प्रमुख आईटी सेवा कंपनी विप्रो ने 2021 की शुरुआत से ही एक नए संगठनात्मक ढांचे की ओर रुख किया है। कंपनी पर नजर रखने वाले विश्लेषक अब इस बात को लेकर आशंका जता रहे हैं कि करीब 1.45 अरब डॉलर के सौदे के तहत कैपको के अधिग्रहण के जरिये बीएफएसआई क्षेत्र में विप्रो की मौजूदगी बढ़ाने के लिए सीईओ थिएरी डेलापोर्ट का यह प्रयास कहीं जल्दबाजी में उठाया गया कदम तो नहीं है।
हालांकि कई लोग इस बात से सहमत हैं कि लक्ष्य के लिहाज से कैपको अच्छी हो सकती है लेकिन अधिग्रहण के मोर्चे पर भारतीय प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले हमेशा आक्रामक रुख अख्तियार करने वाली विप्रो के पास प्रदर्शन के मोर्चे पर दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। प्रदर्शन के मामले में कंपनी लगातार पिछड़ रही है।
निर्मल बांग के अनुसंधान प्रमुख गिरीश पई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निष्पादन इस अधिग्रहण की सबसे महत्त्वपूर्ण बात होगी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘कैपको के अधिग्रहण के बाद विप्रो के बीएफएसआई कारोबार का आकार एक्सेंचर और टीसीएस (प्लेटफॉर्म कारोबार सहित) के मुकाबले आकार में करीब एक तिहाई होगा। इसलिए इस सौदे की चाबी निष्पादन और मूल्य सृजन में निहित होगी। पिछले दो दशक के दौरान अधिग्रहण के मोर्चे पर विप्रो के ट्रैक रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो वह औसत से भी खराब रहा है। भारतीय आईटी कंपनियों के बीच सबसे अधिक विलय-अधिग्रहण करने के बावजूद विप्रो पिछले 10 वर्षों के दौरान उद्योग के अनुरूप वृद्धि हासिल करने में विफल रही है। इसलिए राजस्व के मोर्चे पर उद्योग में वह पिछड़ गई।’
कैपको से पहले विप्रो का सबसे बड़ा अधिग्रहण 2007 में इन्फोक्रॉसिंग का अधिग्रहण था। उस दौरान भी कंपनी अधिग्रहण के बारे में काफी उत्साहित थी। कंपनी ने कहा था कि बुनियादी ढांचा प्रबंधन सेवा (आईएमएस) क्षेत्र में कंपनी की पैठ बढ़ेगी लेकिन वित्त वर्ष 2014 में इस श्रेणी में विप्रो के मुकाबले एचसीएल टेक्नोलॉजिज आगे थी।
