अमेरिकी मोबाइल प्रौद्योगिकी कंपनी लिंक ग्लोबल ने भारतीय दूरसंचार कंपनियों के साथ साझेदारी करने के लिए एक रिपोर्ट पेश की है, जो दुनिया के पहले पेटेंट युक्त, सीधे वाणिज्यिक उपग्रह से प्रमाणित और मानक मोबाइल फोन प्रणाली की पेशकश के लिए है।
पिछले साल अमेरिका में संघीय संचार आयोग ने इस नई प्रौद्योगिक के तहत लिंक को अब तक का पहला लाइसेंस प्रदान किया था।
लिंक का कहना है कि जिस किसी के पास सामान्य मोबाइल फोन हो, वह अब बिना किसी बाधा या रुकावट के हर जगह संपर्क कायम रख सकता है, जिसमें ‘डार्क स्पॉट’ वाले स्थान भी शामिल हैं अथवा जहां जमीनी मोबाइल नेटवर्क पर कोई कवरेज न हो। कंपनी इन भागों में कवरेज उपलब्ध कराने के लिए छोटे उपग्रह स्थापित कर रही है, जिसे यह ‘आकाश में सेल टॉवर’ कहती है।
यह उपभोक्ताओं के लिए दो अलग-अलग फोन रखने की जरूरत को खत्म करता है – एक सामान्य मोबाइल सेवाओं के लिए और दूसरी उपग्रह आधारित सेवाओं के लिए, जो फिलहाल काफी महंगी है। हालांकि उन्हें और ज्यादा किफायती तथा हल्का-फुल्का बनाने के लिए काम चल रहा है।
यह प्रौद्योगिकी दुनिया भर में उन एक अरब से अधिक लोगों को संपर्क करने के लिए कम लागत वाला तरीका भी प्रदान करेगी, जो मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि उनके इलाकों में कोई कनेक्टिविटी नहीं होती।
रिलायंस जियो के सामने प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में लिंक ने कारोबारी प्रारूप के बारे में बताया। पहला, मोबाइल नेटवर्क परिचालक को पूंजीगत व्यय और परिचालन व्यय में और खर्च नहीं करना पड़ेगा। दूसरा, लिंक अपने ग्राहकों द्वारा उत्पन्न ट्रैफिक से राजस्व हिस्सेदारी प्राप्त करते हुए पैसा कमाएगी। मिसाल के तौर पर ग्राहकों के लिए इनबाउंड रोमिंग के वास्ते लिंक रिलायंस जियो का स्पेक्ट्रम साझा करेगी क्योंकि भारत में उसके पास अपना खुद का कोई स्पेक्ट्रम नहीं है।
दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि प्रौद्योगिकी की कदमताल पहले से ही काफी तेज है। ऐपल जैसी कंपनियां पहले से ही घोषणा कर चुकी हैं कि आईफोन 14 उपग्रह और स्थलीय सेवाओं की पेशकश करेगा।
लिंक दुनिया भर में तकरीबन 12 मोबाइल नेटवर्क परिचालकों के साथ यह सेवा शुरू करने के लिए अनुबंधों को अंतिम रूप दे रही है। कुछ दिन पहले ही इसने वोडाफोन घाना को सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए टेलीसेल के साथ एक करार किया है, जो 3.1 करोड़ निवासियों के लिए 100 प्रतिशत मोबाइल कवरेज सुनिश्चित करेगी।
लेकिन भारतीय दूरसंचार कंपनियों को कहना है कि यहां लिंक की पेशकश से स्पेक्ट्रम संबंधी नियामकीय उलझन के कुछ मसले सामने आएंगे, जिनका सामाधान करने की जरूरत है।