दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन (डीएचएफएल) के पूर्व प्रवर्तक कपिल वधावन ने नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के मुंबई के पीठ के आदेश पर रोक लगाने वाले अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है। एलसीएलटी के मुंबई पीठ ने अपने आदेश में लेनदारों की समिति (सीओसी) को वधावन के सुलह प्रस्ताव पर विचार करने का निर्देश दिया था।
वधावन परिवार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में मौजूद रश्मिकांत ऐंड पार्टनर्स के पार्टनर रोहन दक्षिणी ने कहा, ‘हम एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाने और एनसीएलटी के आदेश को बहाल करने के लिए कह रहे हैं। हमारी दलील यह है कि हमने एक सुलह प्रस्ताव दिया है जो सफल बोलदाता की पेशकश के मुकाबले 50,000 करोड़ रुपये अधिक है।’
दक्षिणी ने कहा, ‘इसलिए सीओसी को कम से कम हमारे प्रस्ताव की वाणिज्यिक व्यवहार्यता पर गौर करना चाहिए। यदि उन्हें यह व्यवहार्य न लगे तो वे इसे अस्वीकार कर सकते हैं। लेकिन उन्हें महज तकनीकी आधार पर इसे खारिज नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें एक बड़ी रकम की पेशकश की गई है।’ उन्होंने कहा, ‘दिलचस्प है कि जब यह मामला एनसीएलएटी में था तो एनसीएलटी की उस बात पर गौर नहीं किया गया कि सीओसी के 65 फीसदी सदस्यों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पूर्व प्रवर्तकों ने किस प्रकार का सुलह प्रस्ताव रखा है।’
वधावन ने दिसंबर में कंपनी के प्रशासक को लिखे एक पत्र में दोहराया था कि लेनदारों के 91,158 करोड़ रुपये के पूरे मूलधन बकाये का भुगतान किया जाएगा। उन्होंने अपने पत्र में कहा था कि डीएचएफएल के बहीखाते अनुसार उसके पास करीब 9,062 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं जिनका इस्तेमाल छोटे निवेशकों के बकाया ऋण एकमुश्त पुनर्भुगतान और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) की अदायगी में किया जा सकता है।
लेनदारों की समिति, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) से पीरामल समूह की समाधान योजना को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। पीरामल समूह ने 12,700 करोड़ रुपये के एकमुश्त नकद भुगतान के साथ 37,250 करोड़ रुपये के भुगतान की पेशकश की है।