अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान देश के एफएमसीजी उद्योग में 9.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। इसे मुख्य तौर पर लगातार तीन तिमाहियों के दौरान कीमतों में हुई दो अंकों की बढ़ोतरी से बल मिला। नीलसन आईक्यू ने अपने एक सर्वेक्षण में कहा है कि महंगाई के दबाव और वृहत आर्थिक कारकों के कारण तिमाही के दौरान इस क्षेत्र की मात्रात्मक वृद्धि में 2.6 फीसदी की कमी आई।
नीलसन आईक्यू ने कहा, ‘परिणामस्वरूप खपत में गिरावट की रफ्तार ग्रामीण बाजारों में कहीं अधिक रही। ग्रामीण बाजारों में खपत में 4.8 फीसदी का संकुचन दिखा जबकि शहरी बाजारों में यह आंकड़ा 0.8 फीसदी पर कहीं बेहतर रहा।’
नीलसन आईक्यू के प्रमुख (दक्षिण एशिया क्लस्टर) दीप्तांशु रे ने कहा कि चौथी तिमाही के दौरान देश के वृहत आर्थिक कारकों में नरमी बरकरार रही और वैश्विक मुद्रास्फीतिक दबाव के कारण दीर्घकालिक प्रभाव दिखा। उन्होंने कहा कि इस कैलेंडर वर्ष के दौरान भले ही दो अंकों में वृद्धि दिखी लेकिन मूल्य वृद्धि के कारण खपत में लगातार हो रही कमी पर भी गौर करना आवश्यक है।
मूल्य वृद्धि लगातार छोटे विनिर्माताओं को प्रभावित कर रही है। ऊंची लागत के साथ परिचालन को जारी रखने संबंधी चुनौतियों के कारण छोटे विनिर्माताओं (कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये से कम) की संख्या में 13 फीसदी की गिरावट आई है। जबकि बड़े एवं मझोले विनिर्माताओं में पूरे साल स्थिरता दिखी।
शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में पारंपरिक कारोबार के तहत मात्रात्मक वृद्धि में 4.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जिससे कुल मिलाकर मंदी को रफ्तार मिली है। स्टेपल और ओवर द काउंटर जैसी श्रेणियों में पिछली दो तिमाहियों के दौरान काफी मूल्य वृद्धि हुई है। इससे ग्रामीण बाजारों में उल्लेखनीय मूल्य वृद्धि दर्ज की गई जिसने मात्रात्मक बिक्री को प्रभावित किया है।
अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान आधुनिक संगठित व्यापार के तहत पिछले छह महीने के दौरान मात्रात्मक बिक्री में 5.6 फीसदी का इजाफा हुहा। बाजारों के खुलने और त्योहारी सीजन की खपत में वृद्धि से बिक्री को बल मिला।
नीलसन आईक्यू के ई-कॉमर्स उपभोक्ता पैनल यानी 1,60,000 दुकानदारों के साथ इंटरनेट शॉपर पैनल से पता चलता है कि ऑनलाइन खरीदारों के बीच एफएमसीजी की पैठ वैश्विक महामारी से पहले 15 फीसदी थी जो बढ़कर वैश्विक महामारी के दौरान 25 से 30 फीसदी हो
गई। वैश्विक महामारी के बाद यह आंकड़ा 25 फीसदी पर बरकरार है।