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भारत में निजी इक्विटी निवेश में उछाल! ब्लैकस्टोन से टाटा तक, क्यों देश में हो रही हैं रिकॉर्ड तोड़ M&A डील्स

उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, अगले सप्ताह से शुरू होने वाले नए वित्त वर्ष में भी विलय-अ​धिग्रहण गतिवि​धियों में तेजी बरकरार रहने की उम्मीद है।

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जेडन मैथ्यू   
देव चटर्जी   
Last Updated- March 23, 2025 | 10:05 PM IST

निजी इक्विटी निवेश में तेजी के बल पर भारत में विलय-अधिग्रहण सौदों का मूल्य वित्त वर्ष 2025 में 26.4 फीसदी बढ़कर 99.9 अरब डॉलर हो गया। इससे पिछले वित्त वर्ष में कुल 79.05 अरब डॉलर के विलय-अ​धिग्रहण सौदे दर्ज किए गए थे। उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, अगले सप्ताह से शुरू होने वाले नए वित्त वर्ष में भी विलय-अ​धिग्रहण गतिवि​धियों में तेजी बरकरार रहने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि इसे मुख्य तौर पर निवेशकों की धारणा, सौदे के स्वरूप और बाजार परिस्थितियों में बदलाव से रफ्तार मिली है।

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में अब तक 3,103 सौदे हुए हैं जबकि वित्त वर्ष 2024 में 2,598 सौदे हुए थे। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में क्वालिटी केयर और एस्टर डीएम हेल्थकेयर के बीच 5.08 अरब डॉलर का विलय इस साल का सबसे बड़ा सौदा रहा।

सौदों की संख्या में वृद्धि जरूर हुई है लेकिन जहां तक सौदे के मूल्य की बात है तो वह किसी एक साल के दौरान दर्ज अब तक के सर्वाधिक सौदा मूल्य से काफी कम है। मूल्य के लिहाज से अब तक का सबसे बड़ा विलय सौदा करीब तीन साल पहले एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक के बीच हुआ था।

प्रमुख कानून फर्म खेतान ऐंड कंपनी के सीनियर पार्टनर भारत आनंद ने कहा, ‘पूंजी बाजार में नरमी और मूल्यांकन में गिरावट के कारण गतिवि​धियों को गति मिलनी चाहिए। मगर इस संबंध में खुलकर चर्चा करने से कई लोग कतराते हैं।’ निजी इक्विटी निवेशक भी अपने नजरिये में बदलाव ला रहे हैं। वे उच्च वृद्धि वाले क्षेत्रों में अ​धिक परिचालन प्रभाव के लिए नियंत्रण वाले सौदों की ओर रुख कर रहे हैं।

कैटालिस्ट एडवाइजर्स के कार्यकारी निदेशक विनय पारेख ने उम्मीद जताई कि वित्त वर्ष 2026 में विलय-अ​धिग्रहण सौदों का रुख अल्पांश हिस्सेदारी से नियंत्रण आधारित लेनदेन की ओर होगा। यह भारत की वृद्धि में निवेशकों के भरोसे का संकेत है। उन्होंने कहा, ‘सूचीबद्ध कंपनियों के साथ विलय के जरिये उच्च वृद्धि वाली गैर-सूचीबद्ध कंपनियों का परोक्ष तरीके से शेयर बाजार में उतरना भी एक पसंदीदा रणनीति हो सकती है। इससे आरं​भिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के मुकाबले तेजी बाजार में उतरने का अवसर मिलता है।’

निजी इ​क्विटी फर्मों का कहना है कि वे भारत में विलय-अ​धिग्रहण के जरिये और निवेश करने के लिए तैयार हैं क्योंकि भारत अब भी अपनी बढ़ती जनसंख्या के कारण दुनिया में सबसे अधिक आर्थिक वृद्धि दर्ज कर रहा है। ब्लैकस्टोन के वरिष्ठ प्रबंध निदेशक अमित दी​क्षित ने कहा, ‘जब हमने निवेश करना शुरू किया था तो 95 फीसदी सौदे अल्पां​श हिस्सेदारी वाले थे। मगर समय के साथ-साथ नियंत्रण आधारित निवेश में वृद्धि हुई और हमने प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, उपभोक्ता एवं अन्य तमाम क्षेत्रों में बार-बार निवेश किया है।’

