बीएस बातचीत
सूचकांक-आधारित निवेश भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। एसऐंडपी डाउ जोन्स में इंडेक्स इन्वेस्टमेंट स्टे्रटेजी के प्रबंध निदेशक टिम एडवड्र्स ने समी मोडक के साथ बातचीत में इंडेक्स प्रबंधन के बारे में विभिन्न रुझानों पर विस्तार से बातचीत की। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
सक्रिय तौर पर प्रबंधित फंडों को सेंसेक्स जैसे सूचकांकों को मात देने में चुनौती का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
हमारा मानना है कि भारत में स्थानीय कारकों के साथ सक्रिय प्रबंधक के प्रदर्शन में समान कमजोरी देख रहे हैं, जिसके लिए तीन स्रोतों को जिम्मेदार माना जा सकता है- अक्सर सक्रिय प्रबंधनकी ऊंची लागत, इक्विटी बाजार कारोबारियों में बढ़ती व्यावसायिकता, और शेयर प्रतिफल में विषमता। दीर्घावधि के दौरान, ऐतिहासिक तौर पर ऐसा देखा गया है कि कुछ खास शेयरों ने अपने सभी प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले काफी अच्छा प्रतिफल दिया है।
क्या आप मानते हैं कि पैसिव निवेश वैश्विक इक्विटी के लिए सही माध्यम है?
ऐतिहासिक तौर पर, भारतीय निवेशकों ने घरेलू तौर पर अपनी पूंजी का निवेश करने में बड़ी दिलचस्पी दिखाई है। खासकर, भारतीय निवेशकों ने विदेश में कई इक्विटी निवेश किए हैं। भारतीय निवेशकों को घरेलू इक्विटी बाजारों से बेहतर प्रदर्शन से मदद मिली थी। शायद वित्तीय सलाहकारों और परिसंपत्ति प्रबंधकों ने वैश्विक विविधता में प्रवेश करने से पहले घरेलू परिसंपत्ति आवंटन पर ध्यान केंद्रित किया है।
यह कहा गया है कि सूचकांक उस वक्त सूचकांक में प्रवेश करती है, जब उसका प्रदर्शन श्रेष्ठ होता है। आपकी क्या राय है?
यह सही है कि कंपनी को किसी बेंचमार्क में शामिल होने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत होती है, लेकिन ऐसी भी कई कंपनियां हैं जो कभी भी इसमें सफल नहीं रहतीं। यदि आप जानते हैं कि कौन सी कंपनी अच्छा प्रदर्शन करने वाली है तो निश्चित तौर पर यह अच्छा निवेश होगा। यह सुझाव देने के लिए कुछ सबूत हैं, जैसे दीर्घावधि के दौरान छोटे शेयर बड़े शेयरों के मुकाबले ज्यादा औसत प्रतिफल हासिल करते हैं, भले ही उनमें जोखिम स्तर ज्यादा होता है। लेकिन फिर भी, आंकड़ा अलग अलग व्याख्यायाओं के लिए स्वतंत्र है। पिछले दशक के दौरान बड़े शेयरों ने कई प्रमुख इक्विटी बाजारों में शानदार प्रदर्शन किया। कई मामलों में, निवेशक बड़ी और छोटी कंपनियों के समावेश पर ध्यान दे सकते हैं, लेकिन ये दोनों ही मजबूत और अच्छी गुणवत्ता वाली होनी चाहिए।
क्या अमेरिका के मुकाबले भारत में सूचकांक संरचना से बड़ी चुनौतियां जुड़ी हुई हैं?
हां और नहीं! एक तरफ, भारत मेें बेंचमार्क निर्माण, गणना की प्रक्रिया अन्य बाजारों के समान ही है। उदाहरण के लिए, बीएसई का सेंसेक्स संरचना के संदर्भ में आज भी काफी हद तक वैसा ही है जैसा यह करीब 40 साल पहले था। लेकिन अब इसे प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर से समर्थन मिला है। मौजूदा समय में एसऐंडपी डीजेआई जैसी प्रख्यात सूचकांक प्रदाता कंपनियां प्रमुख नीतियों, प्रक्रियाओं और उत्पादन दक्षता पर आधारित हैं, जिससे हमारे सूचकांकों की स्वायत्तता, सटीकता और पारदर्शिता का स्तर बढ़ा है। इस संबंध में अलग अलग बाजारों के बीच बड़े अंतर मौजूद हैं।