श्रीलंका के बिजली और ऊर्जा मंत्रालय ने अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) को आवंटित पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कैबिनेट स्तर का ज्ञापन तैयार किया है, जिनके लिए भारत और श्रीलंका की सरकारों के बीच समझौता होगा।
श्रीलंका के संडे टाइम्स ने 3 सितंबर को एक खबर में लिखा है कि इस साल जुलाई में राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के भारत दौरे में द्वीपीय देश में अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए भारत और श्रीलंका के बीच सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर होंगे, जिसमें 500 मेगावॉट की पवन ऊर्जा परियोजनाएं भी शामिल होंगी। रिपोर्ट में श्रीलंका की बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचना विजय शेखरा द्वारा लाए गए ज्ञापन का हवाला दिया गया है।
पिछले साल बगैर किसी निविदा प्रक्रिया के एजीईएल को पवन ऊर्जा परियोजनाएं दिए जाने पर श्रीलंका में राजनीतिक हंगामा हुआ था। भारत में भी विपक्षी दलों ने इस मसले को उठाया था।
बिजली और ऊर्जा मंत्री ने ज्ञापन में इसे उचित बताते हुए कहा कि टेंडर की कमी थी, जिसके आधार पर एजीईएल की सिफारिश की गई।
संडे टाइम्स में ज्ञापन के हवाले से कहा गया है, ‘भारत की अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया है। इसी के मुताबिक कैबिनेट मंत्रियों ने प्रस्ताव पर विचार किया और मसौदा एमओयू के विषयों की समीक्षा की। इसमें सभी पक्षों को इसमें शामिल होने और परियोजना पूरी करने के लिए एमओयू में दी गई पद्धति के मुताबिक भविष्य की कार्रवाई के लिए अधिकृत किया गया है। बिजली अधिनियम के तहत भारत की अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के उल्लिखित प्रस्ताव पर विचार करने को दृढ़ता से उचित ठहराया जा सकता है।’
इस मसले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया के लिए श्रीलंका के बिजली एवं ऊर्जा मंत्रालय और सरकारी कंपनी सिलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) से संपर्क नहीं हो सका। इसके बारे में जानकारी के लिए बिजनेस स्टैंडर्ड ने अदाणी समूह के प्रवक्ता के पास एक प्रश्नावली भेजी, जिसका खबर लिखे जाने तक उचित जवाब नहीं मिल सका।
जून 2022 में उस समय सीईबी के चेयरमैन के पद पर काम कर रहे एमएमसी फर्डिनांडो ने कहा था कि ‘तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने उन्हें 24 नवंबर, 2021 को तलब किया था और उनसे कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी उन पर दबाव बना रहे हैं कि यह परियोजना अदाणी समूह को सौंपी जाए।’ लेकिन श्रीलंका के राष्ट्रपति के कार्यालय ने इस तरह के प्राधिकार देने और पत्र जारी करने से इनकार किया था और बाद में फर्डिनांडो ने भी अपना बयान वापस ले लिया और सीईबी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया।
लेकिन बाद में सीईबी ने एक स्थानीय बिजनेस अखबार को दिए गए एक बयान में स्वीकार किया कि भारत सरकार ने देश के मन्नार और पूनरिन इलाकों में पवन ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण के लिए एजीईएल के नाम की सिफारिश की थी। सीईबी ने यह भी उल्लेख किया है कि एजीईएल के साथ हुए एमओयू के तहत वह पवन बिजली परियोजनाओं के लिए व्यवहार्यता अध्ययन कर रही थी और कंपनी के साथ उचित शुल्क पर मोलभाव के बाद ही परियोजना का निर्माण किया जाएगा।
एजीईएल को परियोजनाएं आवंटित करने को लेकर श्रीलंका के बिजली मंत्रालय ने सरकार के पास धन की कमी का भी हवाला दिया है। ज्ञापन में कहा गया है, ‘सीईबी ने बिजली एवं ऊर्जा मंत्रालय से कहा है कि 13.5 करोड़ डॉलर की बुनियादी ढांचा लागत नहीं बढ़ाई जा सकती, क्योंकि आर्थिक संकट के बाद ज्यादातर राजस्व प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को स्थानांतरित कर दिया गया है। इसकी वजह से मंत्री विजेसेकरा ने भारत की एजीईएल के उल्लिखित प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल से विचार करने का अनुरोध किया, जिसके तहत मन्नार और पूनेरयन में 44.2 करोड़ डॉलर की लागत से 500 मेगावॉट के बिजली संयंत्रों का निर्माण सरकार से सरकार के बीच समझौते की श्रेणी में किया जाएगा।’