उद्योग

पहले कमाते थे ₹52, अब मिलते हैं ₹45; दो-दो ऑर्डर एक साथ ले जाने से डिलीवरी बॉय की कमाई घटी

क्विक कॉमर्स कंपनियां खर्च घटाने के लिए एक साथ कई ऑर्डर भेज रही हैं - Zepto, Blinkit और Swiggy Instamart का दावा है इससे डिलीवरी तेज हुई

Published by
Udisha Srivastav   
Last Updated- November 06, 2025 | 10:00 AM IST

तेजी से बढ़ते क्विक कॉमर्स कारोबार में अब कंपनियां कम खर्च और ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए “बैचिंग” या “क्लबिंग” का तरीका अपना रही हैं। इसका मतलब है कि Zepto, Blinkit, Swiggy Instamart, Flipkart Minutes और BigBasket जैसी कंपनियां अब दो या ज्यादा ऑर्डर एक साथ पैक करती हैं और उन्हें एक ही डिलीवरी पार्टनर से ग्राहकों तक भिजवाती हैं। इससे समय और पेट्रोल दोनों बचते हैं, और कंपनी का खर्च कम होता है।

बैचिंग या क्लबिंग क्या है?

इस प्रक्रिया में डार्क स्टोर (जहां से डिलीवरी की पैकिंग होती है) एक ही बार में दो या उससे ज्यादा ऑर्डर पैक करता है। इसके बाद डिलीवरी पार्टनर एक ही ट्रिप में उन्हें अलग-अलग ग्राहकों तक पहुंचाता है। कंपनियां खास सॉफ्टवेयर और एल्गोरिदम का इस्तेमाल करती हैं, जो आसपास के ऑर्डर को पहचानकर डिलीवरी का रास्ता तय करते हैं, ताकि समय और खर्च दोनों बच सकें।

कंपनियां क्यों अपना रहीं यह तरीका?

Zepto के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर विकास शर्मा ने बताया, “जब हम आसपास के ऑर्डर को जोड़ते हैं, तो डिलीवरी पार्टनर को कम सफर करना पड़ता है। इससे समय बचता है, रास्ते छोटे होते हैं और डिलीवरी तेज होती है। इसके साथ ही बैचिंग ऑर्डर पर पार्टनर को अतिरिक्त इंसेंटिव भी मिलता है।”

सिर्फ Zepto ही नहीं, बल्कि Blinkit, Swiggy Instamart, Flipkart Minutes और BigBasket भी यह तरीका अपना रही हैं। पहले यह कभी-कभार होता था, लेकिन अब यह नियमित कामकाज का हिस्सा बन चुका है।

Flipkart और BigBasket का क्या कहना है?

Flipkart Minutes ने अगस्त 2025 से 500 मीटर के दायरे में आने वाले ऑर्डर को जोड़ना शुरू किया है। कंपनी का कहना है कि इससे भीड़भाड़ या त्योहारों के समय डिलीवरी पर असर नहीं पड़ता और डिलीवरी पार्टनर्स को हर अतिरिक्त ऑर्डर पर इंसेंटिव मिलता है।

BigBasket ने बताया कि कंपनी शुरुआत से ही अपनी “स्लॉटेड डिलीवरी” में बैचिंग कर रही है। कंपनी के नेशनल हेड आशुतोष तपारिया ने कहा, “हमारा सिस्टम ग्राहक के दिए गए डिलीवरी टाइम के हिसाब से रूट तय करता है, ताकि कम दूरी में ज्यादा ऑर्डर पूरे किए जा सकें। इसका मकसद सर्विस क्वालिटी बनाए रखना है, न कि खर्च घटाना। इससे डिलीवरी पार्टनर की कमाई भी बढ़ जाती है।”

कंपनियों को क्या फायदा हो रहा है?

मार्केट रिसर्च कंपनी Datum Intelligence के फाउंडर सतीश मीणा के मुताबिक, एक डिलीवरी की औसत लागत करीब ₹40–₹50 होती है। लेकिन बैचिंग जैसे उपायों से कंपनियां इसे ₹30 तक लाने की कोशिश कर रही हैं। इससे कंपनियों का खर्च घटता है और मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है।

डिलीवरी पार्टनर्स को क्या मिल रहा है फायदा या नुकसान?

जहां कंपनियों को फायदा हो रहा है, वहीं कुछ डिलीवरी पार्टनर्स का कहना है कि बैचिंग से उनकी कमाई घट जाती है। एक पार्टनर ने बताया, “जब हम दो ऑर्डर लेकर निकलते हैं, तो पहले ग्राहक का ऑर्डर समय पर पहुंचता है, लेकिन दूसरे ग्राहक तक पहुंचने में 5–10 मिनट ज्यादा लग जाते हैं।” उन्होंने दिखाया कि एक बैच्ड ऑर्डर पर उन्हें ₹45 मिले, जबकि अलग-अलग ऑर्डर पर ₹26–₹26 की कमाई होती थी। एक Zepto डिलीवरी एजेंट ने बताया कि एक ऑर्डर पर उन्हें ₹14 मिलते हैं, लेकिन जब ऑर्डर जोड़े जाते हैं तो कुल मिलाकर ₹22 (₹14 + ₹8) ही मिलते हैं।

क्यों जरूरी है यह कदम?

क्विक कॉमर्स (Quick Commerce) का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ रहा है। अब कंपनियां ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह की फ्री डिलीवरी योजनाएं ला रही हैं। जैसे कोई हैंडलिंग चार्ज या सर्विस फीस नहीं। Zepto और Swiggy Instamart ने हाल ही में ऐसे ऑफर शुरू किए हैं, जिनमें अगर ग्राहक ₹99 या ₹299 से ज्यादा का ऑर्डर करते हैं, तो डिलीवरी चार्ज नहीं लिया जाता। कंपनियों का कहना है कि जब उनका पूरा सिस्टम और कामकाज अच्छे तरीके से स्मूद हो जाएगा, तो जो खर्च वे बचा पाएंगी, उसका कुछ हिस्सा ग्राहकों को डिस्काउंट और ऑफर के रूप में दिया जाएगा।

कितना बड़ा है भारत का क्विक कॉमर्स मार्केट?

एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, देश का क्विक कॉमर्स बाजार FY25 में $5 बिलियन का है और FY30 तक यह $30 बिलियन तक पहुंच सकता है। साल 2022 में यह सिर्फ $300 मिलियन का था। यानी अगले पांच साल में यह कारोबार करीब 10 गुना बढ़ने वाला है।

First Published : November 6, 2025 | 9:48 AM IST