सीमेंट का जोड़ कमजोर, ऑटो उद्योग का संकट घनघोर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 7:44 PM IST

सीमेंट


सीमेंट कंपनियों के कुल राजस्व में जहां 11.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है वहीं मार्जिन में गिरावट आने के कारण इन कंपनियों का शुध्द मुनाफा 18.2 प्रतिशत नीचे जा गिरा।

हमने जितनी सीमेंट कंपनियों को खंगाला, उनमें से लगभग सभी खर्चे में हुई में कुल बढाेतरी के कारण अपने मार्जिन पर दबाव महसूस कर रही हैं। तिमाही में सारी सीमेंट कंपनियों का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन, राजस्व ऊर्जा और ईंधन और माल भाड़े की कीमतों में हुई तेजी से बढ़ोतरी के कारण 892 आधार अंक की गिरावट के साथ 33.55 प्रतिशत दर्ज किया गया।

अधिकांश कंपनियों के वॉल्यूम में बढ़त 2 से 4 प्रतिशत कम रही जिसका कारण क्षमता में कमी और देश के कुछ भागों में मानसून का जल्दी आ जाना रहा। अल्ट्रा सीमेंट का वॉल्यूम पश्चिमी क्षेत्र में निर्यात प्रतिबंध लगने के कारण निराशाजनक रहा। हालांकि सीमेंट रियलाइजेशन में 9 से 12 प्रतिशत तक की बढ़ातरी हुई।

दक्षिणी भारत में सीमेंट की कीमतें स्थिर रहने केकारण इस क्षेत्र की दो प्रमुख सीमेंट कंपनियों इंडिया सीमेंट और मद्रास सीमेंट केरियलाइजेशन में जबरदस्त इजाफा हुआ। तिमाही में कम बिक्री से अल्ट्राटेक सीमेंट के रियलाइजेशन में अच्छा इजाफा हुआ। पिछले दो सालों तक मांग में 10 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी के बाद चालू वित्त वर्ष में सीमेंट की मांग घटकर 9 प्रतिशत के करीब रह गई है।

सीमेंट में मांग में कमी का कारण एंड-यूजर्स इंडस्ट्रीज जैसे हाउसिंग, रियल एस्टेट और विनिर्माण क्षेत्र में मंदी है। ब्याज दरों में निरंतर हो रही बढ़ोतरी से उद्योग जगत की विस्तार योजनाएं रुकने की संभावना है जिससे सीमेंट की मांग में और कमी आ सकती है।

हालांकि मीडियम टर्म में निराशाजनक माहौल के बावजूद सीमेंट विश्लेषकों को आशा है कि सकल घरेलू उत्पाद में 8 से 9 प्रतिशत की मजबूत बढोतरी होने से सीमेंट की मांग में तेजी आएगी। सरकार के विनिर्माण क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने, देश भर में सिंचाई परियोजनाएं शुरू किए जाने और तेजी से बढ़ रहे आवासीय क्षेत्र में बढ़ती मांग के कारण सीमेंट की मांग में तेजी आने की संभावना है।

हालांकि इन सब के बावजूद क्षमता में बढोतरी के कारण आनेवाले वर्षों में सीमेंट की कीमतों के प्रभावित रह सकती हैं। विश्लेषकों के अनुसार क्षमता बढ़ने का काम लगभग 8 से 10 महीनों की देरी से चल रहा है जिससे कि आनेवाले कुछ महीनों में सीमेंट की कीमतें स्थिर रहने की संभावना है।

विभिन्न सीमेंट कंपनियों ने घोषणा की है कि क्षमता बढ़ाने का काम अगले एक वर्ष तक मुख्यत: राजस्थान और दक्षिणी राज्यों में किया जाएगा। इस कारण इन क्षेत्रों में सीमेंट की कीमतों के तीसरी तिमाही के बाद दबाब में आने की संभावना है। कोयले की कीमतें बढ़ने से सीमेंट कंपनियां काफी परेशान हैं।

वाहन

ऑटोमोबाइल सेक्टर ने वित्त वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में बहुत खराब प्रदर्शन किया। दो पहिया वाहनों, यात्री कारों और वाणिज्यिक वाहनों सभी को मिलाकर राजस्व अनुमान से ज्यादा रहा।

