साल 2019 के आरंभ में एमेजॉन डॉट कॉम के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी जे कार्नी एक महत्त्वपूर्ण बैठक की तैयारी कर रहे थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के पूर्व प्रेस सचिव कार्नी और भारत के राजदूत की बैठक वाशिंगटन डीसी में निर्धारित की गई थी। उसी दौरान भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी नियमों की घोषणा की थी जिससे दुनिया के दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में एमेजॉन का कारोबार प्रभावित हो सकता था।
बैठक से पहले एमेजॉन के कर्मचारियों ने कार्नी के लिए एक मसौदा नोट तैयार किया। रॉयटर्स ने भी उस नोट को देखा है जिसमें कार्नी को सलाह दी गई थी कि उन्हें क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है। नोट के अनुसार, उन्हें इस तथ्य को उजागर करना चाहिए कि एमेजॉन भारत में 5.5 अरब डॉलर से अधिक के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही उन्हें यह बताना चाहिए कि कंपनी किस प्रकार 4 लाख से अधिक भारतीय विक्रेताओं के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रदान करेगी।
नोट में कार्नी को यह खुलासा न करने के लिए आगाह किया गया था कि एमेजॉन की वेबसाइट पर बिकने वाली सभी वस्तुओं के मूल्य में करीब एक तिहाई हिस्सेदारी महज 33 एमेजॉन विक्रेताओं की है। नोट में इस जानकारी को संवेदनशील और खुलासा न करने लायक करार दिया गया था।
कंपनी के अन्य दस्तावेजों से भी इसी तरह की संवेदनशील जानकारी मिली है। एमेजॉन के भारती प्लेटफॉर्म पर मौजूदा अन्य विक्रेताओं में एमेजॉन की अप्रत्यक्ष शेयर हिस्सेदारी है। इन दोनों कंपनियों की इस प्लेटफॉर्म पर कुल बिक्री राजस्व में हिस्सेदारी 2019 के आरंभ में करीब 35 फीसदी थी। इसका मतलब साफ है कि भारत में एमेजॉन के 4 लाख से अधिक विक्रेताओं में से करीब 35 की कुल ऑनलाइन बिक्री में हिस्सेदारी करीब दो तिहाई थी।
ये सभी जानकारी वास्तव में राजनीतिक तौर पर संवेदनशील थी। यदि ये बाहर आतीं तो छोटे खुदरा विक्रेताओं को एक बड़ा मुद्दा मिल जाता जो एमेजॉन सहित बड़ी कंपनियों पर पहले से ही आरोप लगाते रहे हैं कि वे उनके कारोबार को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नाराज कर सकता था जिनके राजनीतिक जनाधार में ये लाखों छोटे विक्रेता शामिल हैं। साथ ही इससे एमेजॉन का वह सार्वजनिक संदेश भी झूठा साबित होता कि वह भारत में छोटे कारोबारियों का दोस्त है।
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कार्नी ने राजदूत के साथ क्या बातचीत की। अप्रैल 2019 में एक बैठक हुई थी लेकिन उसकी बारीकियों के बारे में दोनों पक्षों में से किसी ने भी खुलासा नहीं किया।
कार्नी के लिए तैयार इस संक्षिप्त नोट में एमेजॉन के सैकड़ों आंतरिक दस्तावेज निहित हैं जिसके बारे में पहली बार यहां खबर दी गई है। इससे कंपनी के लिए जोखिम गहरा सकता है क्योंकि एक तेजी से उभर रहे बाजार में उसके खिलाफ सरकारी जांच तेज हो सकती है। रॉयटर्स ने जो दस्तावेज देखे हैं वे 2012 से 2019 के बीच के हैं। इनमें बैठक का मसौदा नोट, पावरपॉइंट स्लाइड, बिजनेस रिपोर्ट और ईमेल शामिल हैं।
एक नोट में मोदी के सोचने के ‘स्ट्रेट फॉरवर्ड’ तरीके का स्पष्ट मूल्यांकन किया गया है जो उन्हें ‘बौद्धिक नहीं’ के रूप में दर्शाता है। इसके अलावा इन दस्तावेजों से भारत सरकार के साथ एमेजॉन के चूहे-बिल्ली के खेल की भी झलक मिलती है। विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों पर भारत सरकार द्वारा नई पाबंदियां लगाए जाने के हर मौके पर एमेजॉन ने कॉरपोरेट ढांचे में बदलाव किया।
रॉयटर्स की ओर से भेजे गए सवालों के जवाब में कंपनी ने कहा है कि एमेजॉन अपने मार्केटप्लेस पर किसी भी विक्रेता को कोई विशेष प्राथमिकता नहीं देती है और कंपनी हमेशा से कानून का अनुपालन करती रही है।
कंपनी ने कहा, ‘यह खबर सनसनी पैदा करने और एमेजॉन को बदनाम करने के इरादे से असंबद्ध, अपूर्ण, और/ या तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी के साथ दुर्भावना पर आधारित प्रतीत होती है।’ कंपनी ने कहा कि वह सभी विक्रेताओं के साथ निष्पक्ष, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से व्यवहार करती है। प्रत्येक विक्रेता स्वतंत्र रूप से कीमतों को निर्धारित करने और उनकी सूची के प्रबंधन केलिए जिम्मेदार है।
मोदी के कार्यालय और भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने रॉयटर्स की ओर से भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया।