कमजोर रुपये से कंपनियों की बढ़ी मुश्किलें

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 6:56 PM IST

डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी रहने से उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (कंज्यूमर ड्यूरेबल) से जुड़ी कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं जिनके पास फिर से दाम बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। उद्योग वास्तव में कई तरह की समस्याओं के साथ एक-साथ जूझ रहा है। जिंसों की अधिक लागत, चीन में कोविड की वजह से लगाए गए लॉकडाउन और रुपये के अवमूल्यन से आयातित वस्तुओं की लागत और बढ़ जाएगी। इसके अलावा, ब्याज दरें अधिक हो रही हैं और कंपनियों के लिए कार्यशील पूंजी की लागत में वृद्धि हो रही है जिससे इन ग्राहकों की ईएमआई (मासिक किस्तें) बढ़ रही हैं जो ऋण लेकर सामान खरीदने की एवज में उपभोक्ता चुकाते हैं। नतीजतन, उपभोक्ता टिकाऊ कंपनियों को जून में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की कीमतों में 2-6 प्रतिशत की वृद्धि करनी पड़ सकती है और बढ़ती लागत को पूरा करने के लिए बाद की तिमाहियों में कीमतों में वृद्धि की संभावना है। उद्योग में पहले से ही 2021 के बाद से लगभग पांच से छह बार कीमतों में वृद्धि हो चुकी है। दि कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड अप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीईएएमए) के अध्यक्ष एरिक ब्रगंजा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम कीमतों (उत्पाद की) में वृद्धि के अलावा डॉलर के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन को लेकर कुछ भी नहीं कर सकते हैं।’
हालांकि, ब्रगंजा ने यह भी कहा कि सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने कंपनियों को फैक्टरियां स्थापित करने में मदद की है जिससे अगले दो से तीन वर्षों में आयात पर भारत की निर्भरता कम हो सकती है। दूसरी अहम बात चीन में कोविड के चलते लगाया गया लॉकडाउन रहा है जिसके कारण आपूर्ति शृंखला की बाधाएं पैदा हुई हैं।
ब्रगंजा ने कहा कि कलपुर्जों की कमी और गर्मी के महीने में एयर कंडीशनर (एसी) की अधिक मांग के कारण इनमें से कुछ उत्पाद, विशेष रूप से पांच सितारा रेटिंग वाले एसीए बाजार में स्टॉक से बाहर हैं। लेकिन शायद लागत पर सबसे महत्त्वपूर्ण हालिया प्रभाव, डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट का रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार (17 मई) को दिन के सबसे निचले स्तर 77.73 रुपये पर पहुंच गया। उपभोक्ता वस्तुओं में आयात के अधिक हिस्से को देखते हुए, कमजोर रुपये के चलते लागत और भी अधिक बढ़ जाएगी। साथ ही कमजोर रुपये, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के साथ ही माल ढुलाई की लागत में वृद्धि होगी जो हाल के महीनों में भी बढ़ रहा है। गोदरेज अप्लायंसेज के कार्यकारी उपाध्यक्ष और अध्यक्ष कमल नंदी ने कहा, ‘रुपये में गिरावट की वजह से विनिर्माताओं के पास कीमतों में वृद्धि के अलावा कोई विकल्प नहीं है। एयर कंडीशनर के मामले में भी 60 प्रतिशत सामानों का आयात किया जाता है जबकि रेफ्रिजरेटर के 20 प्रतिशत सामानों का आयात किया जाता है।’
आयातित सामानों का अनुपात महंगे टेलीविजन, मोबाइल उपकरणों, कंप्यूटर जैसे उत्पादों में भी अधिक है। गोदरेज अप्लायंसेज को भी उम्मीद है कि कमजोर रुपया जून में इस क्षेत्र में कीमत में एक बार और वृद्धि करने के लिए मजबूर करेगा।
नंदी ने कहा कि रुपये के अवमूल्यन का मतलब यह है कि आयातित सामानों की लागत अधिक होगी लेकिन यह समस्या ऐसे समय में पैदा हुई है जब चीन से माल नहीं आने के कारण बाजार में सामानों की कमी है। नंदी ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘महंगाई के कारण पहले से ही इस बात के संकेत मिले हैं कि मांग में नरमी आ रही है। वातानुकूलन से जुड़े उत्पादों की मांग गर्मी और तापमान बढऩे के कारण है। एक बार मॉनसून आने के बाद, मांग में भारी कमी आएगी।’
डिक्सन टेक्नोलॉजीज के प्रबंध निदेशक और उपाध्यक्ष अतुल लाल ने कहा, ‘हमारे इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवा(ईएमएस) कारोबार में जिंस की लागत और मुद्रा में उतार-चढ़ाव का बोझ सीधे ग्राहक को दे दिया जाता है। कंपनी का करीब 80 फीसदी कारोबार ईएमएस से मिलता है।’ रुपये में गिरावट का असर टेलीविजन की लागत पर भी पड़ा है।
भारत में कोडक, थॉमसन, ब्लाउपंक्ट और वेस्टिंगहाउस की ब्रांड लाइसेंसधारक कंपनी सुपर प्लास्ट्रोनिक्स के मुख्य कार्याधिकारी, अवनीत सिंह मारवाह कहते हैं, ‘रुपये के अवमूल्यन के कारण, हमें कीमतें बढ़ानी होंगी।’
मारवाह ने समझाया कि बाजार को लगातार एक के बाद एक कारकों से निपटना पड़ रहा है मसलन, यूक्रेन-रूस संकट के कारण आपूर्ति में आने वाली बाधाएं, शांघाई में लॉकडाउन और डॉलर के मूल्य में तेजी के चलते आपूर्ति-शृंखला से जुड़ी परेशानियां आदि। मारवाह ने कहा, ‘कारोबार पर असर होगा क्योंकि हमारे पास अगले 45-50 दिनों में कीमतों में वृद्धि करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। यह वृद्धि 4-6 प्रतिशत की होगी।’ कीमतों में यह सातवीं बार वृद्धि होगी जिसे कंपनी ने 2021 की शुरुआत के बाद से अपने उपकरणों और टेलीविजनों में किया है।
कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं वाली कंपनियों में मार्जिन का दबाव देखने को मिल रहा है। मार्च 2022 तिमाही की अंतरिम आय पर अपनी रिपोर्ट में, मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज (एमओएसएल) के विश्लेषकों ने कहा कि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं उन क्षेत्रों में से हैं जो कच्चे माल की बढ़ती कीमतों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। हालांकि, कम लागत वाली इन्वेंट्री से कुछ राहत मिली है। एमओएसएल ने जिन तीन कंपनियों का विश्लेषण किया, उनकी रिपोर्ट से पता चलता है कि मार्च 2021 तिमाही में एबिटा मार्जिन 12.4 प्रतिशत था जो मार्च 2022 तिमाही में घटकर 9.9 प्रतिशत रह गया है। गोदरेज अप्लायंसेज के नंदी ने कहा कि कंपनियों ने 2021 के बाद से कीमतों में 15-16 प्रतिशत की वृद्धि की है जबकि दिसंबर 2020 के बाद से जिंस लागत में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, ‘अब भी 15 प्रतिशत का अंतर है जिसे कम करने की जरूरत है। उद्योग को जिंस लागत में वृद्धि का बोझ ग्राहकों को देने के लिए हर तिमाही में लगभग 3 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि करनी होगी।’

First Published : May 18, 2022 | 12:34 AM IST