चीन में बने पॉलिएस्टर स्टेपल फाइबर (पीएसएफ) की तुलना में देश के पॉलिएस्टर फाइबर के महंगे होने से घरेलू फाइबर उद्योगों के सामने मुकाबले में बने रहना कठिन चुनौती हो गयी है।
इंडियन स्पिनर्स असोसियशन (आईएसए) के अध्यक्ष वी. के. लाडिया ने बताया कि फिलहाल देशी पीएसएफ की कीमत 84.42 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि चीन में तैयार होने वाले पीएसएफ 74.46 रुपये प्रति किलोग्राम में मिल जा रहे हैं।
लाडिया के मुताबिक, चीनी फाइबर की तुलना में देशी फाइबर की लागत 13 फीसदी ज्यादा बैठ रही है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में बने रहना घरेलू कताई उद्योग के लिए काफी मुश्किल होता जा रहा है। जानकारों के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में कच्चे तेल में आए उछाल ने पीएसफ की कीमत को इतना ऊंचा पहुंचाया है। हालांकि, भारत में कीमत निर्धारित करने का रिवाज अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है। मतलब कि निर्धारित कीमत में लागत, बीमा खर्च और किराया (सीआईएफ) सबकुछ शामिल होता है।
लाडिया के अनुसार, लेकिन चीन से आयात होने वाले रेशे के साथ ऐसी स्थिति नहीं होती। वहां से आयात होने वाले पॉलिएस्टर फाइबर आयात शुल्क, विशेष अतिरिक्त शुल्क, काउंटरवेलिंग डयूटी, किराया और अन्य खर्चों को शामिल करने के बाद चीन की तुलना में थोड़े ही महंगे होते हैं। आईएसए ने इस मसले को सरकार के सामने उठाया है और कहा है कि पीएसएफ पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को कम किया जाना जरूरी है। संगठन ने सरकार से मांग की है कि सभी कृत्रिम रेशे पर लगने वाले मौजूदा 8 फीसदी उत्पाद शुल्क को घटाकर 4 फीसदी कर दिया जाए।
लाडिया ने यह भी कहा कि सीमा शुल्क के खत्म कर देने से राजस्व शुल्क पर कोई खास असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। ऐसा इसलिए कि कृत्रिम रेशे का आयात लगभग न के बराबर होता है। लेकिन सीमा शुल्क के खत्म न करने से घरेलू बाजार में तैयार माल आयातित माल से महंगे होते हैं। ऐसी स्थिति में होने वाला मुनाफा उत्पादकों की जेब में जाता है।
हाल यह है कि मार्च में पीएसफ की कीमत 64 रुपये थी जो अब बढ़कर 84 रुपये प्रति किलो हो गयी है। सीमा शुल्क खत्म करने की आईएसए की ओर से उठने वाली मांग ऐसे समय आयी है, जब सरकार ने कपास पर लगने वाले 14 फीसदी आयात शुल्क को खत्म करने की घोषणा की है।