मंजूश्री टेक्नोपैक (एमटीएल) की यात्रा असम के तिनसुकिया में आटा मिलों से लेकर देश में कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग उद्योग की प्रमुख ताकत बनने तक की बदलाव, नवाचार और रणनीतिक नजरिये की असाधारण गाथा है। पिछले सप्ताह अमेरिका की निजी इक्विटी कंपनी एडवेंट इंटरनैशनल ने एमटीएल को हॉन्ग कॉन्ग की पीएजी को करीब एक अरब डॉलर में बेचने के लिए समझौता किया था।
वर्तमान में एडवेंट के पास मंजूश्री में 97 प्रतिशत हिस्सेदारी है। शेष 3 प्रतिशत हिस्सेदारी अन्य सार्वजनिक शेयरधारकों के पास है। यह भारत में पीएजी का अब तक का सबसे बड़ा सौदा है और यह देश के तेजी से बढ़ते पैकेजिंग उद्योग में कंपनी की विकास क्षमता को उजागर करता है। यह उद्योग सालाना 7 प्रतिशत की प्रभावशाली दर से बढ़ रहा है।
मंजूश्री टेक्नोपैक (Manjushree Technopack) के शानदार उदय को समझने के लिए साल 1977 में लौटना होगा जब तिनसुकिया में विमल केडिया के परिवार द्वारा संचालित आटा मिलों को लेनदारों का भुगतान करने के लिए बेच दिया गया था। तीन साल बाद उन्होंने गुवाहाटी में प्रमुख विनिर्माण इकाई स्थापित की जिसने खूब कारोबार किया। यह जल्द ही पूर्वोत्तर में शीर्ष तीन कंपनियों में से एक बन गई। इस इलाके में टाटा टी के बागान के दौरे ने केडिया के दिमाग में प्लास्टिक पैकेजिंग कारोबार के बीज बो दिए।
परिवार ने साल 1983 में कोलकाता से प्लास्टिक की ढुलाई करते हुए कारोबार की शुरुआत की। मंजूश्री ने साल 1987 में परिचालन शुरू किया। 1990 के दशक के मध्य तक यह प्रति वर्ष करीब 500 टन पॉलीथीन की प्रिंटिंग कर रही थी। पूर्व तथा पूर्वोत्तर के बाजारों में विकास की संभावना बहुत कम थी। इससे इन भाइयों को अन्य क्षेत्रों में हाथ आजमाने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह वह समय था, जब कर्नाटक सरकार ने कंपनियों को राज्य में इकाइयां स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था।
इसके परिणामस्वरूप केडिया परिवार ने साल 1995 में अपना आधार बेंगलूरु में स्थानांतरित कर दिया। चाय पैकेजिंग विनिर्माताओं और मिनरल वाटर बोतल वाली कंपनियों से हटकर एमटीएल ने पीईटी बोतलों (पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट) की दिशा में प्रगति की और कोला कंपनियों को भी आपूर्ति करने लगी।
वर्तमान में एमटीएल के ग्राहक आधार में रेकिट बेंकिजर (इंडिया), पीऐंडजी, आईटीसी, बिसलेरी, डाबर इंडिया, मोंडेलेज इंडिया फूड्स, ब्रिटानिया, कैस्ट्रोल, हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेजिज और पेप्सिको इंडिया जैसी उद्योग की प्रमुख कंपनियां शामिल हैं।
पिछले दो दशकों के दौरान कंपनी के विकास के सफर को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि साल 2006 में प्रति वर्ष मात्र 60 करोड़ रुपये के राजस्व के मुकाबले वित्त वर्ष 23 में इसका राजस्व 2,096 करोड़ रुपये हो गया जबकि निकटतम प्रतिस्पर्धी कंपनी अल्पला का राजस्व 1,266 करोड़ था। वित्त वर्ष 24 में कंपनी का राजस्व और बढ़कर 2,117 करोड़ हो गया।
संगठित भारतीय उपभोक्ता आरपीपी बाजार में बड़ी कंपनियों के पास लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जिसमें से एमटीएल वित्त वर्ष 24 में 8.8 प्रतिशत के साथ सबसे आगे है। अल्पला के पास केवल 4.5 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है। टीपीएसी, केमको, मोल्ड टेक, एसएसएफ प्लास्टिक्स और नैशनल पॉलीप्लास्ट समेत अगली पांच प्रमुख कंपनियां के पास सामूहिक रूप से 11.6 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है।