सरकार विनिवेश प्रक्रिया में लगने वाला समय कम करने की दिशा में काम कर रही है। नीति आयोग और निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) विनिवेश प्रक्रिया में लगने वाला समय 12-13 महीने से कम कर महज कुछ महीनों तक सीमित करने की संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। इनमें सलाहकार की नियुक्ति और बोलीदाताओं को सूचनाएं देने में लगने वाले समय में कटौती सहित विनिवेश प्रक्रिया में विभिन्न चरणों में होने वाली औपचारिकताओं में कमी करने जैसी बातें शामिल होंगी।
सरकारी अधिकारियों के अनुसार निजीकरण प्रक्रिया में आमूल-चूल बदलाव के लिए यह प्रस्ताव लाया गया है। इसमें विनिवेश के लिए प्रस्तावित इकाइयों को लेकर नीति आयोग की सिफारिशें मिलने के बाद आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से अनुमति लेना भी शामिल हो सकता है। इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, ‘हम पूरी प्रक्रिया में लगने वाला समय 90 प्रतिशत तक कम करना चाहते हैं। ऐसा करने से निजीकरण प्रक्रिया तेजी से निपटाई जा सकेगी।’ इस प्रस्ताव की बारीक बातों पर एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि कंपनियों के निजीकरण पर कोर ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज ऑन डाइवेस्टमेंट (सीजीडी) से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। अधिकारी ने कहा कि खासकर गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में यह बात ठोस रूप से लागू होगी। उन्होंने कहा कि सलाह-मशविरा और सीजीडी द्वारा अनुमति लेने में काफी समय लगता है, जिससे विनिवेश प्रक्रिया में देरी होती है। अधिकारी ने कहा इस बात पर विचार चल रहा है कि सीजीडी की अनुमति लेनी जरूरी है या नहीं।
फिलहाल विनिवेश प्रक्रिया कुछ इस तरह है कि नीति आयोग विनिवेश के लिए कंपनियों की एक सूची तैयार करती है जिस पर कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाला सीजीडी विचार करता है। सीजीडी अपने सुझाव अल्टरनेटिव मैकेनिज्म (एएम) को देता है। एएम में वित्त मंत्री, प्रशासनिक सुधार मामलों के मंत्री और सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री शामिल होते हैं। एएम से स्वीकृति मिलने के बाद दीपम सैद्धांतिक मंजूरी पाने के लिए विनिवेश प्रस्ताव सीसीईओ को अग्रसारित करता है।
इस समय रणनीतिक विनिवेश में करीब 12 चरण होते हैं। एक-एक सार्वजनिक उपक्रमों के बजाय क्षेत्रवार आधार पर विनिवेश की अनुमति मांगने पर भी विचार हो रहा है। सारी चीजें तय होने पर इन बदलावों के संबंध में एक कैबिनेट नोट जारी किया जाएगा।