दी​​क्षित ने कहा कि अब नियंत्रण वाले निवेश का आकार करीब 12 अरब डॉलर सालाना है जो 35 अरब डॉलर के कुल बाजार का करीब ए​क-तिहाई है। उन्होंने कहा कि जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे परिपक्व बाजारों में 80 फीसदी से अ​धिक निवेश नियंत्रण वाले हैं। भातर भी उसी दिशा में अग्रसर है। विशेषज्ञों ने कहा कि कॉरपोरेट पुनर्गठन में तेजी आने की उम्मीद है क्योंकि कारोबारी समूह बेहतर पूंजी आवंटन एवं मूल्यांकन के लिए अपनी इकाइयों को अलग कर रहे हैं।

पारेख ने कहा कि टाटा संस और टाटा कैपिटल सहित कई प्रमुख गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की अनिवार्य सूचीबद्धता को एक प्रमुख घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है।

अल्वारेज ऐंड मार्शल के प्रबंध निदेशक मोहित खुल्लर ने कहा कि भारत में तमाम तरह के सौदे हो रहे हैं। उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाने और बाजार में विस्तार के कारण बड़े विलय सौदे हो रहे हैं। रिलायंस-डिज्नी और एसीसी-अंबुजा जैसे सौदे इसके उदाहरण हैं। निजी ऋण में तेजी भी एक अन्य उभरता रुझान है जो अब एक परिसंपत्ति वर्ग बन गया है। पिछले साल इस श्रेणी में 9-10 अरब डॉलर का निवेश हुआ था। संस्थापकों और शेयरधारकों का ऐसे निवेश में दिलचस्पी बढ़ रही है।

आनंद ने कहा, ‘एक शानदार वर्ष के दौरान हमें मूल्य और मात्रा दोनों में वृद्धि दिखनी चाहिए। निजी निवेश एवं निकास दमदार और सार्थक निकास होना चाहिए। इसलिए बाजार में विभिन्न प्रकार के लेनदेन दिखेंगे जिनमें बड़े सौदे से लेकर संकटग्रस्त कंपनियों के सौदे, वृद्धि को रफ्तार देने वाले सौदे और यहां तक कि आईपीओ तक शामिल होंगे।’

सौदा गतिविधियों में तेजी के बावजूद वृहद आर्थिक जोखिमों से भविष्य में विलय-अधिग्रहण बाजार प्रभावित हो सकते हैं। आनंद ने कहा कि अमेरिका में मंदी की आशंका से सौदे की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि गैर-सरकारी कंपनियों द्वारा निजी निवेश पर प्रतिबंधों में चीन द्वारा ढील दिए जाने वैश्विक निजी बाजारों को बढ़ावा मिल सकता है। नीति निर्माता चीन संग आर्थिक एकीकरण को बेहतर करने पर विचार कर सकते हैं।

खुल्लर ने भू-राजनीतिक तनाव को विलय-अधिग्रहण सौदे की राह में सबसे बड़ा जोखिम बताया। उन्होंने आगाह किया कि व्यापार संबंधी अनिश्चितताएं और उच्च ब्याज दरें विलय एवं अधिग्रहण गतिविधियों को कमजोर कर सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत में जीडीपी वृद्धि अगले दो साल के दौरान 6 फीसदी से अधिक रहने के आसार हैं और यहां 10 फीसदी से भी कम कंपनियों ने निजी निवेश का फायदा उठाया है। अगर आप इन दो आंकड़ों को एक-साथ देखेंगे तो पता चलेगा कि तमाम जोखिमों के बावजूद भारत में सौदों की रफ्तार बरकरार रहेगी।’स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में गतिविधियां जारी हैं, मगर एरोस्पेस एवं रक्षा जैसे नए क्षेत्रों में विलय-अधिग्रहण में उछाल दिखी है। इसे मुख्य तौर पर 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों से रफ्तार मिल रही है। खुल्लर ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में 20 से अधिक सौदे हुए हैं।

अक्षय ऊर्जा और यूटिलिटी भी प्रमुख क्षेत्र के तौर पर उभर रही हैं। एक प्रमुख निजी इक्विटी फर्म के प्रमुख ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि प्रमुख चुनौतियों में जटिल कर व्यवस्था, राज्य व केंद्र के अलग-अलग नियम एवं भ्रष्टाचार शामिल हैं।

First Published : March 23, 2025 | 10:05 PM IST