भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने आज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं के समूह को कोवैक्सीन के प्रभावों पर हालिया अध्ययन के साथ चिकित्सा संगठन को ‘गलत तरीके से’ जोड़ने के लिए फटकार लगाई और कहा कि यह ‘खराब तरीके से तैयार किया गया’ अध्ययन था।
बायोमेडिकल अनुसंधान की रूपरेखा, समन्वय और प्रचार के लिए देश की शीर्ष संस्था आईसीएमआर ने शोधकर्ताओं से कहा है कि वे इस अध्ययन से आईसीएमआर की स्वीकृति हटाएं और माफीनामा प्रकाशित करें या फिर कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई का सामना करें।
इस शोध पत्र के लेखकों और जिस विज्ञान पत्रिका में इसे प्रकाशित किया गया था, उसके संपादक को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘आईसीएमआर इस अध्ययन से जुड़ा हुआ नहीं है और उसने इस शोध के लिए कोई वित्तीय या तकनीकी सहायता नहीं दी है। इसके अलावा आपने कोई मंजूरी लिए बिना या संगठन को बताए बिना शोध में सहायता के लिए आईसीएमआर की स्वीकृति लगाई है, जो अनुचित और अस्वीकार्य है।
यह पत्र आईसीएमआर के महानिदेशक राजीव बहल ने लिखा था। इसमें में कहा गया है, ‘हम आपसे इस शोध पत्र को वापस लेने का अनुरोध करते हैं, जो सीधे-सीधे टीका सुरक्षा के बारे में ऐसे निष्कर्ष निकालता है, जिनका को प्रामाणिक आधार नहीं हैं।’
अध्ययन इस महीने की शुरुआत में बीएचयू के शोधकर्ताओं की टीम ने हैदराबाद की टीका विनिर्माता भारत बायोटेक द्वारा बनाए गए कोवैक्सीन पर एक साल का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में उन 635 किशोरों और 291 वयस्कों को शामिल किया गया था, जिन्हें कोवैक्सीन टीका लगा था। टीकाकरण के एक साल के बाद दीर्घकालिक प्रतिकूल घटनाओं (एईएसआई) के बारे में इन प्रतिभागियों से फोन पर बातचीत की गई थी।
इस अध्ययन के अनुसार कोवैक्सिन का टीका लगवाने वाले लगभग एक-तिहाई लोगों ने इन प्रतिकूल घटनाओं का सामना करना पड़ा था। ‘ड्रग सेफ्टी ऑफ स्प्रिंगर नेचर’ में प्रकाशित यह अध्ययन ब्रिटेन की फार्मास्युटिकल क्षेत्र की दिग्गज एस्ट्राजेनेका द्वारा वहां की अदालत में यह स्वीकार किए जाने के बाद सामने आया है कि कोविड के उसके टीके से खून के थक्के जमने और प्लेटलेट की संख्या कम होने के दुर्लभ दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
इस बीच आईसीएमआर ने इस अध्ययन की रूपरेखा में खराब कार्यप्रणाली और गंभीर खामियों को चिह्नित किया है। अध्ययन में डेटा संग्रह की विधि में पूर्वग्रह का बहुत जोखिम होने का जिक्र करते हुए बहल ने बताया कि अध्ययन के प्रतिभागियों से टीकाकरण के एक साल बाद टेलीफोन पर संपर्क किया गया था और क्लीनिकल रिकॉर्ड या शारीरिक परीक्षण वाली किसी भी पुष्टि के बिना उनकी प्रतिक्रियाओं को दर्ज किया गया था। बीएचयू का कहना है कि विश्वविद्यालय मामले की जांच कर रहा है।