलब है कि तमाम अवसर उपलब्ध हैं। हमें किसी चीज के लिए विदेश नहीं जाना है।
मुझे पता था कि यह सवाल आने वाला है (हंसते हैं)। मेरे और सेन जैसे बड़े अर्थशास्त्रियों में असहमति होगी ही। यह अपरिहार्य है। यह रॉकेट साइंस नहीं है। मुझे लगता है कि किसी भी पेशे की तरह अर्थशास्त्रियों में भी प्रतिद्वंद्विता, असहमति आदि होती ही है। ऐसे में यह अपरिहार्य है कि हम हर बात में सहमत न हों।