सार्वजनिक क्षेत्र की दो दूरसंचार कंपनियों – भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के विलय की योजना पटरी से उतर गई। करीब दो दशक से इन दोनों कंपनियों के विलय को लेकर बातचीत चल रही थी। मंत्रालय के छह सदस्यीय समूह को इस मसले पर निर्णय लेने को कहा गया था। समझा जाता है कि पिछले हफ्ते उन्होंने सिफारिश की कि दोनों कंपनियों का विलय न तो लाभकारी है और न ही व्यवहार्य। ऐसे में दूरसंचार क्षेत्र का यह अध्याय इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल जल्द ही इस तरह के विलय के खिलाफ औपचारिक निर्णय के लिए बैठक करेगा। दोनों कंपनियों के विलय का विचार तत्कालीन संचार मंत्री प्रमोद महाजन के समय में आया था, इसके बाद दयानिधि मारन के कार्यकाल में 2004 में दोनों का विलय कर देश की सबसे बड़ी दूरसंचार इकाई बनाने की कवायद शुरू की गई। लेकिन बात नहीं बनी। हाल के समय में मौजूदा सरकार ने इस पर काम शुरू किया था। बीएसएनएल-एमटीएनएल का विलय दूरसंचार विभाग के चार चरण की सुधार योजना का हिस्सा था, जिसे मंत्रिमंडल ने अक्टूबर 2019 में मंजूरी दी थी। इसके बाद मंत्रिसमूह ने 70,000 करोड़ रुपये की विलय योजना की कवायद शुरू की थी। दो सरकारी अधिकारियों ने कहा कि पिछले हफ्ते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में विलय रद्द करने का निर्णय किया गया ताकि बीएसएनएल के मूल्य में और कमी नहीं आए। दूरसंचार विभाग भी विलय प्रस्ताव को रद्द करने के पक्ष में है।
सिंह के अलावा मंत्रिसमूह के सदस्यों में आईटी एवं संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं।
तकनीकी विलय के बजाय सरकार का प्रस्ताव अब इनके परिचालन और दोनों कंपनियों के कुछ कर्मचारियों को एकीकृृ त करने की है। एक अधिकारी ने कहा कि इस कवायद का अंतिम लक्ष्य एमटीएनएल को धीरे-धीरे बंद करना है। बीएसएनएल पहले ही एमटीएनएल की ओर से महानगरों में सेवाएं देना शुरू कर चुकी है। मंत्रिमंडल ने विलय पूरा होने तक एमटीएनएल को बीएसएनएल की सहायक इकाई के तौर पर कार्य करने का प्रस्ताव किया था।
एक अधिकारी ने कहा कि यह एमटीएनएल को बंद करने की कवायद हो सकती है। भविष्य में एमटीएनएल द्वारा दी जाने वाली सेवाएं बीएसएनएल द्वारा मुहैया कराई जा सकती हैं।
एमटीएनएल के कुछ कर्मचारी बीएसएनएल में जा सकते हैं और अन्य को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेनी होगी। सरकार पहले ही दोनों कंपनियों के कर्मचारियों को वीआरएस की पेशकश कर चुकी है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 92,000 से अधिक कर्मचारियों ने वीआरएस लिया है। इनमें से 78,000 कर्मचारी बीएसएनएल के हैं और 14,000 से अधिक एमटीएनएल के हैं। वीआरएस से पहले एमटीएनएल के कर्मचारियों की संख्या करीब 1.50 लाख थी और एमटीएनएल की 22,000 थी।
एमटीएनएल को चालू नहीं रखने का संकेत इससे भी मिलता है कि सरकार ने एमटीएनएल के लिए नया चेयरमैन-सह प्रबंध निदेशक नियुक्त नहीं किया है और बीएसएनएल के चेयरमैन-सह प्रबंध निदेशक पीके पुरवार को ही एमटीएनएल का अतिरिक्त प्रभार दिया है।
विलय योजना रद्द होने के बाद अब दोनों कंपनियों के बुनियादी ढांचे और नेटवर्क को एकीकृत करने का प्रयास चल रहा है। इसके साथ ही सरकार दोनों कंपनियों की संपत्तियों को बेचने की प्रक्रिया भी शुरू कर चुकी है। संपत्ति बेचने की प्रक्रिया जुलाई 2020 में शुरू हुई थी।