भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष राजीव मेमानी
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष राजीव मेमानी ने नई दिल्ली में रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में कहा कि पिछले 3-4 महीनों में उद्यमियों की वित्तीय जोखिम लेने की क्षमता में कमी आई है। मेमानी ने भारत-अमेरिका एफटीए से लेकर चीन के साथ भारत के जटिल संबंधों और श्रम संहिता कार्यान्वयन जैसे मुद्दों पर बात की। भू-राजनीतिक स्थिति, वैश्विक अर्थव्यवस्था, वैश्विक व्यापार की स्थिति आदि पर भी बातचीत की। संपादित अंश:
व्यापक आर्थिक परिदृश्य के हिसाब से कुछ बेहतर और कुछ खतरे वाले क्या संकेत हैं?
सरकार के विचार से सभी वृहद आर्थिक मानदंड मजबूत हैं। शुद्ध एनपीए और ब्याज दरें सर्वकालिक निचले स्तर पर हैं। महंगाई दर नीचे है। कुल मिलाकर वृहद आर्थिक व्यवस्था, वित्तीय व्यवस्था और पूंजी बाजार बेहतर स्थिति में है। खतरे के संकेत यह हैं कि शहरी खपत कंपनियों की उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रही है। इसके अलावा भू-राजनीतिक स्थिति, वैश्विक अर्थव्यवस्था, वैश्विक व्यापार की स्थिति जैसी चीजें भारत पर किस तरह का असर डालेंगी, यह भारत के नियंत्रण से बाहर हैं। अगर आप विश्वसनीय पार्टनर हैं, आपके यहां राजनीतिक स्थिरता है- जो भारत में है, और एक नीति के हिसाब से स्पष्ट दिशा है तो आप वैश्विक हलचलों के लाभार्थी होंगे। तुलनात्मक रूप से देखें तो भारत अच्छी स्थिति में है।
निजी पूंजीगत व्यय में तेजी क्यों नहीं दिखती?
पिछले 3 साल से निजी पूंजीगत व्यय ठीक तरीके से बढ़ा है। यह आम धारणा है कि निजी पूंजीगत व्यय नहीं हो रहा है। निजी पूंजीगत व्यय उल्लेखनीय रूप से हो रहा है। वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक वजहों से पिछले 4-5 महीने से पूंजीगत व्यय थोड़ा कम हुआ है। लोग यही चाहते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाए। उद्यमियों की वित्तीय जोखिम लेने की क्षमता कम हो गई है। वे बहुत ज्यादा कर्ज में नहीं रहना चाहते या बेवजह जोखिम नहीं उठाना चाहते। शहरी मांग में थोड़ी कमी को देखते हुए लोग 3-4 महीने इंतजार कर रहे हैं। मंजूरी मिलने में थोड़ा अधिक समय लगता है। मंजूरी प्रक्रिया तेज होती तो पूंजीगत व्यय में तेजी नजर आती। कर्मचारियों की उपलब्धता भी एक मसला है। इसके साथ ही एमएसएमई को धन मिलना भी बड़ी चुनौती है।
फॉक्सकॉन द्वारा कर्मचारियों को घटाए जाने और विनिर्माण क्षेत्र पर इसके असर के बारे में आपका क्या मानना है?
ऐसा होने की अलग-अलग वजहें हैं। क्वाड की बैठक से लेकर भारत व अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता इसकी वजह हो सकती है। वास्तविक वजह का पता लगा पाना मुश्किल है। वहीं भारत व चीन के बीच सीधी उड़ानें बहाल हुई हैं। व्यापार और व्यावसायिक संबंधों का कुछ सामान्यीकरण हो रहा है। इसलिए इस रिश्ते को समझना बहुत जटिल है।
भारत-अमेरिका एफटीए से क्या भारतीय उद्योग कम शुल्क पर काम करेंगे?
भारतीय उद्योग के लिए वैकल्पिक परिदृश्य यह है कि अमेरिका निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया जाए। भारतीय उद्योग निश्चित रूप से एफटीए की उम्मीद कर रहा है। मुख्य बात यह देखना है कि भारत के प्रतिस्पर्धी देशों के साथ क्या स्थिति रहती है।
कृषि में भारत की स्थिति को कैसे देखते हैं?
यदि मैं वर्तमान में एफटीए पर चल रही बातचीत को देखूं तो मैं पाता हूं कि इसमें सबसे पहले दोनों पक्षों के लिए फायदे वाली बात होती है, तथा बाद में अधिक जटिल मुद्दों पर विचार किया जाता है। कुछ क्षेत्रों पर अगले दौर में बातचीत होगी।
माना जा रहा है कि आरडीआई योजना से फंड दिए जाने का ढांचा ऐसा बना है कि स्टार्टअप्स की तुलना में बड़ी कंपनियों को अधिक लाभ हो सकता है। आप क्या सोचते हैं?
मुझे ऐसा नहीं लगता। कुल मिलाकर यह अच्छी योजना है। स्टार्टअप बहुत गतिशील हैं। उन्हें पता होगा कि उन्हें अपना हक कैसे हासिल करना है, और वे जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
मुझे उम्मीद है कि इसका बहुत सारा हिस्सा स्टार्टअप्स को मिलेगा, क्योंकि वे अब विनिर्माण, रक्षा, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं। मुख्य बात यह है कि कितनी तेजी से हम धन का इस्तेमाल करने में सफल होते हैं।