किसी सहयोगी कंपनी में उसकी साझेदार विदेशी कंपनी की तरफ से नियुक्त किए गये निदेशक को विदेशी कंपनी का प्रतिनिधि ही माना जायेगा। भले ही निवेश करने वाली कपंनी का प्रंबधन या नियंत्रण भारतीय नागरिकों के पास हो।
2009 की प्रेस सीरिज के नोट 2 के तहत ऐसी कंपनियां जिनमें 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी और बहुतायत निदेशकों की नियुक्ति का अधिकार भारतीय नागरिकों को है, उन कंपनियों में होने वाले निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दायरे में नहीं रखा जायेगा।
इसलिए इस पर लगाए जाने वाले रोक संबधी नियम लागू नहीं होंगे। विदेशी निवेश विशेषज्ञों के मुताबिक इस नियम के लागू हो जाने से विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय नियंत्रण रखने वाले संवेदनशील सेक्टरों में निवेश करना आसान हो जाएगा।
लेकिन इसके बावजूद विदेशी साझेदार कंपनी की तरफ से निवेश के तहत सहायक कंपनी के प्रंबधन का नियंत्रण एक नया मुद्दा बन जाएगा। इस बाबत सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह इतना आसान नहीं है।
साझेदारी में बहुतायत हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी साझेदार विदेशी कं पनी को सहायक कंपनियों में ज्यादा बोर्ड सदस्य रखने का अधिकार क्यों देगी? निवेश विशेषज्ञ विदेशी निवेश के नए दिश-निर्देशों की गुत्थी को सुलझाने की अभी भी कोशिश कर रहें है।
सलाहकार फर्म केपीएमजी के सहायक निदेशक अर्पूव मेहता का कहना है कि किसी भी कंपनी के लिए इन दिशा-निर्देशों का व्यावाहरिक कार्यान्वन वाणिज्यिक मामलों के लिए स्वंवत्र रहेगा।
