सजावटी पेंट श्रेणी में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। देश की दूसरी सबसे बड़ी पेंट विनिर्माता कंपनी बर्जर पेंट्स इंडिया चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी हिस्सेदारी कायम रखने की योजना बना रही है। बर्जर के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी अभिजीत रॉय ने कोलकाता में ईशिता आयान दत्त को अपनी 100 साल पुरानी कंपनी की योजनाओं और इस बारे में बताया कि उद्योग में केवल मूल्य ही चुनाव का अकेला विकल्प नहीं होता है। प्रमुख अंश …
बिड़ला ओपस ने हाल में अपना चौथा संयंत्र शुरू किया है और बताया जाता है कि स्थापित क्षमता के लिहाज से यह सजावटी पेंट की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। क्या यह बात आपको विस्तार योजनाओं में तेजी लाने या अधिग्रहण के विकल्पों पर विचार करने के लिए प्रेरित करेगी?
पहली बात, वे दूसरी सबसे बड़ी नहीं हैं। हमारे पास 15 लाख किलोलीटर की स्थापित क्षमता है और वे हमारे आकार से लगभग आधे हैं। हम वास्तव में अपनी स्थापित क्षमता के 55 प्रतिशत स्तर पर काम कर रहे हैं। इसलिए, क्षमता बढ़ाने की (तुरंत) कोई जरूरत नहीं है।
डच फर्म अक्जो नोबेल ने अक्टूबर में कहा था कि वह दक्षिण एशिया में अपने सजावटी पेंट पोर्टफोलियो की समीक्षा कर रही है। क्या उसकी बर्जर में दिलचस्पी है?
हम सभी विकल्पों पर विचार करते हैं और तभी आगे बढ़ते हैं, जब यह समझ में आता है। अभी तक उन्होंने अपनी योजनाएं ज्यादा स्पष्ट नहीं की हैं। अतीत में हमने जो भी अधिग्रहण किया है, चाहे बड़ा हो या छोटा, इस मामले में भी यही तर्क लागू होता है। अगर अधिग्रहण की लागत उस मूल्य से कम होती है, जो हम उससे हासिल कर सकते हैं, तो हम उस पर विचार करते हैं। अगर नहीं, तो हम उसे छोड़ देते हैं।
वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही में बर्जर का राजस्व स्थिर रहा। क्या मॉनसून की लंबी अवधि की वजह से ऐसा हुआ?
मॉनसून की लंबी अवधि एक कारण रही। बिक्री प्रभावित हुई और डीलरों के पास सामग्री का स्टॉक जमा हो गया। तंत्र में जबरदस्त दबाव था। साथ ही अर्थव्यवस्था में आम सुस्ती है। उपभोग अभी भी नरम है। महंगाई खेल बिगाड़ रही है और बहुत से लोग वैकल्पिक श्रेणियों में उपभोग टालने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि ये सामान्य कारक हैं, लेकिन पेंट उद्योग ने पिछले साल कीमतों में 5 प्रतिशत गिरावट देखी। यही दूसरी तिमाही (चालू वित्त वर्ष की) में हुआ।
लेकिन चौथी तिमाही से इसमें बदलाव आएगा। वास्तव में हमने दूसरी तिमाही में 2.5 प्रतिशत की कीमत वृद्धि की है, जिसका चौथी तिमाही में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एक और नकारात्मक प्रभाव, जो उद्योग के लिए विशिष्ट है, वह है बढ़ती प्रतिस्पर्धा। अब तक बिड़ला को बाजार का 2.5 से तीन प्रतिशत हिस्सा मिला होगा। इसके बावजूद हम पिछले 2 से ढाई वर्षों में अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने में सक्षम रहे हैं।
क्या खपत में मंदी केवल शहरी केंद्रों में ही है?
हमारे मामले में ज्यादातर शहरी है, जो खपत की मांग के लिहाज से अपेक्षाकृत सुस्त रहा है। दूरदराज के बाजारों में बेहतर रफ्तार के संकेत दिख रहे हैं और अगले कुछ महीनों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। बारिश अच्छी रही है और फसल की कीमतें अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। इसलिए दूरदराज के इलाकों से आने वाले छोटे संकेतों से पता चलता है कि यह बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन हमें शहरी (क्षेत्रों) से कोई बड़ा संकेत मिलता नहीं दिख रहा।
बढ़ती प्रतिस्पर्धा का मूल्य निर्धारण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
बहुत ज्यादा नहीं, यह बहुत जल्दबाजी होगी। लेकिन कीमत ही चुनाव का एकमात्र विकल्प नहीं होती है। उपभोक्ता सस्ते उत्पाद को कम गुणवत्ता वाला मानता है। इसलिए आपको उस दिशा में सावधान रहना होगा। ब्रांड की ताकत, वितरण की ताकत, डीलरों और पेंटरों के साथ समीकरण – ये बहुत महत्वपूर्ण हैं।