देश की तीन बड़ी टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनियां ने जरूरत से ज्यादा स्पेक्ट्रम ले रखा है। यह दूरसंचार मंत्रालय के दिशानिर्देशों के खिलाफ है, जिसके मुताबिक टेलीकॉम कंपनियों को मिले स्पेक्ट्रम का पूरा इस्तेमाल करना होता है।
दूसरी तरफ, भारतीय वायुसेना के लिए एक दूसरा संचार नेटवर्क इस साल जून तक तैयार हो जाएगा। भारत संचार निगम लि. (बीएसएनएल) इस नेटवर्क को तैयार कर रही है।
दूरसंचार मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन की जांच में जुटी केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को पता लगा है कि तीन बड़ी सेवा प्रदाता कंपनियों के पास जरूरत से ज्यादा स्पेक्ट्रम है।
आयोग ने इस बात को सरकार के सामने भी रखा है। हालांकि, उन सेवा प्रदाता कंपनियों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है। स्पेक्ट्रम के आबंटन के लिए अलग-अलग सर्किलों में अलग-अलग कायदे-कानून रख गए हैं। फिर भी एक मेट्रो सर्किल में किसी कंपनी को अगर 4.4 मेगाहाट्र्ज का स्पेक्ट्रम चाहिए, तो उसके पास कम से कम पांच लाख उपभोक्ता होने चाहिए।
आयोग की यह रिपोर्ट दूरसंचार विभाग की इस घोषणा के ठीक उल्ट है, जिसके मुताबिक स्पेक्ट्रम की कोई जमाखोरी नहीं है। आयोग ने इस बाबत दूरसंचार विभाग से भी सफाई मांगी है। सीवीसी ने स्पेक्ट्रम आबंटन और इस्तेमाल से जुड़े दस्तावेजों की मांग की है।
आयोग ने इससे पहले विभाग से मौजूदा सेवा प्रदाताओं को 2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन के मुद्दे पर भी सफाई मांगी थी। बाद में कहा था कि वह विभाग के जबाव से संतुष्ट नहीं है। आयोग में उन तरीकों के बारे में जानकारी मांगी है, जिसके जरिये दूरसंचार विभाग आगे स्पेक्ट्रम आबंटन करने की योजना बना रही है।
दूसरी तरफ, सूत्रों का कहना है कि वायुसेना के लिए तैयार किए जा एक अलग नेटवर्क पर काम इस साल जून तक पूरा हो जाएगा। इस नेटवर्क को एएफनेट का नाम दिया गया है और मुल्क भर में मौजूद 162 जगहों को जोड़ेगा।
इसके तैयार हो जाने के बाद यह वायुसेना की ज्यादातर संचार जरूरतों को पूरा करेगी। इससे कारोबारी इस्तेमाल के लिए काफी स्पेक्ट्रम हासिल हो जाएगी।
इस नेटवर्क को बनाने में बीएसएनएल ने पहले ही 500 करोड़ का निवेश कर चुकी है। सूत्रों के मुताबिक सेना और नौसेना के लिए भी अलग नेटवर्कों को बनाने का काम 2011 तक पूरी हो जाएगा।