Thierry Delaporte, former CEO and managing director, Wipro
वरिष्ठ नेतृत्व के निकलने और प्रतिस्पर्धियों द्वारा लगातार वृद्धि दर्ज करना शायद ऐसे कुछ मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से विप्रो के मुख्य कार्य अधिकारी थिएरी डेलापोर्ट को इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा। विप्रो के सातवें सीईओ डेलापोर्ट ने भी अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा किए बगैर कंपनी से इस्तीफा दे दिया है। इसी तरह उनके पूर्ववर्ती आबिदअली नीमचवाला ने वर्ष 2020 की शुरुआत में अपना कार्यकाल समय से पहले समाप्त करने का फैसला किया था।
एचएफएस रिसर्च के मुख्य कार्यअधिकारी एवं मुख्य विश्लेषक फिल फेर्श्त का मानना है कि नेतृत्व में यह बदलाव कम से कम 6 महीने से विलंबित है। उनका कहना है, ‘एक साल से विप्रो का मनोबल गिरा है, और नेतृत्व में यह बदलाव कम से कम छह महीने की देरी से हुआ है।’
डेलापोर्ट ने 6 जुलाई 2020 को कैपिजेमिनाई से विप्रो के सीईओ की कमान संभाल थी। तब से फर्म ने पुनर्गठन पर जोर दिया है और कई वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कहा है। 2023 में करीब 10 वरिष्ठ अधिकारियों ने इस्तीफा दिया था। इनमें सीएफओ जतिन दलाल भी थे जो कॉग्निजेंट में शामिल हो गए। फेर्श्त का कहना है, ‘वह विप्रो से बाहर से कई अधिकारियों को लेकर और कंपनी के वफादार दिग्गजों की अनदेखी की। इस वजह से कई अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया।’
हालांकि विश्लेषकों और उद्योग पर नजर रखने वालों को डेलापोर्ट के निकलने का अनुमान था, लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि वे अचानक और इतनी जल्द इस्तीफा दे देंगे। डेलापोर्ट ने कंपनी ने कई संगठनात्मक बदलाव किए थे, जिनके बारे में कई का मानना था कि वरिष्ठ अधिकारियों को यह पसंद नहीं आया। एक स्वतंत्र आईटी विश्लेषक ने नाम नहीं बताए जाने के अनुरोध के साथ कहा, ‘सीईओ के तौर पर डेलापोर्ट द्वारा कमान संभालने के बाद शुरू में काफी उत्साह बना हुआ था। कंपनी के शेयर पर इन दोनों बदलावों और
अधिगहणों का सकारात्मक असर देखा गया था। लेकिन धीरे धीरे यह उत्साह फीका पड़ने लगा और विप्रो का वित्तीय प्रदर्शन निवेशकों को आकर्षित नहीं कर सका। साथ ही, ये बदलाव कई खास अधिकारियों की नजर में अनुकूल साबित नहीं हुए। इसलिए उनका कंपनी से जल्द या बाद में जाना संभावित था।’
सूत्रों का कहना है कि अन्य समस्या थी डेलापोर्ट की लंबी दूरी की अनुपस्थिति। कई जनकारों का मानना है कि वह पेरिस स्थित सीईओ थे और उनके वरिष्ठ समकक्ष ही भारत और अमेरिका में कर्मचारियों को एकजुट बनाए रखने में लगे हुए थे। फेर्श्त का कहना है, ‘आप कठिन आर्थिक समय के दौरान भारतीय-विरासत से जुड़े व्यवसाय नहीं चला सकते हैं जब तक कि आप मनोबल बढ़ाने और फर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वयं वहां मौजूद नहीं हों।’
ध्यान देने की बात यह है कि विप्रो कई वर्षों से प्रदर्शन के संदर्भ में अपने प्रतिस्पर्धियों से पीछे रही है। दिसंबर तिमाही में उसका राजस्व एक साल पहले के मुकाबले 4.4 प्रतिशत घटकर 22,205 करोड़ रुपये रह गया, जो ब्लूमबर्ग द्वारा जताए गए अनुमान से कम है। तिमाही आधार पर राजस्व 1.4 प्रतिशत घटा, क्योंकि बैंकिंग, वित्तीय सेवा एवं बीमा (बीएफएसआई), उपभोक्ता और निर्माण जैसे मुख्य वर्टिकलों में कमजोरी आई है।
विप्रो तीसरी सबसे बड़ी भारतीय आईटी सेवा कंपनी के स्थान से फिसलकर चौथे पायदान पर भी आ गई है। पिछली लगातार चार तिमाहियों के दौरान विप्रो की राजस्व वृद्धि (स्थिर मुद्रा के संदर्भ में) भी प्रभावित हुई है। 1.4 अरब डॉलर के कैप्को अधिग्रहण से भी कंपनी को अपने प्रतिस्पर्धियों से मुकाबला करने में मदद नहीं मिल पाई है।