केंद्र सरकार ने ने वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में योजना की तुलना में कम उधारी ली है। महामारी की दूसरी लहर की वजह से सरकार का ज्यादातर योजनागत व्यय ठहर गया, जिसकी वजह से ऐसा हुआ है।
हालांकि अगर पिछले साल से तुलना करें तो उधारी ज्यादा रही है। 2020-21 में सरकार ने मई में उधारी कार्यक्रम बढ़ा दिया था और उसके बाद बाजार में मई के मध्य में दबाव बढ़ा था।
2021-22 में मई के अंत तक उधारी 1.84 लाख करोड़ रही, जबकि साप्ताहिक नीलामियों के माध्यम से 2.32 लाख करोड़ रुपये उधारी लेने की योजना थी।
यह योजना की तुलना में 48,000 करोड़ रुपये कम है। बहरहाल सरकार को अन्य साधन, रिजर्व बैंक के लाभांश से पर्याप्त राशि मिली है।
फिलिप कैपिटल में फिक्स्ड इनकम के सलाहकार जयदीप सेन ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि सरकार की वित्तीय स्थिति दबाव वाली है और रिजर्व बैंक प्रतिफल का स्तर रोकने की कवायद कर रहा है। सरकार की उधारी वित्त वर्ष 22 के पहले 2 महीनों में योजना की तुलना में 48,000 करोड़ रुपये कम रही है, जबकि रिजर्व बैंक का लाभांश बजट अनुमान की तुला में 45,000 करोड़ रुपये ज्यादा है।’
केयर रेटिंग ने कहा कि कुल मिलाकर देखें तो सरकार की उधारी पिछले साल की तुलना में ज्यादा रही है। उदाहरण के लिए इस वित्त वर्ष में शुक्रवार की नीलामी को मिलाकर इस 2.7 लाख करोड़ रुपये रही है, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 60 प्रतिशत ज्यादा है।
उल्लेखनीय है कि सरकार की बाजार उधारी कोविड के कारण पिछले साल की तरह उच्च स्तर पर है, लेकिन उधारी का तरीका बदला है।
भारतीय रिजर्व बैंक लगातार प्राथमिक डीलरों पर दबाव बना रही है कि वह बगैर बिके बॉन्डों को खरीदें या नीलामी रद्द की जा रही है। शुक्रवार को एक बार फिर 10 साल के बॉन्ड नीलामी को न्यायसंगत किया गया। 10 साल के लिए उपलब्ध 14,000 करोड़ रुपये के बॉन्डों में के रिजर्व बैंक ने प्राथमिक डीलरों को 9975.763 करोड़ रुपये का खरीदने को बाध्य किया। कट आफ 5.99 प्रतिशत बनाया गया था, हालांकि रिजर्व बैंक जोर दे रहा है कि उसने बेंचमार्क बॉन्ड के लिए 6 प्रतिशत के स्तर का लक्ष्य नहीं रखा है।