वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में बदलाव के बीच अब मोबाइल फोन विनिर्माता भी 18 फीसदी के बजाय 5 फीसदी जीएसटी की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे इस श्रेणी में मांग बढ़ेगी, जो बीते चार वर्षों से 15 करोड़ इकाइयों पर ही स्थिर रही है। ऊंची जीएसटी दरों ने कंपनियों की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं पर प्रतिकूल असर डाला है और विनिर्माण क्षेत्र में लागत असमानता को बढ़ाया है। नतीजतन, भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता भी प्रभावित हुई है।
इस साल की शुरुआत में उपकरण बनाने वाली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले उद्योग निकाय ने वित्त मंत्रालय को जीएसटी दर को घटाकर 12 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया था, क्योंकि सरकार जीएसटी दर स्लैब में बदलाव करने पर विचार कर रही है। मगर अब 15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा जीएसटी में सुधार लाने और आम आदमी पर बोझ कम करने की घोषणा के बाद निकाय सबसे कम दर वाले स्लैब की मांग करने लगा है।
इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पंकज महिंद्रू ने कहा, ‘इससे करोड़ों उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। भले ही मेक इन इंडिया में इस क्षेत्र का प्रदर्शन दमदार है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में मोबाइल फोन की मांग कमजोर रही है। पिछले पांच चार वर्षों में इसकी बिक्री सालाना 29 करोड़ से घटकर 22 करोड़ रह गई है और स्मार्टफोन की बिक्री भी करीब 15 करोड़ पर स्थिर बनी हुई है।’ इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन ऑफ इंडिया ऐपल सहित कई मोबाइल फोन विनिर्माता का प्रतिनिधित्व करता है। उच्च जीएसटी दरों ने सामर्थ्य, डिजिटल पहुंच और घरेलू बाजार के विस्तार को भी समान रूप से प्रभावित किया है।
उद्योग का यह भी तर्क है कि दर में बदलाव से पुर्जों और सहायक उपकरणों की दरों में विसंगतियां आई हैं और उन्होंने आग्रह किया है कि उन्हें भी 5 फीसदी के दायरे में लाया जाए। इसके अलावा, जीएसटी परिषद के अंतर्गत आने वाली फिटमेंट समिति ने 5 फीसदी दर का प्रस्ताव रखा था मगर परिषद ने 2020 में दर को 12 से बढ़ाकर 18 फीसदी कर दिया था।
महिंद्रू ने कहा, ‘फिटमेंट फॉर्मूला के मुताबिक, मोबाइल फोन पर 5 फीसदी जीएसटी लगना चाहिए था, क्योंकि वैट और उत्पाद शुल्क फॉर्मूले के मुताबिक मोबाइल फोन 5 फीसदी वाली श्रेणी में आते थे। 18 फीसदी की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने मांग को बुरी तरह प्रभावित किया है।’