तेल एवं गैस अन्वेषण के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एकसमान लाइसेंसिंग नीति को मंजूरी दे दी है, लेकिन इसके बावजूद शेल गैस को लेकर नीतिगत स्पष्टता नहीं है। इससे निवेशकों को नुकसान होता दिख रहा है। लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध ग्रेट ईस्टर्न एनर्जी कॉर्पोरेशन (जीईईसीएल) को शेल गैस अन्वेषण में 10 साल में 2 अरब डॉलर निवेश करना था, जिसे अब पर्यावरण मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया है।
कंपनी ने अपने रानीगंज (दक्षिण) ब्लॉक में 9.25 लाख करोड़ घन फुट (टीसीएफ) गैस भंडार का अनुमान लगाया था, जिसमें 6.63 टीसीएफ शेल और 2.62 टीसीएफ सीबीएम (कोल बेड मीथेन) का अनुमान था। बहरहाल कंपनी के शेल गैस अन्वेषण का प्रस्ताव पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2 जुलाई को खारिज कर दिया गया है। यह प्रस्ताव इस आधार पर खारिज किया गया है कि कोल बेड मीथेन गैस और शेल गैस ड्रिलिंग तकनीकी आधार पर दो अलग गतिविधियां हैं। पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने और एस्सार ऑयल ऐंड गैस एक्सप्लोरेशन ऐंड प्रोडक् शन (ईओजीईपीएल) को शेल और सीबीएम के साथ साथ अन्वेषण को इसी मंत्रालय द्ववारा मई 2019 में मंजूरी दिए जाने के बावजूद ऐसा किया गया है।
एस्सार को भी करीब 1.6 टीसीएफ शेल गैस क्षमता होने का अनुमान है, जिस पर कंपनी 7,000 करोड़ रुपये निवेश कर सकती है।
दिलचस्प है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेल और गैस उत्पादकों को शेल ऑयल और गैस तथा कोल बेड मीथेन के अन्वेषण को मौजूदा लाइसेंस के तहत अनुमति दी थी, जिसे देश में गैर परंपरागत हाइड्रोकार्बन की क्षमता के दोहन की दिशा में एक कदम माना गया था। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘प्रस्तावों को मंजूरी देने की शर्तों में कुछ एकरूपता होनी चाहिए। पर्यावरण मंत्रालय इस तरह के निवेशों की राह में रोड़ा नहीं अटका सकता, जब कैबिनेट ने पहले ही एकसमान लाइसेंसिंग नीति को मंजूरी दे दी है।’
