एफएमसीजी कंपनियों ने सरकारी आदेश के दबाव में पेपर स्ट्रॉ का आयात करना शुरू कर दिया है। सरकार ने प्लास्टिक स्ट्रॉ के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है जिसके बाद इन कंपनियों के पास पेपर स्ट्रॉ आयात करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं रह गया है। यह प्रतिबंध आगामी 1 जुलाई से प्रभावी हो जाएगा।
पारले एग्रो ने पेपर स्ट्रॉ मंगाना भी शुरू कर दिया है। रियल ब्रांड के तहत छोटे पैक में फलों का जूस बेचने वाली डाबर इंडिया भी विदेश से पेपर स्ट्रॉ मंगाने पर विचार कर रही है। पारले एग्रो ने एक ई-मेल में कहा कि नए सरकारी दिशानिर्देशों का अनुपालन करने के लिए कंपनी ने विदेश से पेपर स्ट्रॉ मंगाना शुरू कर दिया है। मगर कंपनी ने यह भी कहा कि विदेश से अधिक दिनों तक आयात एक टिकाऊ विकल्प नहीं हो सकता। पारले एग्रो की सीईओ शौना चौहान ने कहा, ‘पॉलिलैक्टिक एसिड (पीएलए) और पेपर स्ट्रॉ मंगाने पर प्रतिशत लागत क्रमशः 259 प्रतिशत और 278 प्रतिशत तक बढ़ गई है। केवल 10 रुपये के उत्पाद के लिए इतना महंगा स्ट्रॉ कहीं फिट नहीं बैठता है।’ शौना ने कहा कि भारत में फिलहाल पर्याप्त मात्रा में पेपर स्ट्रॉ का उत्पादन करने की पर्याप्त क्षमता मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार हमें पूरी राहत नहीं दे सकती तो कम से कम स्थानीय स्तर पर यह उत्पाद तैयार करने के लिए हमें छह महीने का समय दिया जाना चाहिए।
शौना ने कहा कि अगर छह महीने की मोहलत मिल जाती है तो बेवरिज कंपनियों को पर्याप्त मात्रा में पेपर स्ट्रॉ की आपूर्ति करने लायक सुविधा भारत में तैयार हो जाएगी। इससे बेवरिज कंपनियों के लिए प्लास्टिक स्ट्रॉ छोड़कर पेपर स्ट्रॉ के इस्तेमाल की तरफ कदम बढ़ाना आसान हो जाएगा और अधिक आयात का बोझ भी नहीं आएगा एवं आपूर्ति व्यवस्था में भी कोई बाधा पेश नहीं आएगी।
पारले एग्रो ने स्थानीय सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग का विकास करने पर काम शुरू कर दिया है ताकि आवश्यक मात्रा में पेपर स्ट्रॉ की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इस समय जो स्ट्रॉ आते हैं वे खुदरा नहीं मिलते हैं। शौना ने कहा, हमारे सभी पैकों में इंटीग्रेटेड स्ट्रॉ का इस्तेमाल होता है जो पैक के साथ ही उपयोग के बाद फेंक दिए जाते हैं। इस वजह से पैक के साथ उनकी रीसाइक्लिंग करनी पड़ती है और हम अपने 85 प्रतिशत पैक रीसाइकल करते हैं।
डाबर इंडिया ने भी कहा कि इंटीग्रेटेड प्लास्टिक स्ट्रॉ का भारत में फिलहाल कोई दमदार विकल्प मौजूद नहीं है। डाबर इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी मोहित मल्होत्रा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पेपर स्ट्रॉ मंगाना काफी महंगा भी होगा और इससे कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी और सरकार को राजस्व नुकसान होगा। हमारा सरकार से आग्रह है कि पेपर स्ट्रॉ के उत्पादन के लिए पर्याप्त ढांचा उपलब्ध होने तक नए दिशा निर्देश प्रभावी करने की तिथि आगे बढ़ा दी जानी चाहिए।’
ऐक्शन अलायंस फॉर रीसाइक्लिंग बेवरिज कार्टून्स (एएआरसी) ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेपर स्ट्रॉ अपनाने की दिशा में धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। एएआरसी के मुख्य कार्याधिकारी प्रवीण अग्रवाल ने कहा, ‘हमें लगता है कि अगले वर्ष की अप्रैल-जून में एफएमसीजी उद्योग 50 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक स्ट्रॉ का विकल्प खोज लेगा और अगले साल अक्टूबर-दिसंबर तक पूरी तरह पेपर स्ट्रॉ का इस्तेमाल शुरू हो जाएगा।’
अग्रवाल ने कहा कि यूरोपीय देश भी पेपर स्ट्रॉ अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में इस समय पेपर स्ट्रॉ तैयार करने की पर्याप्त क्षमता मौजूद नहीं है और न ही वैश्विक स्तर पर इनका पर्याप्त उत्पादन हो रहा है।