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सौर ऊर्जा को ताकत देगा तिरुनेलवेली, Tata Power का सबसे बड़ा प्लांट

चेन्नई से करीब 620 किलोमीटर और तिरुवनंतपुरम से 158 किलोमीटर दूर तिरुनेलवेली 304 से 232 ईसा पूर्व के काल से ही एक लोकप्रिय व्यापारिक केंद्र रहा है।

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शाइन जेकब   
Last Updated- December 08, 2024 | 10:23 PM IST

चेन्नई से करीब 620 किलोमीटर और तिरुवनंतपुरम से 158 किलोमीटर दूर तिरुनेलवेली 304 से 232 ईसा पूर्व के काल से ही एक लोकप्रिय व्यापारिक केंद्र रहा है। इस शहर को पांड्य, चेर, चोल, विजयनगर साम्राज्य और ब्रिटिश सभी ने संवारा। इसका इतिहास तीन हजार साल से भी अधिक पुराना है। आजादी के बाद के दौर में जब 1986 में भारत में तीन जगहों- महाराष्ट्र (रत्नागिरि), गुजरात (ओखा), और तमिलनाडु (तिरुनेलवेली)- पर एक साथ पवन ऊर्जा की शुरुआत हुई तो इस शहर ने ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में अपना एक अलग इतिहास बनाया।

तिरुनेलवेली को अब तमिलनाडु की ‘ग्रीन एनर्जी राधानी’ के रूप में जाना जाता है। यह राज्य के कुल पवन ऊर्जा में करीब 25 फीसदी सौर ऊर्जा में भी उल्लेखनीय योगदान करता है। इस प्राचीन शहर की उपलब्धियों की सूची में अब टाटा पावर भी शामिल होने जा रही है। टाटा पावर तिरुनेलवेली में अपनी पहली परियोजना स्थापित कर रही है। शहर के करीब 20 किलोमीटर दूर गंगईकोंडान में तमिलनाडु राज्य उद्योग संवर्धन निगम (एसआईपीसीओटी) औद्योगिक पार्क है। बाहरी दुनिया में इसके अलावा उसकी कोई खास पहचान नहीं है।

टाटा पावर सोलर (टीपीएसएल) सोलर सेल अथवा फोटोवोल्टिक (पीवी) सेल एवं मॉड्यूल विनिर्माण कारखाना 317 एकड़ में है। इसे भारत का सबसे बड़ा सोलर सेल अथवा पीवी सेल एवं मॉड्यूल उत्पादन केंद्र के रूप में जाना जाता है। मगर अचंभित करने वाली बात यह है कि इसमें महिला कर्मचारियों की उल्लेखनीय हिस्सेदारी है और उनमें से अधिकतर महिला कर्मचारी 60 किलोमीटर के दायरे से आती हैं।

अधिकारियों के अनुसार, वहां कुल 2,805 कर्मचारियों में से 60 फीसदी महिलाएं हैं। इतना ही नहीं कुल 1,334 ऑपरेटर कर्मियों में 80 फीसदी महिलाएं हैं। तेजी से उभरते इस क्षेत्र में कुशल कर्मियों की किल्लत रही है, मगर टीपीएसएल के कारखाने में महिलाओं की अधिक भागीदारी से उम्मीद बंधती है।

सेल एवं मॉड्यूल के लिए 4.3 गीगावॉट की क्षमता वाले इस कारखाने को भविष्य में विस्तार के लिहाज से डिजाइन किया गया है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी एवं प्रबंध निदेशक प्रवीर सिन्हा ने कहा, ‘इस संयंत्र में क्षमता विस्तार के लिए पर्याप्त जगह है।’ उन्होंने कहा कि वहां कंपनी अपनी विनिर्माण क्षमता को अतिरिक्त 4 गीगावॉट तक बढ़ा सकती है।

तकनीकी क्रांति में अग्रणी

तकनीकी तौर पर एकल पीवी डिवाइस को सेल कहा जाता है। अगर ऐसे कई सेल को आपस में जोड़ दिया जाए तो उसे एकीकृत रूप से मॉड्यूल या पैनल कहा जाता है। शुरुआती प्रिंटिंग यूनिट में ही जाने पर आपको तमाम ऑटोनोमस मोबाइल रोबोट (एएमआर) इधर-उधर घूमते हुए दिख जाएंगे। ये रोबोट उद्योग 4.0 मानकों के साथ निर्बाध संचालन एवं उच्च दक्षता सुनिश्चित करते हुए कच्चे माल एवं तैयार सेल को बेहद बारीकी से सही जगह पर रख रहे थे।

यह कारखाना उच्च दक्षता वाले सोलर सेल के लिए अत्याधुनिक टॉपकॉन (टनल ऑक्साइड पैसिवेटेड कॉन्टैक्ट) और मोनो पीईआरसी (पैसिवेटेड एमिटर ऐंड रियर सेल) तकनीकों से लैस है।