हालांकि इसकी वजह इन सेगमेंट में कीमतों में बढ़ोतरी रही। कंपनियों ने बढ़ती लागत की वजह से कीमतों में भी बढ़ोतरी की। हालांकि प्रॉफिट मार्जिन लागत के दबाव की वजह से आशा से कम रहा। कच्चे माल की कीमतों ने पूरी तिमाही के परिणामों को प्रभावित किया क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी तिमाही के कुछ भाग में ही लागू रहीं। इसने ऑटोमोबाइल कंपनियों के लाभ को काफी प्रभावित किया।

बढ़ती महंगाई से कर्मचारियों पर किया जाने वाला खर्च भी पड़ा। ऊर्जा व तेल की कीमतें और परिवहन लागत भी बढी। सेक्टर की सभी कंपनियों का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन गिरा। भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों ने लागत में बढ़ोतरी की वजह से अनुमानित परिणाम से भी कमजोर प्रदर्शन किया। हीरो होंडा ने अच्छा प्रदर्शन किया और उसका मार्जिन 1.20 फीसदी बढ़ा।

महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, मारुति सुजुकी, बजाज ऑटो और अशोक लीलैंड का मार्जिन दबाव में देखा गया। एक ऑटो विश्लेषक के अनुसार अगली तिमाहियों में भी सेक्टर का भविष्य अच्छा नहीं है। आने वाली तिमाहियों में ब्याज दरों में बढोतरी की वजह से मांग और वॉल्यूम ग्रोथ दोनों प्रभावित हो सकती है।

कंपनी विशेष के परिणामों में टाटा मोटर्स ने इस तिमाही में ऊंची लाभांश आय अर्जित की जिससे कंपनी को करों के भुगतान के बाद ऊंचा लाभ पाने में मदद मिली। इस तरह की आय संतुलित नहीं है। मारुति सुजुकी के लाभ में मौजूदा तिमाही में तेज गिरावट देखी गई। महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अच्छा वॉल्यूम दिखाया और उसके मार्जिन में भी बहुत कम कमी देखी गई।

ऑटोमोबाइल की बिक्री धीमी गति से बढ़ेगी क्योंकि टाटा और मारुति दोनों की अगस्त 2008 की बिक्री में घटी। महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अच्छा प्रदर्शन किया और उसके यूटीलिटी वाहनों की बिक्री 5.2 फीसदी बढ़ी और ट्रैक्टर सेगमेंट की बिक्री में 15.6 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई।

उपभोक्ता वस्तु

लागत बढ़ने से एफएमसीजी कंपनियों के अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने का सेक्टर के परिणामों पर कुछ खास असर नहीं पड़ा और सेक्टर की पहली तिमाही के परिणाम हमारी आशा के अनुरूप नहीं रहे।

एफएमसीजी कंपनियों ने बिक्री में तेज बढ़ोतरी दर्ज की। इसकी वजह तेज वॉल्यूम ग्रोथ और कीमतों में बढ़ोतरी रही। हालांकि लागत में तेज बढ़ोतरी और बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए किए गए प्रचार पर खर्च की वजह से प्रॉफिट मार्जिन पर असर पड़ा।

घरेलू प्रतिरोधों और वैश्विक स्तर पर कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से अनाज और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई जिसका असर पहली तिमाही के परिणामों पर भी दिखा। अनाज और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने एफएमसीजी कंपनियों के परिणामों को प्रभावित किया। मजबूत सेल्स ग्रोथ की वजह कीमतों में पांच से सात फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 13 से 15 फीसदी की वॉल्यूम ग्रोथ रही।

अपवादस्वरूप सोप और डिटरजेंट सेगमेंट में कोई गिरावट नहीं आई जबकि ज्यादातर एफएमसीजी कंपनियों ने इस सेगमेंट में दाम बढाए। लाभ पर दबाव बरकरार रहा क्योंकि दाम में बढ़ोतरी लागत में बढ़ोतरी से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं रही। हालांकि कुछ कंपनियों के लिए लाभ में कमी एक फीसदी के स्तर पर रही। हिंदुस्तान यूनीलीवर के पहली तिमाही के परिणामों में राजस्व में 21.1 फीसदी की शानदार बढ़त दर्ज की गई।

