प्रतीकात्मक तस्वीर
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद को डाबर के च्यवनप्राश उत्पादों को बदनाम करने वाले किसी भी टेलीविजन विज्ञापन को प्रसारित करने से रोक दिया। उच्च न्यायालय का यह फैसला डाबर इंडिया की उस याचिका पर आया है जिसमें कथित मानहानिकारक विज्ञापन अभियान के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने डाबर इंडिया के अंतरिम आवेदनों को स्वीकार कर लिया। विस्तृत आदेश की प्रति का इंतजार है। मामले की सुनवाई अब 14 जुलाई को होगी।
डाबर ने मामले में दो अंतरिम निषेधाज्ञा अर्जियां लगाई थीं जिन पर पिछले दिसंबर में समन जारी किए गए थे। दूसरे निषेधाज्ञा आवेदन में डाबर ने आरोप लगाया कि समन जारी होने के बाद भी पतंजलि ने एक सप्ताह में उसके उत्पाद के खिलाफ हजारों विज्ञापन चलाए।
पतंजलि आयुर्वेद ने यह भी दावा किया है कि उसके उत्पाद में 51 जड़ी-बूटियां हैं जबकि डाबर के उत्पाद में 40 जड़ी-बूटियां शामिल हैं। डाबर ने अपनी याचिका में कहा कि पतंजलि च्यवनप्राश की सामग्री की सूची से पता चलता है कि इसमें मकरध्वज पाउडर है, जो पारा/हिंगला और सल्फर का मिश्रित फॉर्मूलेशन है। डाबर ने अपनी याचिका में यह भी तर्क दिया कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के परामर्श के अनुसार पारा जैसे कच्चे माल वाले उत्पादों के साथ एक डिस्क्लेमर होना चाहिए।
डाबर ने अपनी याचिका में कहा है कि पतंजलि ने प्रिंट या टीवी विज्ञापनों में एडवाइजरी के अनुरूप ऐसे डिस्क्लेमर जारी नहीं किए। डाबर ने अपनी याचिका में कहा कि पतंजलि अपने विज्ञापनों में उत्पाद के प्रचार में ‘मासूम बच्चे’ तक करने लगा और यह भ्रामक विज्ञापन होने के साथ-साथ जनहित के खिलाफ भी है।
डाबर ने कहा कि पतंजलि के विज्ञापन में विशेष रूप से 40 जड़ी-बूटियों से बने डाबर के उत्पाद को ‘साधारण’ बताया गया, जो उसके ब्रांड को बदनाम करता है।
इसके अलावा, डाबर ने यह भी दावा किया कि टीवी और प्रिंट विज्ञापनों में पतंजलि ने झूठे और गलत बयान दिए हैं और गंभीर तुलनाएं की हैं, जो खास आयुर्वेदिक दवा यानी डाबर च्यवनप्राश को बदनाम करती हैं।