प्रतीकात्मक तस्वीर
कई समाधान विशेषज्ञ और ऋणदाताओं की समितियां कॉरपोरेट दिवालिया समाधान के लिए अपनी रणनीतियों पर नए सिरे से विचार कर रही हैं। दरअसल भारत के दिवालिया और अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने हालिया अधिसूचना में दिवालिया प्रक्रिया में कंपनियों के फंसे हुए ऋण के कुछ हिस्से की समाधान की अनुमति दे दी है।
आईबीबीआई ने 26 मई को जारी अधिसूचना में दिवालिया विशेषज्ञों और ऋणदाताओं की समितियां को पूरी कंपनी के लिए योजना बनाने के बजाये उसके एक या अधिक फंसी हुई संपत्तियों की समाधान योजना आमंत्रित की थी।
आईबीबीआई ने अधिसूचना में बताया, ‘दोनों पक्षों को आमंत्रित करने की अनुमति देने से समाधान योजना में समय कम हो सकता है। यह व्यवहार्य क्षेत्रों में मूल्य की गिरावट रोक सकती है और इससे निवेशकों की व्यापक भागीदारी हो सकती है।’
दिवालाया और अक्षमता संहिता (आईबीसी) के विशेषज्ञों ने बताया कि समाधान विशेषज्ञ लंबे समय से इस कदम की मांग कर रहे थे। दरअसल आईबीबीआई ने पूरी कंपनी का पहला समाधान विफल होने की स्थिति में कंपनियों को विशेषतौर पर आंशिक समाधान की अनुमति दे दी थी।
केएल लीगल ऐंड एसोसिएट्स के प्रबंध साझेदार सोनम चांदवानी ने बताया, ‘हम एकल इकाइयों या संपत्तियों के समूह विशेष तौर पर आधारभूत ढांचा, इंजीनियरिंग, खरीद और विनिर्माण की ढांचागत योजनाओं में बोली लगाने वालों की बढ़ती रुचि देख रहे हैं। समाधान विशेषज्ञ पुराने परिमापन की समीक्षा कर रहे हैं और नए परिदृश्य में मामलों के आधार पर संपत्ति व्यवहार्यता का आकलन कर रहे हैं।’
कई बड़े दिवाला मामलों जैसे आधारभूत ढांचे, रीयल एस्टेट, स्टील, थर्मल पॉवर और खुदरा क्षेत्रों में हिस्सावार समाधान योजना को व्यावहारिक रूप में देखने की उम्मीद है। ग्रांट थॉरटन भारत के साझेदार (ऋण व विशेष स्थितियों) आशीष छावछरिया ने कहा, ‘अच्छा कदम है, कई बड़ी कंपनियां कॉरपोरेट दिवालिया समाधान योजना (सीआईआरपी) में नहीं हैं। लिहाजा अल्पावधि में प्रभाव सुस्त हो सकता है।’