चीन की सरकार द्वारा फाइबर ऑप्टिक पर डंपिंगरोधी शुल्क लगाए जाने से इसका उत्पादन करने वाली स्टरलाइट टेक्नोलॉजिज जैसी भारतीय कंपनियों का लगभग 50 फीसदी वैश्विक बाजार खिसक सकता है। चीन की सरकार ने भारत में विनिर्मित एकल मोड वाले फाइबर ऑप्टिक पर डंपिंगरोधी शुल्क को अगले पांच साल के लिए बढ़ाने की घोषणा की है। यह शुल्क 7.4 फीसदी से 30.6 फीसदी के दायरे में लगाया गया है।
फाइबर ऑप्टिक की कुल वैश्विक खपत में चीन का योगदान 50 फीसदी है। कोविड-19 के कारण समग्र मांग में नरमी के कारण फाइबर ऑप्टिक की मांग घटकर फिलहाल करीब 50 करोड़ किलोमीटर सालाना रह गई है। एकमात्र कंपनी चाइना टेलीकॉम इसका सबसे अधिक खपत करती है जो कुल वैश्विक फाइबर खपत का करीब 25 से 30 फीसदी है। जबकि फाइबर की कुल वैश्विक क्षमता करीब 70 से 75 करोड़ किलोमीटर सालाना है जिसमें चीन का योगदान करीब 50 करोड़ किलोमीटर सालाना है।
सूत्रों ने बताया कि स्टरलाइट जैसी कंपनियां 100 से अधिक देशों को फाइबर ऑप्टिक का निर्यात करती हैं। ये कंपनियां करीब 70 फीसदी फाइबर और केबल का निर्यात करती हैं लेकिन चीन में शुल्क लगाए जाने के कारण अब उन्हें विश्व के सबसे बड़े बाजार में प्रवेश से वंचित रहना पड़ सकता है।
चीन की सरकार के इस पहल को दोनों देशों के बीच बढ़ते गतिरोध के संदर्भ में देखा जा रहा है। इससे पहले भारत सरकार ने कई चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया था जिसमें लोकप्रिय टिक टॉक भी शामिल है। साथ ही भारत ने दूरसंचार गियर बनाने वाली चीन की कंपनी हुआवे को भी 5जी से दूर रखने का संकेत दिया है।
हालांकि भारत से चीन को ऑप्टिक फाइबर का निर्यात लगभग नगण्य रहा है लेकिन भारतीय कंपनियां चीन द्वारा लगाए गए भारी आयात शुल्क संबंधी बाधाओं से निपटने की कोशिश कर रही थीं। स्टरलाइट ने कहा कि पिछले पांच साल के दौरान उसने चीन को 1 लाख किलोमीटर से अधिक फाइबर का भी निर्यात नहीं कर पाई है। इसे भारतीय कंपनियां स्टरलाइट और बिड़ला फुरुकावा फाइबर ऑप्टिक्स की उस पहल के संदर्भ में भी देखा जा रहा है जिसके तहत पिछले साल अगस्त में दोनों कंपनियों ने डीजीटीआर में शिकायत करते हुए चीन से होने वाले ऑप्टिक फाइबर के निर्यात पर डंपिंगरोधी शुल्क लगाए जाने की मांग की गई थी। इस निर्णय से अगले कुछ सप्ताह में सरकार चीन से होने वाले आयात पर 25 फीसदी अनंतिम सुरक्षा शुल्क भी लगा सकती है।
