बंबई उच्च न्यायालय ने दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन (डीएचएफएल) के छोटे शेयरधारक की याचिका स्वीकार कर ली है, जो स्टॉक एक्सचेंजों से कंपनी को असूचीबद्धता पर स्थगन चाहता है। अधिग्रहण के बाद पीरामल समूह की योजना डीएचएफएल का विलय अपने वित्तीय सेवा कारोबार के साथ करने की है और इसमें डीएचएफएल की इक्विटी वैल्यू शून्य हो जाएगी।
उच्च न्यायालय ने सभी पक्षकारों को नोटिस भेजा है और इस पर अप्रैल के आखिर में सुनवाई करेगा। कंपनी के एक शेयरधारक पुनीत नांगलिया ने याचिका में कहा है कि किसी सूचीबद्ध इकाई की सामान्य असूचीबद्धता के समय मौजूदा शेयरधारकों की निकासी के लिए पेशकश कीमत का आकलन बुक बिल्डिंग के जरिये होना चाहिए। नियम यह भी कहता है कि फ्लोर प्राइस अधिग्रहण नियमन की शर्तों के मुताबिक तय किया जाएगा। सेबी के अधिग्रहण नियमन में कहा गया है कि शेयरों के अधिग्रहण के लिए अधिग्रहणकर्ता की तरफ से खुली पेशकश लाई जाएगी, जो विभिन्न मानदंडों व फॉर्मूले के मुताबिक होगी, ताकि ज्यादा प्रतिस्पर्धी कीमत पर पहुंचा जा सके, जो खुली पेशकश के तहत सभी शेयरधारकों को दिया जाएगा ताकि छोटे शेयरधारकों को फायदा पहुंचे।
लेकिन डीएचएफएल के अधिग्रहण के मामले में ऐसा नहीं किया गया और छोटे शेयरधारकों को उस गलती के लिए अथॉरिटी ने दंडित किया, जो उन्होंने किया ही नहीं है और उनका मूल्यांकन शून्य कर दिया गया।
इस याचिका में दिवालिया संहिता को भी चुनौती दी गई है, जो छोटे शेयरधारकों को कोई मूल्यांकन नहीं देता। इस पर जानकारी मांगे जाने पर पीरामल के प्रवक्ता ने टिप्पणी करने से मना कर दिया।