यह ऊर्जा उत्पादन दक्षता को बेहतर करने के लिए द्विआयामी प्रौद्योगिकी को एकीकृत करता है ताकि पैनल आगे और पीछे दोनों ओर से बिजली का उत्पादन करने में समर्थ हों। इसका मतलब यह हुआ कि पैनल सूर्य से आने वाली किरणों के अलावा जमीन या आसपास की सतहों से परावर्तित प्रकाश का उपयोग करते हुए बिजली उत्पादन में वृद्धि कर सकता है। टॉपकॉन सोलर सेल की दक्षता को बेहतर करते हुए उसे कम धूप की स्थिति में भी बेहतर प्रदर्शन करने में समर्थ बनाता है।

इससे बिजली का उत्पादन बढ़ सकता है। इसके अलावा मोनो पीईआरसी प्रौद्योगिकी ऊर्जा के नुकसान को कम करते हुए सोलर सेल की बिजली उत्पादन दक्षता को बेहतर करती है। इससे सोलर सेल का जीवनकाल बढ़ जाता है और उसके रखरखाव लागत भी कम होती है।

सिन्हा ने स्पष्ट किया कि यह कारखाना मुख्य रूप से घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और निर्यात की फिलहाल कोई योजना नहीं है। टाटा पावर के अनुमानों के अनुसार, देश की सेल क्षमता फिलहाल करीब 6 गीगावॉट और मॉड्यूल क्षमता करीब 50 गीगावॉट है। साल 2030 तक सेल क्षमता बढ़कर 60 गीगावॉट और मॉड्यूल क्षमता 85 गीगावॉट तक पहुंचने का अनुमान है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 तक करीब 14 गीगावॉट मॉड्यूल क्षमता निर्यात बाजार को लक्षित करेगी।

तिरुनेलवेली में टाटा की महत्त्वपूर्ण योजनाएं ऐसे समय में शुरू हुई हैं जब 2024 की पहली छमाही के दौरान देश में 2.2 अरब डॉलर के सेल एवं मॉड्यूल के आयात किए गए हैं। यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 60 फीसदी अधिक है और इसमें चीन का योगदान सबसे ज्यादा है। भारत से सेल एवं मॉड्यूल का निर्यात कथित तौर पर 1.1 अरब डॉलर रहा जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले महज 19 फीसदी अधिक है।

इसी साल 1 अप्रैल को मॉडल एवं विनिर्माताओं की अनुमोदित सूची (एएलएमएम) आदेश जारी किए जाने के कारण मॉड्यूल के आयात में आगे गिरावट दिख सकती है। इससे डेवलपर घरेलू बाजार से मॉड्यूल की आपूर्ति करने के लिए प्रेरित होंगे।

टाटा पावर ने उम्मीद जताई है कि सरकार जल्द ही सोलर सेल को एएलएमएम सूची में शामिल करेगी, जिससे इस कारखाने की बाजार क्षमता को बल मिलेगा। सिन्हा ने कहा कि अगले 12 से 16 महीनों के दौरान आपूर्ति के साथ घरेलू कंपनियों से सौदे पहले ही मिल चुके हैं। कंपनी खुद की सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 50 फीसदी मॉड्यूल का उपयोग करेगी। टाटा पावर ने एसजेवीएन, एनटीपीसी, एनएचपीसी जैसी कंपनियों की सौर ऊर्जा ईपीसी परियोजनाओं के लिए भी करार किया है।

मॉड्यूल और सेल का उपयोग उसके रोलर रूफटॉप के लिए भी किया जाएगा और इसके लिए उसक पास 684 करोड़ रुपये का ऑर्डर बुक है। रूफटॉप श्रेणी में टाटा पावर करीब 13.1 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ अग्रणी है। वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही के दौरान इस कारखाने ने 1,500 मेगावॉट के मॉड्यूल का उत्पादन किया। दिसंबर तक कुल 4.3 गीगावॉट सेल का उत्पादन भी शुरू हो जाएगा।

कंपनी ने कहा है कि वह वित वर्ष 2026 तक 4 गीगावॉट के सेल और इतने ही मॉड्यूल के उत्पादन की उम्मीद कर रही है। परिसर से बाहर निकलने पर ऐसा लगता है कि यह कारखाना सौर ऊर्जा आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।

एसआईपीसीओटी क्षेत्र से बाहर निकलते समय विक्रम सोलर द्वारा नियुक्ति के एक नोटिस ने ध्यान आकर्षित किया। विक्रम सोलर उसी क्षेत्र में 3 गीगावॉट क्षमता के सेल एवं मॉड्यूल उत्पादन कारखाना स्थापित कर रही है। बहरहाल ऐसा लगता है कि पूरा तिरुनेलवेली और उसके आसपास के इलाके भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक नई कहानी लिख रहे हैं।

First Published : December 8, 2024 | 10:23 PM IST