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भंवर में फंस गई ‘सत्यम’ की कश्ती

Last Updated- December 09, 2022 | 9:06 PM IST

कंपनी के बहीखातों में फर्जीवाड़ा करने के बाद राजू और निदेशक मंडल के बाकी सदस्य, ऑडिटरों और बैंकरों के खिलाफ क्या कदम उठाए जा सकते हैं?


यह उनकी असफलता नहीं है, बल्कि जानबूझकर की गई धोखेबाजी है। इसीलिए यह आपराधिक विश्वासघात की श्रेणी में आता है और इस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत कई धाराएं लग सकती हैं।

सार्वजनिक तौर पर जो जानकारियां मिली हैं उनके आधार पर इस मामले से जुड़े लोगों ने कई फर्जीवाड़े किए हैं। इसके तहत आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा, गलत बहीखाते बनाना, झूठे इलेक्ट्रिनिक बहीखाते बनाना आदि शामिल हैं। 

धारा 405 में लिखा गया है कि आपराधिक विश्वासघात करने वाले व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 406 के तहत तीन साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों ही लगाए जा सकते हैं। धारा 420 के तहत धोखाधड़ी करने वाले व्यक्ति को 7 साल तक की जेल और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

धारा 463 में कहा गया है कि फर्जीवाड़ा करने पर आईपीसी धारा 465 के तहत दो साल की जेल और जुर्माना या जुर्माना या फिर दोनों ही लगाए जा सकते हैं। धारा 120ए में बताया गया है कि आपराधिक जालसाजी के मामला साबित होने पर आईपीसी की धारा 120बी के तहत सजा दी जाती है।

सेबी अधिनियम में धारा 24 के तहत सत्यम के निदेशक मंडल, ऑडिटर और बैंकरों को 10 साल की सजा और 25 करोड़ रुपये का जुर्माना हो सकता है। लेकिन अगर अधिकारी जुर्माने की रकम नहीं दे पाते हैं तो उन्हें 4 महीने से लेकर 10 साल तक की अतिरिक्त सजा हो सकती है।

हालांकि सेबी को लिखे गए पत्र के आधार पर ही राजू को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। उनपर आरोप साबित करने के लिए और भी कई सबूतों की जरूरत पड़ेगी।

अगर आरोप साबित हो जाता है कंपनी लॉ बोर्ड की धारा 397 के और आर्थिक अपराध शाखा के पास कंपनी के प्रवर्तकों की परिसंपत्ति पर कारोबार करने की लोग लगा दी जाए।

मौजूदा हालात में क्या सरकार कंपनी का प्रबंधन अपने हाथ में लेकर किसी प्रशासक को कंपनी के मामले देखने के लिए नियुक्त  कर सकती है?

नहीं, सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। सत्यम कोई पीएसयू या को-ऑपरेटिव सोसाइटी नहीं है।

क्या सरकार और नियामक संस्था मौजूदा अंतरिम प्रबंधन को हटाकर नया प्रबंधन नियुक्त कर सकती है?

हां, नियामक संस्था सेबी के पास ऐसा करने का अधिकार है।

क्या इस मामले में स्वतंत्र निदेशकों की भी जवाबदेही बनती है?

नहीं, जब तक उन पर इस धोखाधड़ी में जानबूझकर शामिल होने का आरोप अदालत में साबित नहीं हो जाता तब तक उनके खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा।

इस मामले में सेबी को लिखे गए राजू के पत्र की क्या अहमियत है?

राजू ने अपने पत्र में सत्यम कंप्यूटर्स में की जा रही धोखाधड़ी और अनियमितताओं को स्वीकार किया है। उन्होंने यह पत्र सत्यम कंप्यूटर्स के निदेशक मंडल, सेबी और स्टॉक एक्सचेंज को लिखा था।

सेबी ने इस पत्र पर क्या कदम उठाया है?

सेबी ने इस पर कदम उठाते हुए एक जांच समिति बनाई है। यह समिति इन पांच चीजों की जांच करेगी। यह बाते हैं –

क्या इस मामले में कोई व्यक्ति सेबी (प्रतिभूति बाजार से संबद्ध धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार निषेध) नियमन 2003 के तहत दोषी है या नहीं।

किसी व्यक्ति ने इस मामले में सेबी के (भेदिया कारोबार निषेध)नियमन, 1992 का उल्लंघन किया है।

क्या किसी मचर्ट बैंकर ने इस धोखाधड़ी में सेबी के (मचर्ट बैंकर्स) नियम और नियमन, 1992 का उल्लंघन किया है।

क्या सत्यम मामले में किसी ने सेबी (शेयर हस्तांतरण एवं अधिग्रहण) नियमन, 1997 का उल्लंघन किया है।

क्या इस मामले में सिक्योरिटीज करार (नियमन) अधिनियम 1956 और अधिसूचना का उल्लंघन भी हुआ है।


क्या इस मामले में हुए खुलासे से इनमे से किसी भी आरोप की पुष्टि हुई है?

रामलिंग राजू ने जो खुलासा किया उससे कई आरोपों की पुष्टि हुई है। यह सभी जुर्म भारतीय दंड संहिता, भारतीय कंपनीज अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम और सेबी के क्लॉज 49 का भी उल्लंघन है।

क्या आईटी अधिनियम के तहत भी सत्यम मामले में कोई हेरा-फेरी की गई है?

अभी तक सामने आई जानकारी से एक बात तो सामने आई है कि 30 सितंबर 2008 को समाप्त हुई तिमाही में कंपनी ने जो भी आंकड़े पेश किए थे वह सब गलत थे। कंपनी ने अपनी बैलेंस शीट में मुनाफे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया।

इसके अलावा कंपनी ने 5,040 करोड़ रुपये की नकद रकम भी दिखाई क्योंकि कंपनी के पास ऐसी कोई रकम है ही नहीं। साथ ही 376 करोड़ रुपये का मुनाफा भी दिखाया गया जबकि ये मुनाफा तो हुआ ही नहीं था।

इस पत्र से साफ जाहिर होता है कि राजू कई साल से कंपनी के बहीखातों में हेरा-फेरी कर रहे थे। आजकल सभी कंपनियां इस इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट पर ही रिकॉर्ड रखती हैं।

ऐसे में कंपनी पर गलत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड रखने का आरोप लग सकता है। गलत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड रखने के लिए आईटी अधिनियम 2000 के तहत भारतीय दंड सहिंता में धारा 464 लागू है।

कंपनी के खिलाफ अमेरिकी नियामक संस्थाएं क्या कदम उठा सकती हैं?

अमेरिका में सत्यम के खिलाफ पहले ही दो याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। इसके अलावा न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ने कहा था, ‘फिलहाल अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज नियामक इस पूरे मामले पर नजर रख रही है।’

(एम वी किनी ऐंड कंपनी, सर्वोच्च न्यायालय के वकील पवन दुग्गल और साइबर कानून के जानकार से बातचीत पर आधारित)

First Published - January 9, 2009 | 10:42 PM IST

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