देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के राजस्व का लगभग 45 फीसदी बैंकिंग, वित्तीय और इंश्योरेंस क्षेत्र से ही आता है।
दुनिया भर में छाई आर्थिक मंदी से टीसीएस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी एस रामादुरै जरा भी विचलित नहीं हैं।
उनका मानना है कि इन मुश्किल हालात में लागत घटाने के लिए आईटी एक सक्षम हथियार साबित हो सकता है। कल्याण रामनाथन से बातचीत के दौरान रामादुरै ने अंतरराष्ट्रीय मंदी पर अपने विचार रखे। मुख्य अंश:
पिछले कुछ हफ्तों में सिटीगुप जिन हालात से गुजरा है, उसके बाद भी क्या सिटीग्रुप से अगले 10 साल तक 12,500 करोड़ रुपये का कारोबार मिलने वाला करार बरकरार है?
बिल्कुल, यह एक लिखित कानूनी समझौता है। सिटी ग्रुप को इस करार की सभी शर्तों को मानना ही होगा।
टीसीएस ने सिटी ग्रुप की बीपीओ इकाई को खरीदने की घोषणा अक्टूबर में की थी। लेकिन अगर मौजूदा हालात में आपके सामने इसे खरीदने की पेशकश आती तो भी क्या आप सिटीग्रुप ग्लोबल सर्विसेज को खरीदते?
जी हां, बिल्कुल। देखिए यह करार सिर्फ बीपीओ के लिए नहीं है। इसके साथ हमें आईटी क्षमताओं वाली पूरी टीम भी मिलती। इसके साथ ही हमें 27-28 आयु वर्ग के लगभग 12,000 दक्ष कर्मचारी भी मिल रहे हैं।
इसके अलावा हम सीजीएसएल की सेवा दूसरे ग्राहकों को भी दे सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंदी की सबसे ज्यादा मार बीएफएसआई (बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा) पर पड़ी है। ऐसे में जब कंपनी की लगभग 45 फीसदी कमाई इसी उद्योग से आती है, तो क्या आप चिंतित हैं? क्या कंपनी इस क्षेत्र पर अपनी निर्भरता कम करने के बारे में भी सोच रही है?
मैं यह नहीं कह सकता हूं कि हम इस क्षेत्र में अपना कारोबार घटाएंगे, क्योंकि इससे हमारे बैंकिंग ग्राहक चिंतित हो जाएंगे। इससे हटकर हमारी योजना अपना कारोबार अमेरिका और यूरोप के अलावा भारत, लैटिन अमेरिका, चीन, ऑस्टे्रलिया और जापान में भी बढ़ाने की है।
इसके साथ ही हम बीएफएसआई के अलावा जीवन विज्ञान और हेल्थकेयर, रिटेल, मीडिया और एंटरटेनमेंट में भी कदम रखेंगे।
क्या अमेरिका और यूरोप में छाई मंदी कंपनी को घरेलू बाजार में कारोबार करने पर मजबूर कर रही है?
टीसीएस की लगभग 11 फीसदी कमाई घरेलू बाजार से ही आती है। भारत एक ऐसा बाजार है जिसे कोई भी आईटी कंपनी दरकिनार नहीं कर सकती है।
हमने हमेशा ही घरेलू बाजार पर ध्यान दिया है जबकि बाकी कंपनियों ने अभी ऐसा करना शुरू किया है।
क्या टीसीएस भी छंटनी, अधिग्रहण में होने वाले खर्च पर कटौती करने और विस्तार योजनाएं टालने जैसे कदम उठा रही है?
नहीं, अभी हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं। लागत कम करना हमारे लिए हमेशा ही जरू री रहा है, चाहे वह बिजली, यात्रा और कम्युनिकेशन हो।
हमें सिर्फ यह देखना है कि हम सफलता पूर्वक इसमें सुधार कर रहे हैं या नहीं। ऐसे समय में हमने सबसे कठिन फैसला लिया है- समय रहते ग्राहकों से पैसा वसूलना।