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अल्पांश शेयरधारक नहीं कर सकते बोर्ड में जगह का दावा

Last Updated- December 12, 2022 | 6:33 AM IST

टाटा-मिस्त्री मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से स्पष्ट है कि अल्पांश शेयरधारकों को निजी कंपनियों के निदेशक मंडल में तब तक जगह नहीं मिल सकती जब तक आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में ऐसा नहीं कहा गया हो या बहुलांश शेयरधारक इस पर राजी नहीं हों।
कंपनी अधिनियम 1965 और 2013 में सिफारिश की गई है कि सूचीबद्घ कंपनियों के निदेशक मंडल में छोटे शेयरधारकों द्वारा चुना गया एक निदेशक होगा। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एसपी समूह छोटा शेयरधारक नहीं है और अनुंबध या कानून के हिसाब से उसे निदेशक मंडल में शामिल नहीं किया जा सकता। कंपनी अधिनियम के तहत ‘छोटे शेयरधारक’ उन्हें माना गया है, जिनके पास 20,000 रुपये या बताई गई खास रकम से अधिक मूल्य के शेयर नहीं हों।
वकीलों का कहना है कि गैर-सूचीबद्घ निजी कंपनियों जैसे कि एसपी समूह के शेयरधारकों को भविष्य में कंपनी के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में शामिल करना चाहिए अन्यथा उनके पास निदेशक नियुक्त करने का अधिकार नहीं होगा। डीएसके लीगल के मैनेजिंग पार्टनर आनंद देसाई ने कहा, ‘निजी कंपनी में अतिरिक्त निदेशकों की नियुक्ति निदेशक मंडल द्वारा की जाती है। वे अगली वार्षिक आम बैठक तक पद पर बने रहते हैं और शेयरधारक बहुलांश मत के आधार पर उन्हें अथवा उक्त पर पद पर नियुक्ति के लिए अपना नाम सामने रखने वाले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकते हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि 1956 और 2013 अधिनियम के तहत अल्पांश शेयरधारक को समानुपातिक प्रतिनिधित्व का दावा करने का अधिकार नहीं है। 1956 के कंपनी अधिनियम की धारा 252(1) और 2013 अधिनियम की धारा 151 में केवल छोटे शेयरधारकों का उल्लेख है और एसपी समूह जैसे अल्पांश शेयरधारक का जिक्र नहीं है। मार्च 2016 में एसपी समूह की 18.37 फीसदी हिस्सेदारी का मूल्य करीब 58,441 करोड़ रुपये था। दावा किया गया था कि खरीद के समय इसका मूल्य 69 करोड़ रुपये था और 1991 से 2016 के दौरान एसपी समूह को करीब 872 करोड़ रुपये का लाभांश मिला है। अदालत ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि निवेश पर इस तरह का रिटर्न और निवेशित मूल्य में अप्रत्याशित वृद्घि, दबाने वाले व्यवहार की वजह से हुई होगी।’

First Published - March 28, 2021 | 11:12 PM IST

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