प्रदेश में इस बार आलू की बंपर पैदावार हुई है और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर है। बावजूद इसके किसानों को उसकी सही कीमत नहीं मिल पा रही है।
बात यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि करीब तीन साल पहले जिस फसल को राज्य सरकार ने ‘ताज ब्रांड’ का नाम दिया था, उसके खरीदार तक नहीं मिल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने इस साल करीब 60 हजार टन आलू के निर्यात का लक्ष्य रखा था, लेकिन अब तक एक भी निर्यात आर्डर नहीं मिला है और सरकार बेसब्री से आलू के निर्यात ऑर्डर का इंतजार कर रही है।
यह हालत तब है, जबकि राज्य सरकार की ओर से हर निर्यात ऑर्डर पर भाड़े में सब्सिडी के अलावा, ब्रांड प्रमोशन के लिए भी धन मुहैया कराया जाता है।बंपर पैदावार के चलते राज्य के कोल्ड स्टोरों में आलू ठसा-ठस भर चुका है, जबकि अभी भी किसान का 25 लाख टन से अधिक आलू खुले में पड़ा है। दूसरी ओर, आमद बढ़ने से थोक मंडी में कीमतें लगातार गिर रही हैं। गुरुवार को फर्रुखाबाद और एटा के थोक मंडी में आलू 1.25 से 1.50 रुपये प्रति किलो बिका।
लखनऊ शहर की थोक मंडी में आलू की कीमत गिरकर 2 रुपये तक पहुंच गया है। ऐसे में आलू किसानों को राहत दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने 2.50 रुपये प्रिति किलो के हिसाब से एक लाख टन आलू खरीदने का फैसला किया है। हालांकि इस फैसले के एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी सरकारी खरीद एजेंसियां अब तक 1000 टन आलू भी खरीद पाने में विफल रही हैं।
आलू व्यापारी संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष भगवान सिंह के मुताबिक, सरकार ने आलू को सड़ने से बचाने का लिए कोई कार्ययोजना नहीं बनाई है। उनका आरोप है कि कोल्ड स्टोर मालिक जगह न होने का बहाना बना रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य के कोल्ड स्टोर मालिकों नें इस साल आलू भंडारण का शुल्क 115 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 130 रुपये कर दिया है।
भंडारण की दिक्कत को देखते हुए सरकार ने पड़ोसी राज्यों के कोल्ड स्टोर में आलू भंडारण की सोच रही है। इसके लिए सरकार 20 फीसदी की सब्सिडी भी देने को तैयार है। गौरतलब है कि इस साल प्रदेश में करीब 130 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ है, प्रदेश के कोल्ड स्टोरों की क्षमता 90 लाख टन आलू भंडारण की है।