ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने संबंधी बाइडन प्रशासन का प्रस्ताव भारत के एआई कार्यक्रम को प्रभावित कर सकता है। भारत 2027 से अपने एआई कार्यक्रम का दायरा बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। जीपीयू कंप्यूटर में ग्राफिक्स, इफेक्ट, वीडियो आदि कार्यों को संभालने और एआई को ताकत देने में मदद करता है।
नियमों के तहत 18 देशों को चिप तक निर्बाध पहुंच देने की बात कही गई है जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे अमेरिका के करीबी सहयोगी देश शामिल हैं। इन देशों की सत्यापित कंपनियों पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। दूसरी तरफ चीन और रूस जैसे देशों को प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है।
भारत को तीसरी श्रेणी में रखा गया है जिसमें इजरायल और सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं। इन देशों को सालाना 1,700 जीपीयू के आयात की अनुमति होगी।
कंपनियों को अमेरिकी सरकार से मंजूरी लेनी होगी जिसके तहत सालाना आधार पर चिप के आयात पर सीमा लगाई जाएगी। यह सीमा 2025 में 1,00,000 चिप के लिए होगी जो 2026 में बढ़कर 2,70,000 चिप और 2027 में 3,20,000 चिप तक हो जाएगी। ऐसे चिप की कंप्यूटिंग क्षमता को इन सभी वर्षों के लिए एनवीडिया के एच-100 जीपीयू के बराबर तय की गई है।
इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (आईईएसए) के अध्यक्ष अशोक चंडोक ने कहा, ‘हालांकि लधु अवधि में प्रभाव मामूली दिख सकता है, लेकिन 2027 से उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जब भारत अपने एआई कार्यक्रम का विस्तार करेगा। हमें लगता है कि यह कमोबेश अब तय हो चुका है।’
इलेक्ट्रॉनिकी एवं आईटी मंत्रालय का कहना है कि प्रस्तावित आदेश के प्रभाव का आकलन किया जा रहा है। अब देखना होगा कि डॉनल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद क्या निर्णय लेते हैं।
नियमों के तहत गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी अमेरिकी कंपनियों को जीपीयू के इस्तेमाल का वैश्विक अधिकार मिलेगा। मगर उपयोग की मात्रा पर सीमा लगाए जाने से वे एआई डेटा सेंटर स्थापित करने के लिए केवल हतोत्साहित होंगी।