खाद्य तेलों की कीमत पर अंकुश के लिए सरकारी तरकश के तमाम तीर अब लगभग समाप्त हो चुके हैं।
हालांकि तेल व्यापारियों का कहना है कि सरकार खाद्य तेलों पर लगने वाले वैट को समाप्त कर दे और स्टॉक सीमा में बढ़ोतरी कर दे तो तेल की कीमत में कुछ गिरावट हो सकती है। और आने वाले समय में भी खाद्य तेल के भाव में होने वाली बढ़ोतरी को रोका जा सकता है।
इधर दिल्ली समेत कई अन्य प्रांतों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी कि राशन की दुकानों से सस्ती दरों पर तेल बेचने की तैयारी कर ली गयी है। दिल्ली वेजीटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन (डिवोटा) के अध्यक्ष लक्ष्मी चंद अग्रवाल कहते हैं, ‘अभी देश के अधिकतर राज्यों में खाद्य तेलों पर 4 फीसदी की दर से वैट लगता है।
वैट को पूरी तरह समाप्त कर देने पर तेल की कीमत प्रति किलोग्राम 3 रुपये कम हो जाएगी।’ कारोबारियों के मुताबिक अभी यह कहना मुश्किल है कि सरकार खाद्य तेलों पर लगने वाले वैट में कमी करेगी या नहीं। अग्रवाल कहते हैं कि थोक बाजार में सरसों व सोया तेल की कीमत 70 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर को छू चुकी हैं और तिलहन की नयी फसल के आने तक इसमें गिरावट की कोई संभावना भी नहीं है।
तेल के थोक कारोबारियों का यह भी कहना है कि स्टॉक सीमा में बढ़ोतरी करके भी तेल की कीमत पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। उनकी दलील है कि स्टॉक सीमा कम होने से कारोबारी अधिक मात्रा में तेल नहीं रख पा रहे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ते ही उन्हें भाव बढ़ाना पड़ता है। दिल्ली में वर्ष 1977 में बने आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत थोक कारोबारियों को अधिकतम 60 टन तेल रखने की छूट है।
इस कानून में संशोधन कर कारोबारियों को कम से कम 100 टन खाद्य तेल रखने की छूट मिलनी चाहिए। हालांकि कारोबारी रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात पर लगने वाले 7.5 फीसदी शुल्क को समाप्त करने के पक्ष में नहीं है। अग्रवाल कहते है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उल्टा देसी रिफाइंड तेल निर्माताओं की परेशानी और बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा कि पहले दिल्ली में 700 टन घी व वनस्पति का उत्पादन होता था, लेकिन धीरे-धीरे इस उत्पादन में भारी कमी आ गयी।
तेल की बढ़ती कीमत को रोकने के उपाय के बारे में पूछने पर आयातक हरमीत खुराना कहते हैं, ‘सबसे पहले सरकार को अपना बफर स्टॉक बढ़ाना होगा।तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। तीन साल पहले तक सरकार के पास लाखों टन में सरसों का स्टॉक होता था जो हजारों में रह गया है।’
खाद्य तेलों की जरूरतों को पूरी करने के लिए भारत को लगभग 50फीसदी आयात करना पड़ता है। कारोबारियों का यह भी कहना है कि राशन की दुकान से सस्ती दरों पर तेल के वितरण से उसके बाजार मूल्य में कोई कमी नहीं आएगी।