निजी क्षेत्र द्वारा खरीदे और निर्यात किए गए चावल के आंकड़ों में मेल नहीं होने से सरकार अनाज के इन खरीदारों पर पैनी निगाह रख रही है। उल्लेखनीय है कि खाद्यान्न की कीमतों में हाल में बढ़ोतरी हुई है।
खाद्य मंत्रालय को चावल की खरीदारी से संबंधित सूचना केवल 10-12 कंपनियों ने दी है। सूत्रों के अनुसार, इन कंपनियों द्वारा निजी तौर पर की गई खरीदारी लगभग 11 लाख टन घोषित की गई है। लेकिन शंका व्यक्त की जा रही है कि कैसे निजी क्षेत्रों द्वारा चावल की खरीदारी केवल 11 लाख टन रही, पर इसका निर्यात इससे अधिक रहा।
मालूम हो कि 31 मार्च तक चावल के निर्यात की अनुमति थी। उसके बाद सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। खुदरा बाजार में गैर-बासमती चावल की कीमत 15 से 20 रुपये प्रति किलो है। केंद्र सरकार ने पिछले साल निजी क्षेत्र द्वारा सीजन में कभी भी 25,000 टन से अधिक चावल की खरीदारी करने पर सरकार को सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया था।
साथ ही उनसे कहा गया था कि वे सितंबर 2008 तक मासिक आधार पर रिटर्न दाखिल करें। खाद्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार अगर कोई व्यवसायी या निजी कंपनी पूरे सीजन में 10,000 टन से अधिक चावल की खरीदारी करती है तो उसे राज्य सरकार को अनिवार्य तौर पर घोषणा-पत्र देना होगा।
यह रिटर्न उस राज्य में प्रत्येक महीने दाखिल करना होगा जहां से कंपनी या व्यवसायी ने अधिकतम खरीदारी की है। सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार ने इस मसले पर खोजबीन शुरू कर दी है और वाणिज्य मंत्रालय 2007-08 सीजन के प्रत्येक निर्यातक से जुड़े आंकड़े खाद्य मंत्रालय को उपलब्ध करा चुकी है। 2007-08 सीजन में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में खरीफ चावल के आने के बाद निर्यात की शुरुआत हुई थी।
हालांकि, सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर अप्रैल 2008 में प्रतिबंध लगा दिया था। वह इसलिए कि विदेशी बाजारों में पहले ही भारी मात्रा में चावल की आपूर्ति के कारण घरेलू मूल्यों में अचानक तेजी आई थी। बताया जा रहा है कि छह महीने में जितना चावल भेजा गया था वह घोषित मात्रा से कहीं अधिक था।
उनका कहना था कि इसमें केवल निर्यातकों की ही गलती नहीं है बल्कि उन राज्यों की भी गलती है जो घोषणा-पत्र (डिक्लेयरेशन) के आदेश को नहीं मानते और स्टेटमेंट दाखिल करने वालों के संदर्भ में केंद्र सरकार को नियमित तौर पर सूचित नहीं करते हैं।
केंद्र सरकार के अधिकारियों का कहना है कि राज्यों ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया। यद्यपि वे घपले करने वाली कंपनियों या कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अधिकृत किए गए हैं। उधर बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार इस मसले को गंभीरता से ले रही है और निर्यात तथा खरीदारी से जुड़ी सूचनाओं का मूल्यांकन कर रही है।