कंपनी को अपने एफएमसीजी सेक्टर के बेहतर प्रदर्शन का फायदा भी मिला जो 19.1 फीसदी के लिहाज से बढ़ा। होम और पसर्नल सेगमेंट में 20 फीसदी की बढ़त देखी गई जबकि अनाज सेगमेंट में 14.7 फीसदी की वृध्दि देखी गई। आईटीसी के सिगरेट कारोबार में 5.7 फीसदी की बढ़त देखी गई जबकि एफएमसीजी कारोबार ने 27.9 फीसदी की राजस्व बढ़त दर्ज की। 

पर्सनल केयर सेगमेंट में नए लांच की वजह से किए गए प्रचार की लागत में तेज बढ़ोतरी और ब्रांडिंग में आए खर्च की वजह से कंपनी के लाभ पर असर पड़ा। टाटा टी को भी चाय की कीमतों में बढ़ोतरी का नुकसान उठाना पड़ा और इस वजह से उसके इस तिमाही के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में 4.2 फीसदी की कमी आई। भारतीय चाय की जबरदस्त वैश्विक मांग और दार्जीलिंग में संकट के कारण चाय के दामों पर असर पड़ सकता है।

मैरिको की शुध्द बिक्री में 28.1 फीसदी की बढ़त रही और उसका शुध्द लाभ 15.1 फीसदी के लिहाज से बढ़ा। मैरिको के सभी उत्पादों की कीमतों में पिछले 12 महीनों में की गई बढ़ोतरी से ऑपरेटिंग प्रॉफिट में तेज गिरावट से बचने में मदद मिली। लागत में आगे होने वाली किसी भी बढ़ोतरी का एफएमसीजी कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ेगा और उनके लिए इस लागत पर ग्राहकों पर माल बेचना मुश्किल होगा।

पूंजीगत सामान

कैपिटल गुड्स यानी पूंजीगत सामान के क्षेत्र के राजस्व में बढ़ोतरी बदस्तूर जारी है। कैपिटल गुड्स सेक्टर में कंस्ट्रक्शन, इंजीनियरिंग और पावर इक्विपमेंट निर्माता शामिल हैं। इनके राजस्व में 36 प्रतिशत का जबकि शुध्द मुनाफे में 26.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

जबरदस्त ऑर्डर पड़े होने के कारण कंस्ट्रक्शन कंपनियों के राजस्व में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राजस्व में यह बढ़ोतरी इन कंपनियों की परियोजनाओं को लागू करने की दृढ़ इच्छाशक्ति की परिचायक है। पावर इक्विपमेंट कंपनियों के राजस्व में 25.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और बीएचईएल ने अपने राजस्व में 33.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है।

सहायक विदेशी इकाइयों के बेहतर प्रदर्शन करने के कारण क्रॉम्पटन के राजस्व में भी अपेक्षा से अधिक की बढ़ोतरी हुई जबकि एबीबी का प्रदर्शन अनुमान से कम रहा। दूसरी तरफ कर्यान्वयन में तेजी और बेहतर ऑर्डर बुक होने के कारण इंजीनियरिंग क्षेत्र में 48.2 प्रतिशत का विकास दर्ज किया गया। एल एंड टी का प्रदर्शन 53 प्रतिशत के साथ जबरदस्त रहा जबकि थर्मेक्स के राजस्व में 8 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी हुई।

कंस्ट्रक्शन एंड पावर इक्विपमेंट कंपनियों को पावर, इंडस्ट्रियल स्ट्रक्चर्स, बिल्डिंग्स, सिंचाई, जल आपूर्ति, शहरी विनिर्माण आदि क्षेत्र से मिल रहे ऑर्डर से इनका अच्छा प्रदर्शन बरकरार रहने की संभावना है। पावर जेनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन में कैपेक्स की बढ़ोतरी होने से पावर इक्विपमेंट कंपनियों को मिलने वाले ऑर्डर में इजाफा हुआ है। ऑर्डर में यह बढ़ोतरी अगले 12 महीने चलेगी।

