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जेपी इन्फ्रा: एनबीसीसी के प्रस्ताव पर विचार

Last Updated- December 12, 2022 | 4:31 AM IST

जेपी इन्फ्रा के लिए सुरक्षा समूह की समाधान योजना पर सोमवार को मतदान होने वाला है पर एनबीसीसी इंडिया ने एक बार फिर अपनी पेशकश में कुछ जोड़ा है और दोहराया है कि वह अगले तीन साल में 2,000 करोड़ रुपये लगाएगी। लेनदारों की समिति ने सुरक्षा समूह की योजना पर मतदान से पहले एनबीसीसी की पेशकश की समीक्षा के लिए सोमवार को बैठक करने का फैसला लिया है।
लेकिन सीओसी के ढुलमुल रवैये ने जेपी इन्फ्रा के घर खरीदारों के बीच भय पैदा कर दिया है, जो पिछले 11 साल के अपने मकान की चाबी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। एक घर खरीदार ने कहा, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ढुलमुल रवैया पूरी प्रक्रिया में देर कर रहा है। हम और कानूनी विवाद नहींं चाहते क्योंकि जेपी की कर्ज समाधान योजना पिछले चार साल से कानूनी विवाद में फंसी हुई है, ऐसे में पूरी प्रक्रिया में देर हो रही है। जेपी इन्फ्राटेक का कर्ज समाधान अगस्त 2017 में शुरू होना था, जब कंपनी ने 22,000 करोड़ रुपये के कर्ज भुगतान में चूक की। 21 मई की सीओसी की बैठक में सीओसी ने सुरक्षा समूह की संशोधित योजना पर सोमवार को मतदान का फैसला लिया था और एनबीसीसी इंडिया का प्रस्ताव ठुकरा दिया था क्योंकि यह आईबीसी और जेपी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पिछले आदेशों के मुताबिक नहीं था।
पेशकश जमा कराने की तारीख समाप्त होने के बाद उसी रात एनबीसीसी इंडिया ने अपनी समाधान योजना में कुछ संशोधन के साथ उसे रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल और सीओसी के सामने रखा। एनबीसीसी ने अपनी समाधान योजना में संशोधन कर दिया और कहा कि उसकी योजना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और आईबीसी के मुताबिक है।
घर खरीदारों ने कहा कि एनबीसीसी की पेशकश की समीक्षा के लिए सीओसी की तरफ से एक और बैठक बुलाना अवैध नहीं है। साथ ही निजी क्षेत्र के कुछ बैंक पहले ही सीओसी को सूचित कर चुके हैं कि वह जीरो कूपन वाला 21 साल का एनबीसीसी का एनसीडी स्वीकार नहींं करेंगे क्योंकि यह संहिता के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी एस चौहान ने घर खरीदारों को अपनी कानूनी राय में कहा है, जब सीओसी ने एनबीसीसी की योजना के गैर-अनुपालन वाला बताया है और सुरक्षा समूह की योजना पर वोटिंग कर रही है, ऐसे में दिवालिया संहिता के किसी प्रावधान के बिना सीओसी अब अपने फैसले की समीक्षा के जरिये एनबीसीसी की समाधान योजना पर वोटिंग की अनुमति नहीं दे सकती। सर्वोच्च न्यायालय समेत विभिन्न अदालतों ने इसे सही ठहराया है कि प्रशासनिक आदेश की समीक्षा तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि आदेश किसी अप्रासंगिक आधार पर पारित न किया गया हो या फिर पूरी तरह अनुचित व कानून के प्रतिकूल हो।

First Published - May 23, 2021 | 11:29 PM IST

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