प्रतीकात्मक तस्वीर
फरवरी में औद्योगिक उत्पादन में केवल 2.9 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो 6 महीने में सबसे सुस्त आंकड़ा है। कमजोर मांग और अधिक आधार के कारण ऐसा हुआ है। पिछले साल फरवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 5.6 प्रतिशत बढ़ा था और इस साल जनवरी में वृद्धि 5.2 प्रतिशत थी।
सांख्यिकी मंत्रालय से जारी आंकड़े बताते हैं कि खनन (1.6 प्रतिशत) और विनिर्माण (2.9 प्रतिशत) में उत्पादन सुस्त रहा मगर वहीं बिजली (2.9 प्रतिशत) उत्पादन में पहले की तुलना में वृद्धि हुई है।
उपभोग के आधार पर श्रेणियां देखें तो पूंजीगत वस्तु (8.3 प्रतिशत) और बुनियादी ढांचे से जुड़ी वस्तुओं (6.6 प्रतिशत) की वृद्धि दर तेज रही है। किंतु प्राथमिक वस्तुओं (2.8 प्रतिशत) और सहायक वस्तुओं (1.5 प्रतिशत) में वृद्धि की रफ्तार घटी है।
फरवरी में उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन 3.8 प्रतिशत बढ़ा है मगर उपभोक्ता गैर टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन 2.1 प्रतिशत की दर से घटा है। इसमें लगातार तीसरे महीने गिरावट आई है। केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि बिजली उत्पादन में जो वृद्धि हुई उसका असर खनन और विनिर्माण से जुड़ी वस्तुओं के उत्पादन में कमी की वजह से खत्म हो गया। इससे फरवरी में कुल मिलाकर वृद्धि दर प्रभावित हुई। उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक पूंजीगत व्यय का समर्थन बने रहने की संभावना है किंतु वैश्विक अनिश्चितता के कारण निजी क्षेत्र का निवेश आने वाली तिमाहियों में सुस्त रह सकता है।’
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि उपलब्ध प्रमुख संकेतकों में से ज्यादातर का प्रदर्शन मार्च में सुधरा है, जिसमें बिजली उत्पादन, आवाजाही और ट्रांसपोर्ट से जुड़े संकेतक जैसे जीएसटी ईवे बिल काटना, बंदरगाहों पर कारगो की आवाजाही, डीजल की खपत, पेट्रोल की खपत और वाहनों का पंजीकरण शामिल है। वस्तुओं की राज्य के भीतर और राज्य के बाहर ढुलाई के लिए कारोबारियों द्वारा सृजित ईवे बिल या इलेक्ट्रॉनिक परमिट मार्च में रिकॉर्ड 12.45 करोड़ पर पहुंच गए क्योंकि वित्त वर्ष खत्म होने से पहले कारोबारियों ने अपने गोदाम खाली किए थे।
नायर ने कहा, ‘खनन की वृद्धि फरवरी की तुलना में मार्च में कम रह सकती है किंतु तेज विनिर्माण वृद्धि के कारण बिजली में तेजी से इसकी भरपाई हो जाएगी। इक्रा को उम्मीद है कि मार्च 2025 में आईआईपी वृद्धि 3 प्रतिशत रहेगी और फरवरी के स्तर पर ही रहेगी।’सिन्हा ने कहा कि ग्रामीण मांग सुधर रही है किंतु शहरी मांग में सुस्ती बनी हुई है, जो चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा, ‘कृषि उत्पादन में तेज वृद्धि और मॉनसून सामान्य रहने की उम्मीद ग्रामीण मांग को सहारा दे सकती है। इसके अलावा खाद्य महंगाई दर में गिरावट कुल मिलाकर खपत को पटरी पर लाने के लिए अनुकूल है। किंतु शहरी मांग पर नजर रखने की जरूरत है।’
इस समय शुल्कों की जंग चलने के कारण अर्थशास्त्री वित्त वर्ष 2026 में वृद्धि में मंदी की चेतावनी दे रहे हैं। मूडीज एनॉलिटिक्स ने गुरुवार को कैलेंडर वर्ष 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान 30 आधार अंक घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया क्योंकि अमेरिका के शुल्क की स्थिति में रत्न एवं आभूषण, मेडिकल उपकरण और कपड़ा उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
सिन्हा ने कहा कि आगे की स्थिति देखें तो वैश्विक अनिश्चितता जारी रहने पर निजी निवेश और खपत दोनों पर ही बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘बहरहाल रिजर्व बैंक द्वारा दूसरी बार नीतिगत दर में कटौती करने और महंगाई का दबाव कम होने की स्थिति में कुछ समर्थन मिलेगा।’