प्रतिभूति अपील पंचाट (सैट) ने हिमालय के योगी मामले में नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी चित्रा रामकृष्ण को अंतरिम राहत प्रदान की है। पंचाट ने रामकृष्ण को 2 करोड़ रुपये जमा नहीं कराने का निर्देश दिया है। एसएटी के सदस्यों तरुण अग्रवाल और मीरा स्वरूप ने कहा, ‘यदि इस रकम को जमा कराया जाता है तो अपील के लंबित होने के दौरान शेष रकम की वसूली नहीं हो पाएगी।’
11 फरवरी को बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने रामकृष्ण पर संचालन में खामियों के आरोप में 3 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। बाजार नियामक ने एनएसई को यह भी निर्देश दिया था कि वह रामकृष्ण को अवकाश के बदले दिए जाने वाले 1.54 करोड़ रुपये और 2.83 करोड़ रुपये के विलंबित बोनस को जब्त करे। सेबी ने एनएसई को निर्देश दिया था कि वह इस रकम को अपने निवेशक सुरक्षा कोष में जमा कराए।
सैट ने एनएसई को निर्देश दिया है कि वह रामकृष्ण को छुट्टी के बदले दी जाने वाली रकम और विलंबित बोनस की कुल 4.37 करोड़ रुपये निवेश सुरक्षा कोष में जमा कराने की बजाए एक निलंब खाते में जमा कराए। एसएटी ने सेबी को चार हफ्तों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
रामकृष्ण के वकील सीएस वैद्यनाथन ने प्रतिभूति अनुबंध विनियमन अधिनियम (एससीआरए) की धारा 23ए के तहत जुर्माना लगाने के सेबी के निर्णय का विरोध किया था। उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रावधान जनवरी 2020 में प्रभाव में आया और इसे पूर्वव्यापी मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है। इस सूरत में धारा के तहत जुर्माना लगाना गलत है और यह टिक नहीं सकता है।
वैद्यनाथन ने यह भी कहा कि इसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्घांतों का उल्लंघन हुआ क्योंकि अंतिम आदेश पारित करने से पहले रामकृष्ण को कुछ निश्चित गवाहों की प्रविष्टियों की जांच करने का अवसर नहीं दिया गया।
उन्होंने तर्क दिया, ‘पूर्ण कालिक सदस्य ने सुनवाई का मौका दिए बगैर ही आक्षेपित आदेश को पारित कर दिया जो भारत के संविधान में दिए गए अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था।’
वैद्यनाथन ने कहा कि सेबी के पास एनएसई की स्वायत्तता और आंतरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप करने की शक्ति नहीं है। रामकृष्ण ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु से केवल सलाह ली थी। उन्होंने तर्क दिया है कि सेबी के आदेश में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि वह केवल अपने गुरु के निर्देशों का पालन कर रही थी और अपना दिमाग या समझ का इस्तेमाल नहीं कर रही थी।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि सेबी के आदेश में एक भी ऐसी घटना का जिक्र नहीं किया गया है जहां पर एक्सचेंज से संबंधित सूचना का दुरुपयोग किया गया हो या किसी साझेदार को कोई नुकसान पहुंचा हो।