विश्लेषक आईडीएफसी-एसएसकेआई के अनुसार कंस्ट्रक्शन कंपनियों को मिलनेवाले ऑर्डर में कमी की कोई संभावना फिलहाल नहीं है क्योंकि पावर, शहरी विनिर्माण और सिंचाई और सरकार की अन्य विनिर्माण परियोजनाओं के इसी तरह से बेहतर प्रदर्शन की संभावना है।

इससे भी बड़ी बात यह है कि पिछले तीन से चार महीनों के दौरान एनएचएआई ने हाईवे बीओटी को आवंटित करने में तेजी दिखाई है जिससे विश्लेषकों को लगता है कि अगले 3 से 8 महीनों के दौरान सड़क निर्माण की प्रक्रिया में और तेजी आएगी। पावर कैपेसिटी में इजाफा न होने से इक्विपमेंट कंपनियों के ऑर्डर में और तेजी आने की उम्मीद है।

औषधि

फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों का प्रदर्शन जून 2008 को समाप्त  तिमाही में बेहतर रहा और कॉंट्रैक्ट मैन्युफेक्चरिंग कंपनियों की वजह से इन कंपनियों की कुल बिक्री में 23 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई।

बहुत सारी कंपनियों के लिए वर्ष 2008 के लिए सेल्स ग्रोथ काफी जबरदस्त रही और इसकी मुख्य वजह अधिग्रहण, तेजी से विकास कर रहे बाजारों मे दोहरे अंकों की बढ़ोतरी, अमेरिकी बाजारों में अपने पोर्टफोलियो में विस्तार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा जबरदस्त आउटसोर्सिंग रही।

सीआरएएमएस में शामिल कंपनियों को भारत से होनेवाले आउटसोर्सिंग में बढ़ोतरी से फायदा हो रहा है। अधिकांश कंपनियों के निर्यातक होने और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में मजबूती आने की आशंका के बीच इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2008 में अच्छा फॉरवर्ड कवर बुक किया।

इन फॉरवर्ड कवर्स को लगभग 39 से 41 रुपये के बीच लिया गया है जबकि तिमाही के दौरान इसके बंद होने के समय दर 43 रुपये थी जिससे कंपनियों को इस तरह के कवर पर एमटीएम फॉरेक्स घाटे को बुक करने केलिए मजबूर होना पडा। कई कंपनियों ने सस्ते विदेशी करेंसी ऋण और एफसीसीबी लेना शुरू कर दिया और इसलिए उनको इस तरह के उधार पर एमटीएम फॉरेक्स घाटे को बताना आवश्यक हो गया।

जिन पर इस तरह के उधार का प्रतिकूल असर पडा है, उनमें रैनबेक्सी, जुबलिएंट, ऑर्गेनोसिस और सिपला शामिल हैं। मोतीलाल ओसवाल के फार्मा विश्लेषक फर्मास्यूटिकल्स कंपनियों के प्रदर्शन से खुश हैं। भविष्य में इन कंपनियों की सफलता जेनेरिक प्रोडक्ट पोर्टफोलियो, जिसमें सामान्य, कम प्रतिस्पर्धावाले और पेटेंट चैलेंजेज प्रोडक्ट शामिल हैं, पर निर्भर करेगी।

बहुराष्ट्रीय फर्मास्युटिकल्स के मामले में ब्रांड बिल्डिंग और नए उत्पादों पर सारा दारोमदार रहेगा। फार्मा कंपनियों की टॉपलाइन ग्रोथ अनुमान के अनुसार रही। जो मुख्य बातें सामने निकलकर सामने आईं, उनमें तेजी से विकास कर रहे बजारों में जबरदस्त तेजी और अमेरिकी बाजार में कीमतों का दबाब का कम होना शमिल रहा।

ज्यादातर भारतीय कंपनियों ने कुछ साल पहले अमेरिकी बाजार केप्रति जबरदस्त उत्सुकता दिखाई थी जिसका नतीजा अब अधिक संख्या में प्रोडक्ट एप्रूवल के रूप में सामने आ रहा है जिससे उनका विकास हो रहा है। अधिक प्रतिस्पर्धा वाले उत्पादों की कीमतों में आ रही कमी 95 से 97 प्रतिशत पर स्थिर हो गई है और कम प्रतिस्पर्धावाले उत्पाद के लिए यह अपेक्षाकृत कम स्तरों पर स्थिर हुआ है।

