करीब 5 साल बाद भारतीय रेलवे ने 1 जुलाई से यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी से रेलवे को कुछ राहत जरूर मिलेगी, लेकिन यात्रियों पर ज़्यादा बोझ नहीं डाला गया है। दिल्ली से मुंबई जैसे लंबे रूट पर AC कोच में सफर करने वालों को अब करीब ₹30 ज़्यादा किराया देना पड़ रहा है, क्योंकि प्रति किलोमीटर 2 पैसे की बढ़ोतरी की गई है। वंदे भारत ट्रेन में छोटे रूट्स पर सफर करने वालों के टिकट में ₹10 से ₹14 तक की बढ़ोतरी हुई है।
Mail और Express ट्रेनों के नॉन-AC डिब्बों में सफर करने वालों के लिए 1 पैसा प्रति किलोमीटर का अतिरिक्त खर्च जुड़ गया है। यानी लंबी यात्रा में थोड़ा असर जरूर महसूस होगा, लेकिन यह अब भी बहुत मामूली है।
रेलवे का मानना है कि इस छोटे से किराया संशोधन से करीब ₹1,500 करोड़ की अतिरिक्त कमाई हो सकती है। जबकि 2014-15 में जब NDA सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब 14.2% की बड़ी बढ़ोतरी से रेलवे को ₹8,000 करोड़ मिले थे। 2020 में भी किराया बढ़ाया गया था, लेकिन फिर कोविड लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों की वजह से असर कम हो गया। उस वक्त रेलवे को ₹2,100 करोड़ की उम्मीद थी।
रेलवे के पूर्व जीएम ललित चंद्र त्रिवेदी के मुताबिक, यह बढ़ोतरी बहुत मामूली है और जरूरी भी थी। उन्होंने कहा कि रेलवे को लंबे समय से यात्री सेवाओं पर घाटा उठाना पड़ता है, जिसे मालभाड़े (freight earnings) से भरना पड़ता है। यह फेयर स्ट्रक्चर सुधार की दिशा में एक कदम है।
वित्त वर्ष 2025–26 के बजट में यात्री सेवाओं से ₹92,800 करोड़ की आमदनी का अनुमान है, जो FY25 के संशोधित अनुमान ₹82,000 करोड़ से 11% ज्यादा है। सिर्फ AC थ्री-टियर कोच से ही रेलवे को ₹37,115 करोड़ की उम्मीद है, जो पिछले साल से 23% ज्यादा है।
एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी के मुताबिक, यह बढ़ोतरी पहले से ही तय थी। कोविड के समय हुए घाटे की भरपाई जरूरी है। रेलवे ने वित्त मंत्रालय से ₹79,000 करोड़ का कर्ज लिया था, जिसकी किस्त FY25 से शुरू होनी थी, लेकिन अब 2 साल की छूट (moratorium) मिली है।
रेलवे की कमाई बढ़ाने के लिए सिर्फ यात्री किराया बढ़ाना काफी नहीं है। एक्सपर्ट मानते हैं कि रेलवे को फ्रेट सेक्टर में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी।
Crisil Intelligence के डायरेक्टर अनिकेत दानी के मुताबिक, रेलवे का फ्रेट शेयर 2014-15 में 26-27% था, जो 2017–22 के बीच गिरकर 22–23% हो गया। लेकिन अब 2025 में यह फिर से 26% तक आ गया है, जिसका श्रेय Dedicated Freight Corridor (DFC) को जाता है।
2021 में फ्रेट वॉल्यूम 1,905 GTKM था, जो 2024 में बढ़कर 1,19,129 GTKM हो गया है। इससे उम्मीद है कि 2030 तक रेलवे देश के 45% माल परिवहन को संभालने लगेगा।
अनिकेत दानी बताते हैं कि रेलवे आज भी माल ढुलाई का सबसे किफायती तरीका है। एक टन माल को रेलवे से भेजने का औसत खर्च ₹1.36 प्रति किलोमीटर है, जबकि सड़क मार्ग से ₹2.50 प्रति किलोमीटर।