मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) गुरुवार यानी 4 सितंबर को लाल सुपारी का वायदा कारोबार शुरू करेगा।
एमसीएक्स के सूत्रों ने बताया कि शुरुआत में सुपारी वायदा के अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के कॉन्ट्रैक्ट उपलब्ध होंगे। सुपारी वायदा में भागीदारी के लिए कारोबारियों के लिए सात फीसदी की मार्जिन मनी जमा करानी होगी।
एमसीएक्स के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट (बिजनेस डिवेलपमेंट) संजीत प्रसाद ने बताया कि सुपारी के वायदा कारोबार में इसका भाव प्रति किलोग्राम का होगा और ट्रेडिंग लॉट एक टन का होगा। टिक साइज यानी इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव 10 पैसे या इसके गुणक में होगा।
अगर कीमत में 3 फीसदी का उतार-चढ़ाव होगा तो सर्किट लगा दिया जाएगा। दोबारा कारोबार शुरू होने के बाद भी अगर उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहता है तो कीमत में एक फीसदी की बढ़ोतरी या कमी होने पर एक बार फिर सर्किट लगा दिया जाएगा।
सर्किट लगाने का मतलब है कीमतों के उतार-चढ़ाव को सामान्य करने की बाबत कुछ समय के लिए कारोबार को रोक देना। यहां राशि 50-50 वेरायटी की सुपारी का वायदा कारोबार होगा। इसका डिलिवरी सेंटर शिमोगा (कर्नाटक) में होगा। शिमोगा सुपारी की सबसे बड़ी मंडी है और दिल्ली, लखनऊ व कानपुर में इस जिंस केसबसे ज्यादा खरीदार हैं।
संजीत प्रसाद ने बताया कि हम वैसे कृषि जिंस पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिनकी कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है। उन्होंने कहा कि हाजिर बाजार में सुपारी की कीमत में रोजाना 2.5-3 फीसदी का उतार-चढ़ाव होता है। ऐसे में इसका वायदा कारोबार करने वाले यहां हेजिंग कर सकेंगे और इस तरह अपनी जोखिम के लिए कवच तैयार कर पाएंगे।
फिलहाल हाजिर बाजार में सुपारी की कीमत 116 रुपये प्रति किलो है। एमसीएक्स के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 7.5 लाख टन सुपारी का उत्पादन होता है और इसमें भारत का हिस्सा 55 से 60 फीसदी का है। एमसीएक्स के प्रोडक्ट मैनेजर राजेश बंसल ने बताया कि भारत में सुपारी का सालाना टर्नओवर करीब 3 हजार करोड़ रुपये का है।
भारत 50 से 60 हजार टन सुपारी का आयात इंडोनेशिया से करता है। लेकिन इंडोनेशिया से आने वाले माल की क्वॉलिटी भारत की तरह अच्छी नहीं होती। भारत सुपारी की प्रोसेसिंग कर मीठी सुपारी के रूप में मध्य पूर्व के देशों को करीब 5 हजार टन का निर्यात करता है। कर्नाटक और केरल इसका मुख्य उत्पादक है। असम में भी सुपारी की पैदावार होती है। कुल उत्पादन में कर्नाटक की हिस्सेदारी 45 फीसदी की है।
केरल और असम कुल उत्पादन में क्रमश: 25 और 15 फीसदी का योगदान देता है। अक्टूबर में सुपारी की नई फसल बाजार में आनी शुरू होती है और नवंबर-दिसंबर इस उत्पाद का पीक सीजन होता है। इसकी खपत मुख्य रूप से पान, पान मसाला और गुटखा उद्योग में होती है। पूजन सामग्री के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है।