अत: नए एप्रूवल और कीमतों में आ रही कमी इन दोनों के संयोग से अमेरिका में इन कंपनियों की टॉपलाइन ग्रोथ में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कॉट्रेक्ट रिसर्च एंड मैनुफेक्चरिंग सर्विस सेगमेंट (सीआरएएमएस) की कंपिनयों का टॉपलाइन ग्रोथ, एमएनसी फर्मास्यूटिकल्स कंपनियों के द्वारा एशिया से आउटसोर्सिंग में बढ़ोतरी किए जाने से बेहतर रहना जारी है। हालांकि पश्चिमी यूरोप में किए जानेवाले उनके कारोबार में टॉपलाइन ग्रोथ एक अंक में रही  है।

आईटी

लुढ़कता रुपया 17 महीनों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है और अब इसकी कीमत डॉलर की तुलना में 44 रुपए से ऊपर है। यह भारत के  सूचना प्रौद्योगिकी जगत केलिए अच्छा समाचार है। रुपये में होने वाली एक फीसदी गिरावट से सूचना प्रोद्योगिकी कंपनियों के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में 0.3 फीसदी से 0.5 फीसदी तक का सुधार होता है। यह तथ्य निवेशकों से छुपा हुआ नहीं है।

बाजार में गिरावट आने के बावजूद बड़ी सूचना प्रोद्योगिकी कंपनियों जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विस, सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज, विप्रो लिमिटेड, एचसीएल टेक्नोलॉजी के शेयरों में तेज सुधार देखा गया। विश्लेषकों का अनुमान है कि गिरते रुपए का सूचना प्रोद्योगिकी कंपनियों के तिमाही परिणामों पर तुरंत असर होगा।

एक बाजार विश्लेषक का कहना है कि इसका राजस्व पर सकारात्मक असर पड़ेगा। लेकिन यही समय है जब कंपनियां अपनी हेजिंग रणनीति पर फिर से विचार करें। फर्म जैसे एचसीएल जिन्होंने बहुत ज्यादा हेज किया है, उन्हें गिरते रुपये का लाभ नहीं मिलेगा।

सूचना प्रोद्योगिकी कंपनियों को पहली तिमाही में रुपए के गिरने का फायदा नहीं मिला क्योंकि कंपनियों ने रुपए की मजबूती की संभावना के चलते अपने निर्यात को एडवांस के रुप में हेज कर रखा था। इसमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि पहली तिमाही में शीर्ष चार कंपनियों को 261 करोड क़ा मार्क-टू-मार्केट नुकसान झेलना पड़ा।

सूचना-प्रोद्योगिकी कंपनियों के शेयरों का कारोबार मौजूदा समय में अब तक के न्यूनतम स्तर पर हो रहा है और इसकी वजह इनकी आय में निवेशकों का कमजोर विश्वास होना है। पहली तिमाही के परिणामों से भी इनकी डिमांड रिकवरी के कोई संकेत नहीं मिले। नए सौदों और हायरिंग में कमी का प्रभाव आईटी शेयरों पर पड़ा।

टीसीएस को 81 करोड़ की शुध्द फॉरेक्स हानि और 408 करोड़ का एमटीएम हानि होगी जब रुपया गिरकर 45 रुपये के करीब पहुंच जाता है। हालांकि यदि घरेलू मुद्रा 43 रुपये के स्तर पर बनी रहती है तो अगले आठ से दस महीनों में एमटीएम हानि 168 करोड़ रुपये की होगी। टीसीएस की सालाना राजस्व ग्रोथ बड़ी कंपनियों में सबसे धीमी रही और इसके ही ऑपरेटिंग मार्जिन में कमी देखी गई।

इन्फोसिस ने दूसरी तिमाही में गति पकडी और इसके पूरे साल के दौरान बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना है। तिमाही आधार पर उसने 28.7 फीसदी का राजस्व ग्रोथ अर्जित किया। लेकिन इसके पांच शीर्ष क्लाइंट की भागेदारी 8.5 फीसदी घटी। ऑपरेटिंग मार्जिन 174 फीसदी सालाना आधार पर बढ़ा लेकिन तिमाही आधार पर 2.07 फीसदी घटी।

First Published : September 3, 2008 | 10:35 PM IST