निजी इक्विटी (पीई) कंपनियां और सॉवरिन फंड टाटा संस में शापूरजी पलोनजी की 18.4 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकती हैं मगर उनकी दो शर्तें हैं। वे चाहती हैं कि उन्हें शेयर 20 से 40 फीसदी कम दाम पर मिलें और उन्हें बाद में हिस्सेदारी बेचने का विकल्प भी दिया जाए।
एक प्रमुख वैश्विक पीई फंड के वरिष्ठ कार्याधिकारी ने कहा, ‘हम जैसे प्राइवेट इक्विटी फंड शेयर खरीदने को तैयार हैं मगर 15-20 अरब डॉलर मूल्य वाले शेयर 20 से 40 फीसदी कम भाव मिलने चाहिए क्योंकि हम होल्डिंग कंपनी में शेयर खरीद रहे हैं।’ इसके पीछे दलील देते हुए उन्होंने कहा कि पीई फर्मों के पास टाटा संस की तीनों सूचीबद्घ कंपनियों टीसीएस, टाटा मोटर्स और टाटा स्टील के शेयर किसी भी समय सीधे खुले बाजार से खरीदने का विकल्प मौजूद है। टाटा संस की सबसे कीमती कंपनियां ये तीनों ही हैं। अधिकारी ने कहा, ‘होल्डिंग कंपनी में निवेश करना म्युचुअल फंड में पैसे लगाने जैसा है। टाटा संस की ज्यादातर कीमत केवल टीसीएस के बल पर है। हम बाकी कंपनियों की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले रहे हैं। ऐसा तभी किया जा सकता है, जब शेयर काफी कम कीमत पर मिलें। हमारे पास एकमुश्त शेयर खरीदने के लिए नकदी भी है, जिससे उन्हें किस्तों के बजाय एक ही बार में पूरी रकम मिल जाएगी।’
दूसरी शर्त यह है कि उन्हें शेयर बेचकर कंपनी से बाहर निकलने का विकल्प भी दिया जाए क्योंकि टाटा संस सूचीबद्घ कंपनी नहीं है। पीई फंड आम तौर पर बड़े सौदों में औसतन 4 से 8 साल के बाद हिस्सेदारी बेचने के बारे में सोचते हैं। सॉवरिन फंड लंबे समय तक निवेश बनाए रख सकते हैं और उनका रवैया कुछ लचीला भी होता है।
बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी से बाहर निकलने का रास्ता देने के लिए टाटा संस को सूचीबद्घ कराने की जरूरत नहीं होगी। उन्हें यह मंजूर भी नहीं होगा क्योंकि टीसीएस जैसी सभी बड़ी कंपनियों पर नियंत्रण इसी कंपनी के जरिये किया जाता है। लेकिन सॉवरिन फंड शापूरजी पलोनजी की हिस्सेदारी खरीदने के लिए टाटा के साथ विशेष कंपनी बना सकते हैं। इंस्टीटयूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज के अमित टंडन ने कहा, ‘टाटा समूह सॉवरिन फंड के साथ एसपीवी बनाकर शेयर खरीद सकता है। फंड को हिस्सेदारी बेचकर निकलने का विकल्प दिया जा सकता है।’
ऐसी स्थिति में टाटा संस को सूचीबद्घ कराने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन इस बात का समझौता करना होगा कि सॉवरिन फंड को कितने प्रीमियम पर और किस समय बाहर निकलने का मौका दिया जाएगा। यह भी तय होगा कि फंड एक ही बार में पूरी हिस्सेदारी बेच देंगे या टुकड़ों में शेयर बेचेंगे। विशेषज्ञों को लगता है कि सॉवरिन फंड से सौदा बेहतर हो सकता है क्योंकि पीई फंड ज्यादा सस्ते भाव पर शेयरों की मांग करेंगे। टंडन कहते हैं कि टीसीएस जैसी कंपनियों के पास बहुत नकदी है मगर कंपनी अधिनियम के तहत वे अपनी नियंत्रक कंपनी टाटा संस के शेयर नहीं खरीद सकते।
पीई कंपनियां भी मानती हैं कि पिछले 10 साल में ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखा, जहां समूह ने अपनी होल्डिंग कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्घ कराया हो। खासकर टाटा संस जैसी कंपनी को, जो टीसीएस जैसी कीमती कंपनी पर नियंत्रण रखती है। कुछ पीई कंपनियां यह भी कह रही हैं कि टाटा संस के शेयर उनके पास गिरवी रखे जाएं तो वे कंपनी को कर्ज दे देंगी।