वर्ष 2015 में फेसबुक की फ्री बेसिक्स (सीमित नि:शुल्क इंटरनेट) की अवधारणा को नेट निरपेक्षता के खिलाफ बताकर उसका कड़ा विरोध हुआ और मार्क जुकरबर्ग को उसे वापस लेना पड़ा लेकिन वह आपदा में अवसर साबित हुआ। फ्री बेसिक्स के पीछे विचार था भारतीय बाजार का विस्तार करना और एक अरब लोगों को इंटरनेट से जोडऩा। उस नाकामी के बावजूद फेसबुक की वृद्धि अप्रत्याशित गति से जारी है।
भारत में उसके उपयोगकर्ता 2016 के 20.5 करोड़ से बढ़कर अब 42.5 करोड़ हो चुके हैं। इसी अवधि में व्हाट्सऐप भी करोड़ों भारतीयों के लिए संदेश का माध्यम बना। इसी अवधि में इसका इस्तेमाल करने वाले 19 करोड़ से बढ़कर 39 करोड़ हो गए। परंतु इनकी सफलता में रिलायंस जियो की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही जिसने पांच वर्ष पहले अत्यंत कम दरों पर 4जी सेवा की शुरुआत की थी। उसकी दरें प्रतिस्पर्धियों से 95 फीसदी कम थीं। वॉइस कॉल और ओटीटी प्लेटफॉर्म भी नि:शुल्क थे। बाकी सेवाप्रदाताओं के पास उसका अनुसरण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जियो की डेटा क्रांति ने पांच वर्ष बाद देश के कारोबारी और उपभोक्ताओं के हितों को बदल दिया है।
फेसबुक इंडिया के प्रबंध निदेशक अजित मोहन कहते हैं, ‘इसमें दो राय नहीं कि जियो ने मोबाइल ब्रॉडबैंड बाजार में जो हलचल मचाई उसने देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को निर्णायक रूप से बदला और हॉटस्टार से लेकर फेसबुक तक कई सेवाओं को गति प्रदान की। जियो के डेटा सस्ता करने से जो तेजी आई हम उसकी ताकत को समझना शुरू ही कर रहे हैं।’
इस क्रांति ने ऑनलाइन स्टार्टअप कंपनियों को बल दिया और उपभोक्ताओं की खरीदारी, सिनेमा देखने, बीमा या खान खरीदने, छुट्टियां बुक करने या डॉक्टर से सलाह लेने के तरीके को बदल दिया।
जियो ने लोगों को नकदी से डिजिटल भुगतान की ओर स्थानांतरित करने में अहम भूमिका निभाई। अगस्त 2016 से इस वर्ष अगस्त तक यूपीआई लेनदेन का मूल्य और आकार क्रमश: 206,000 गुना तथा 395,000 गुना बढ़ा है। इससे ऐप डाउनलोड में भी इजाफा हुआ और 2016 में जहां भारत में 6.5 अरब ऐप डाउनलोड किए गए थे, वहीं 2019 में यह आंकड़ा 19 अरब हो गया। इस अवधि में वैश्विक औसत 45 फीसदी था।
डिजिटल इकनॉमी का लाभ डेवलपर्स और पब्लिशर्स ने भी उठाया। ऑनलाइन ट्रैकिंग एजेंसी 42 मैटर्स के मुताबिक फिलहाल गूगल प्ले पर भारतीय पब्लिशर्स के 1,61,373 ऐप हैं। इनमें से तीन फीसदी सशुल्क तथा 40 फीसदी विज्ञापन आधारित हैं। जियो का सबसे अधिक असर स्टार्टअप में देखने को मिला। जियो के आगमन के पहले देश में 50 यूनिकॉर्न स्टार्टअप थे जो अब 51 हो चुके हैं। विश्लेषकों के मुताबिक दो वर्ष में यह आंकड़ा 100 पार कर जाएगा।
जोमैटो के सह-संस्थापक दीपेंद्र गोयल ने आईपीओ लाने के पहले अपने कर्मचारियों को लिखे पत्र में इसे स्वीकारते हुए कहा था, ‘जियो की तेजी ने हमें असाधारण वृद्धि हासिल करने में मदद की।’ शिक्षा क्षेत्र के स्टार्ट अप बैजूस ने छात्रों को ऑनलाइन स्थानांतरित करने में अहम भूमिका निभाई है, खासतौर पर महामारी के समय में। संस्थापक बैजू रवींद्रन कहते हैं, ‘उच्च गति का डेटा हम जैसी एजुुटेक कंपनियों के देश भर में लाखों छात्रों तक पहुंचने का जरिया है।’
सन 2016 में ऐसे ऐडटेक प्लेटफॉर्म पर 15.7 लाख पेड सबस्क्राइबर थे जबकि आज इनकी तादाद 10 करोड़ से अधिक हो चुकी है। अकेले बैजूस के 65 लाख पेड उपयोगकर्ता हैं। ओटीटी जगत में नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम और डिज्नी हॉटस्टार ने 2015-16 में दस्तक दी लेकिन आय अर्जित करना बड़ी चुनौती थी क्योंकि ऐसे ग्राहक तलाशने थे जो पैसे खर्च करें। 2020 में तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म के पास छह करोड़ ऐसे उपभोक्ता हैं जो शुल्क चुकाते हैं। जिस वर्ष जियो की सेवा शुरू हुई उस वर्ष इनकी तादाद बस 13 लाख थी। अब कुल उपभोक्ता (सशुल्क-नि:शुल्क) 30 करोड़ हो चुके हैं।
नेटफ्लिक्स के सीईओ रीड हैस्टिंग्स ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि काश हर देश में जियो जैसी कोई कंपनी आती और डेटा सस्ता हो जाता।
जियो के आगमन के बाद देश में स्मार्टफोन की पहुंच 2016 के 24 फीसदी से बढ़कर 2020 में 42 फीसदी हो गई है। इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज महिंद्रू कहते हैं, ‘सरकार की विनिर्माण योजना और अलग-अलग शुल्क दरों ने देश में निर्माण को बढ़ावा दिया है। प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम ने भी इसमें मदद की।’
परंतु इसकी एक कमी डेटा क्रांति के कारण मची उथलपुथल के रूप में भी सामने आई। कारोबारी जगत और उपभोक्ताओं को जहां इससे लाभ हुआ वहीं जियो के कारण शुरू हुई कीमतों की जंग कई सेवा प्रदाताओं पर भारी पड़ी। 2016 के 10 सेवा प्रदाताओं की जगह अब देश में केवल चार दूरसंचार कंपनियां हैं। अगले दो वर्षों तक 5जी लड़ाई का मैदान रहेगा। भारती एयरटेल और जियो इसकी लॉन्चिंग को तैयार हैं। इसके साथ ही एक बार फिर डिजिटल इकनॉमी में उथलपुथल मचेगी।