चीन के स्मार्टफोन ब्रांड से भारतीय ब्रांडों को तगड़ा झटका लग रहा है खासकर मूल्य के मोर्चे पर। उत्पाद एवं सीमा शुल्क के रुझानों पर आधारित उद्योग के आकलन के अनुसार, भारतीय मोबाइल ब्रांडों की मूल्य हिस्सेदारी (स्मार्टफोन, फीचर फोन, ओपरेटर फोन की बिक्री) जनवरी से अक्टूबर 2021 की अवधि में घटकर महज 1.2 फीसदी रह गई जो कैलेंडर वर्ष 2015 में 25.4 फीसदी रही थी।
हालांकि इस दौरान चीन की मोबाइल कंपनियों ने भारतीय बाजार में अपना वर्चस्व हासिल कर लिया। इस दौरान चीनी मोबाइल ब्रांडों की मूल्य हिस्सेदारी 17.8 फीसदी से बढ़कर 64.5 फीसदी हो गई। एकमात्र भारतीय कंपनी लावा बाजार में अपनी जगह बनाए रखने के लिए जूझती दिखी। स्मार्टफोन की मात्रात्मक बिक्री के मोर्चे पर भी कमोबेश यही रुझान दिखा।
भारतीय बनाम चीनी स्मार्टफोन ब्रांड (सैमसंग जैसे अन्य विदेशी ब्रांडों को विश्लेषण से अलग रखा गया है) की बाजार हिस्सेदारी पर नजर रखने वाली फर्म टेकआर्क का कहना है कि भारतीय मोबाइल ब्रांड की बाजार हस्सेदारी 2015 में 68 फीसदी थी जो घटकर 2021 में महज 1 फीसदी रही गई है। जबकि समान अवधि के दौरान चीनी ब्रांडों की मात्रात्मक हिस्सेदारी 32 फीसदी से बढ़कर 2021 में 99 फीसदी हो गई।
जनवरी से अक्टूबर 2021 के दौरान चीन की कंपनी कंपनियों ने 1,45,000 से अधिक मोबाइल फोन की बिक्री की। जबकि भारतीय मोबाइल कंपनियों का कहना है कि चीन की कंपनियों ने कीमतों में भारी छूट की पेशकश करते हुए यह कामयाबी हासिल की जिसकी झलक उनके भारतीय कारोबार में हुए भारी नुकसान में मिलती है। उदाहरण के लिए, वीवो ने वित्त वर्ष 2020 में 349 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया जो इससे पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 19 करोड़ रुपये अधिक है। जबकि उसका राजस्व 45 फीसदी बढ़कर 25,124 करोड़ रुपये हो गया। ओप्पो ने भी वित्त वर्ष 2020 में 38,757 करोड़ रुपये के राजस्व पर 2,203 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया।
बाजार से भारतीय फोन के गायब होने के बारे में विदेशी कंपनियों की अलग दलील है। उनका कहना है कि विफलता की मुख्य वजह अनुसंधान एवं विकास में निवेश का अभाव, तकनीकी बदलाव के साथ तालमेल न बिठाना और बेहतर उत्पाद तैयार करने में देरी है।
सरकार कुछ ‘वैश्विक चैंपियन’ बनाने की उम्मीद में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के जरिये घरेलू ब्रांडों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। हालांकि पांच भाारतीय कंपनियों (लावा, माइक्रोमैक्स, ऑप्टिमस, डिक्सन, यूटीएल नियोलिंक्स) ने पीएलआई योजना का लाभ उठाने के लिए पांच साल की योजना के तहत 11.75 लाख करोड़ रुपये के कुल वृद्धिशील उत्पादन मूल्य में से महज 10 फीसदी के लिए प्रतिबद्धता जताई है। शेष रकम वैश्विक वेंडरों से आएगी जिसमें कुछ वैश्विक कंपनियों के साथ मिलकर ऐपल और सैमसंग शामिल हैं।
डिक्सन अथवा ऑप्टिमस जैसी कुछ घरेलू कंपनियां वैश्विक ब्रांडों के लिए महज अनुबंध आधारित उत्पादन करेंगी। वे भारतीय ब्रांड में अपना योगदान नहीं करने जा रही हैं। केवल लावा ने खुद के ब्रांड के तहत स्मार्टफोन की बिक्री करने और निर्यात के लिए योजना बनाई है।