बीएस बातचीत
जेएसडब्ल्यू स्टील बढ़त का खाका खींच रही है, जो साल 2024 तक उसकी उत्पादन क्षमता मौजूदा 2.3 करोड़ टन से बढ़ाकर 3.8 करोड़ टन कर देगी। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्त अधिकारी (समूह) शेषगिरि राव ने ईशिता आयान दत्त को दिए साक्षात्कार में कहा कि मांग में मजबूती बनी रहेगी और भारत कोविड महामारी के असर से तेजी से उबरेगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
वित्त वर्ष 21 की चौथी तिमाही में जेएसडब्ल्यू का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा, लेकिन चीन में स्टील की कीमतें घटती नजर आ रही हैं। मांग को लेकर कैसा परिदृश्य है?
ढांचागत रूप से चीन समेत मांग काफी मजबूत है। चीन में जिस तरह की बढ़ोतरी देखी गई है, खास तौर से जिंस एक्सचेंजों में, उसमें सटोरिया खरीदारी का अहम योगदान है। इसी वजह से मार्जिन की दरकार बढ़ाई गई है, जिस वजह से गिरावट देखने को मिली है। लेकिन फंडामेंटल में बदलाव नहीं हुआ है।
देसी बाजार में किसी तरह की बढ़त की गुंजाइश है?
चीन में स्टील की कीमतें 1,000-1,015 डॉलर प्रति टन, अमेरिका में 1,730 डॉलर प्रति टन और उत्तरी यूरोप में 1,340 डॉलर प्रति टन है। देसी व चीन से आयातित स्टील की कीमतों का अंतर करीब 20 फीसदी है। कीमतों की बढ़ोतरी होगी या नहीं, इसका कोई भी अनुमान लगा सकता है, लेकिन भारत की कीमतें आयातित कीमतों के मुकाबले कम रही हैं।
क्या लॉकडाउन से मांग पर असर पड़ रहा है?
यह मांग को प्रभावित कर रहा है। अप्रैल में मांग घटकर 67 लाख टन रह गई, जो मार्च में 90 लाख टन से ज्यादा थी। लेकिन अच्छी बात यह है कि मांग में गिरावट दिसंबर 2020 के मुकाबले ज्यादा गंभीर नहीं थी क्योंकि इस बार राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन नहीं हुआ। लेकिन स्थानीय लॉकडाउन से कुल मांग पर असर पड़ा है। भारतीय स्टील कंपनियां पिछले साल से ही निर्यात के साथ समायोजित कर रही हैं। इस तिमाही एक बार फिर निर्यात बढ़ा है क्योंकि देसी मांग बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है।
ज्यादातर स्टील फर्मों ने मौजूदा चक्र का इस्तेमाल कर्ज घटाने में किया। जेएसडब्ल्यू स्टील क्या कर रही है?
सापेक्षित अनुपातों में काफी सुधार हुआ है। 31 मार्च, 2020 को कर्ज-एबिटा 4.5 गुना था, वहीं इस साल की समान अवधि में यह 2.61 गुना है। कर्ज-इक्विटी अनुपात भी 1.48 गुना था, जो अब घटकर 1.14 गुना रह गया है। आंकड़ोंं के लिहाज से देखें तो मार्च 2020 मेंं कुल कर्ज 53,473 करोड़ रुपये था, जो मार्च 2021 में घटकर 52,617 करोड़ रुपये रह गया। यह गिरावट छोटी दिख सकती है, लेकिन यह पिछले साल खुद के दम पर हुए विस्तार व विलय-अधिग्रहण पर 15,000 करोड़ रुपये खर्च के बाद की स्थिति है।
डोल्वी में विस्तार की क्या स्थिति है?
कोरोना की दूसरी लहर ने डोल्वी इकाई के क्रियान्वयन पर असर डाला है। वहां कामगार घटे हैं और यूरोपीय व जापानी आपूर्तिकर्ता भी
नहीं हैं। हम जून तक इसे पूरा कर लेते, लेकिन अब यह शायद सितंबर आखिर तक पूरा हो पाएगा।