मंदी के दौरान लटकी हुई हाइवे परियोजनाओं में फिर से जान फूंकने के लिए सरकार ने वाईबिलटी गैप फंडिग (वीजीएफ) की सीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया है।
लेकिन खास बात यह है कि सरकार निजी कंपनियों को बनाओ और चलाओ (बीओटी) आधार पर दी गई हाईवे परियोजनाओं की अलग-अलग परिस्थितियों का आकलन करके ही वीजीएफ को बढ़ाने, न बढ़ाने और कितना बढ़ाने का निर्णय लेगी।
यही नहीं, सरकार ने इन हाइवे परियोजनाओं को पुर्नगठित करने का भी मन बनाया है ताकि इनके निर्माण में आने वाली लागत को कुछ कम किया जा सके। वैसे सरकार का यह कदम मंदी के चलते लटकी पड़ी हाइवे योजनाओं के लिए टॉनिक के तौर पर देखा जा रहा है।
वैसे मंदी के चलते हाइवे परियोजनाओं के निर्माण से जुड़ने में जहां निजी कंपनियां कन्नी काटती नजर आ रही हैं, वहीं इसके चलते कई हाइवे परियोजनाएं अपने पूरे होने के समय से काफी पीछे हैं। गौरतलब है कि नेशनल हाइवे डेवलपमेंट प्रोग्राम 5 (एनएचडीपी 5) के तहत 2008-09 में 3700 किलोमीटर की लंबाई में 6 लेन के हाइवे निर्मित होने हैं।
लेकिन इस परियोजना में अभी तक एक भी हाइवे पर काम शुरू नहीं हो सका है। ऐसे में सरकार की वर्तमान वीजीएफ योजना में देश के भीतर 6500 किलोमीटर पर फैले हुए उन हाइवे की योजनाओं को शामिल किया गया है,जिन पर 6 लेन का निर्माण होना है।
अभी सरकार ने किसी भी योजना की कुल लागत का 10 फीसदी तक जहां वीजीएफ के अंतर्गत रखा है, वहीं कुल एनएचडीपी 5 परियोजना में इसकी हिस्सेदारी 0.5 फीसदी बैठ रही है। लेकिन किसी भी हाइवे परियोजना की कुल लागत और उसके निर्माण से जुड़ी निजी कंपनी की ओर से आंकलित रिटर्न के मध्य अंतर को पाटने के लिए सरकार ने वीजीएफ की सीमा की समीक्षा करने का कदम उठाया है।
ऐसा करने से रुकी हुई हाइवे परियोजनाओं को फिर से परिचालित किया जा सकेगा। इस संबध में वैसे तो पिछले महीने ही सचिव समिति (सीओएस) ने एक बैठक कर निजी सार्वजनिक भागीदारी समिति को यह मंजूरी दे दी थी कि वे तय करें कि वीजीएफ की सीमा को 10 फीसदी से बढ़ाया जाए या नहीं। साथ ही इनके लिए कौन सी योजनाओं को और किन परिस्थितियों को प्रमुखता दी जाए।
